वर्ष 1985 में 11 वर्षीय लेथे अपने मामा, जीवित बुद्ध अरवांग तानजङ के साथ आबा प्रिफेक्चर के आयोजित पठारीय कला उत्सव में भागीदारी के लिए मार्खांग क्षेत्र आये। इसके बाद वह तिब्बती ओपेरा सीखने लगे। मामा के तिब्बती ओपेरा के नाटक लिखने के दौरान वह कभी कभार मामा के पास खड़े होकर देखते थे। बाद में वह खुद नाटक लिखने की कोशिश करने लगे। इसके साथ ही लेथे कभी कभार मामा जी के साथ तिब्बती ओपेरा में अभिनय के लिए छिंगहाई जैसे प्रांतों के तिब्बती बहुल क्षेत्रों में भी गए। कई वर्षों तक लगातार सीखने और अभ्यास करने के बाद लेथे तिब्बती ओपेरा के अनुभवी उत्तराधिकारी बने। वर्ष 2012 के अंत में रांगथांग कांउटी में तिब्बती ओपेरा मंडली का पुनः गठन किया गया। मामा जी अर्वांग तनजङ मंडली के प्रधान और लेथे उप प्रधान रहे।
लेथे के अनुसार नाटक का विषय-वस्तु तिब्बती ओपेरा की ही कड़ी है। उदाहरण के तौर पर《चीमेई कङतुन》नाम के मशहूर तिब्बती ओपेरा में अभिनेता के अभिनय से चीमेई कङतुन द्वारा आम नागरिकों को योगदान देने के बारे में जानकर दर्शक आम तौर पर बहुत उत्साहित होते हैं। आबा प्रिफेक्चर के तिब्बती और छ्यांग जातीय संस्कृति के अनुसंधान संघ के महासचिव मा छङफ़ू ने जानकारी देते हुए कहा:
"ओपेरा देखने कई हज़ार तिब्बती दर्शक आए थे। स्थानीय तिब्बती लोग अभिनेताओं की प्रस्तुति के साथ-साथ हंसते और रोते थे। उन्होंने मंच के पास आकर दान के रूप में फल, अखरोट और पैसे दिये। मंच पर इतनी वस्तुएं होने की वजह से अभिनय जारी नहीं रह पाता। ऐसी स्थिति से मालूम हुआ कि तिब्बती ओपेरा से स्थानीय लोग कितने प्रभावित हुए हैं।"
पहले जोनांग तिब्बती ओपेरा के एक नाटक का प्रदर्शन आम तौर पर 3 या 4 दिनों तक चलता था। लेकिन आज इसमें सुधार किए जाने के बाद अभिनय का समय कम हो गया है। धीरे धीरे इस ओपेरा का विस्तार स्थानीय मंच से बाहर तक हो रहा है। जोनांग तिब्बती ओपेरा के संरक्षण और उसके विकास के लिए रांगथांग कांउटी ने सिलसिलेवार कदम उठाए हैं। कांउटी ने 40 अभिनेताओं को इक्ट्ठा कर प्रिफेक्चर स्तरीय उत्तराधिकारी लेथे से सीखने का निर्णय लिया है। इसके साथ ही तिब्बती ओपेरा मंडली कांउटी और प्रिफेक्चर में यात्रा-प्रदर्शनी करते हैं। उत्तराधिकारी लेथे के विचार में तिब्बती ओपेरा के विस्तार किए जाने की पूर्वशर्त दर्शकों के ओपेरा के विषय को समझना है। उन्होंने कहा:
"तिब्बती ओपेरा अंतर्वस्तु बहुत महत्वपूर्ण है। मुझे लगता है कि चाहे हान जातीय क्षेत्र में हो, या तिब्बती बहुल क्षेत्र में हों, अगर दर्शक नाटक के अंतर्वस्तु समझते हैं, तो वह ओपेरा को अधिक पसंद करेंगे। अब हमारे यहां जो लोग तिब्बती ओपेरा की विषय वस्तुएं समझते हैं, तो वे लोग ओपेरा के प्रदर्शन का बेसब्री के साथ इंतज़ार करते हैं। हमारे यहां आने वाले बाहरी क्षेत्र के लोगों के पास तिब्बती ओपेरा के विषयों के बारे कम जानकारी थी, तो इसे देखते समय वे नहीं समझ सकते थे।"
अधिक से अधिक लोगों को तिब्बती ओपेरा की अंतर्वस्तु समझाने के लिए रांगथांग कांउटी ने वर्ष 2014 में तिब्बती-चीनी भाषा वाले दो नाटक प्रकाशित किए। तिब्बती भाषा वाले नाटकों में स्थानीय दर्शकों की पसंदीदा चीज़ें शामिल हुईं, जबकि हान भाषा वाले नाटक विशेष तौर पर भीतरी इलाके में रहने वाले हान जाति के लोगों के लिए तैयार किये गए, जिसकी विषयवस्तु को संक्षिप्त किया गया है। रांगथांग कांउटी की संस्कृति, खेल, रेडियो, फिल्म, टीवी और न्यूज़ प्रकाशन ब्यूरो के प्रधान चो छुनश्यांग ने कहा:
"कांउटी सरकार तिब्बती ओपेरा के विकास पर बड़ा महत्व देती है। हम तिब्बती ओपेरा के नाटकों का डीवीडी बनाना चाहते हैं। साथ ही हम इसे राष्ट्र स्तरीय गैर भौतिक सांस्कृतिक विरासतों की सूचि में शामिल करवाने में सक्रिय रहे हैं।"
वास्तव में आजकल के युवाओं को तिब्बती ओपेरा, पेइचिंग ओपेरा और सछ्वान ओपेरा जैसे पारंपरिक ओपेरा सीखने में रूचि कम है। तो इन ओपेराओं को धरोहर के रूप में लेते हुए इन्हें विकसित करना बहुत मुश्किल है। लेकिन तिब्बती ओपेरा के उत्तराधिकारी लेथे जोनांग तिब्बती ओपेरा के भविष्य के प्रति आशावान हैं। उन्होंने कहा कि कांउटी के तिब्बती ओपेरा मंडली में 40 सदस्य नानमूता और रोंगमूता दोनों जिले से आते हैं, जो तिब्बती ओपेरा से जुड़े संस्कृति प्रचुर हैं। वे मुख्य तौर पर स्थानीय मठों के भिक्षु या चरवाहे हैं। आम समय में भिक्षु मठ में तपस्या करते हैं और चरवाहे चरागाह में पशुपालन का काम करते हैं। जरूरत पड़ने पर वे इक्ट्ठा होकर अभिनय का अभ्यास और प्रदर्शन करते हैं। इसकी चर्चा करते हुए तिब्बती ओपेरा के उत्तराधिकारी लेथे ने कहा:
"हमारी मंडली में 40 से अधिक सदस्य हैं। वे प्रति माह कई सौ युआन के वेतन के लिए अभिनय नहीं करते, सर्दियां हो या गर्मियों का मौसम, मंडली से एक ही फोन के बाद वे शीघ्र ही इक्ट्ठे होकर अभ्यास करने लगे हैं।"
जोनांग तिब्बती ओपेरा के उत्तराधिकारी लेथे ने कहा कि ये अभिनेता मात्र तिब्बती ओपेरा के नाटक का प्रदर्शन नहीं करते, उनके कंधे पर इतिहास और संस्कृति के विकास का बोझ भी है। उनका कहना है:
"मैं कभी कभार उनसे कहता हूं कि हम मात्र अभिनय के लिए तिब्बती ओपेरा का प्रदर्शन नहीं करते हैं। किसके लिए ?हमारी तिब्बती संस्कृति के लिए। इतिहास और संस्कृति को विरासत में लेते हुए उन्हें विकसित करना हमारा उत्तरदायित्व है।"