Web  hindi.cri.cn
    बर्फीले क्षेत्र से विदाई लेकर सुखमय जीवन बिता रहे तिब्बती गांववासी
    2015-04-20 14:53:03 cri

    10 वर्ष पूर्व ये लोग बर्फीले पहाड़ी क्षेत्रों में रहते थे। देश में पारिस्थितिक संरक्षण परियोजना के कार्यान्वयन के चलते वे कठोर और ठंडे स्थलों पर बने अपने घरों से रवाना होकर नये स्थल पर आए और गर्म मकानों में सुखमय जीवन बिताने लगे। आज के इस कार्यक्रम में आप हमारे साथ चलेंगे एक नया तिब्बती गांव का दौरा करने, और देखेंगे कि स्थानांतरण के बाद अब उनका आज का जीवन कैसा है?

    60 वर्षीय तिब्बती बंधु कङका नानच्ये परिजनों के साथ तीन बेडरूम और एक लीविंग रूम के कमरे में रहते हैं। तिब्बती शैली वाले फर्नीचर और नई शैली का सोफ़ा एक दूसरे से मेल मिलाप की वजह से घर को अच्छी तरह सजाते हैं। टेलीविज़न, फ्रिज़ जैसे इलैक्ट्रॉनिक उपकरण यहां पर उपलब्ध हैं। कङका नानच्ये की मां लीविंग रूम में घी से बनाई गई चाय पीते हुए टीवी पर कार्यक्रम का मज़ा ले रही हैं। कङका नानच्ये ने हमारे संवाददाता से कहा कि अब रिहायशी मकान की स्थिति बहुत अच्छी है। पहले वे शिविरों में रह करते थे, सर्दियों में बहुत ठंड लगती थी। लेकिन आज के बने ये मकान गर्म हैं, इसके साथ ही बाहर से रेत, वर्षा का पानी और कीट हमारे कमरे में कभी प्रवेश नहीं कर पाते। पेय जल, बिजली, टीवी और टेलिफ़ोन सेवा सभी कुछ यहां पर उपलब्ध है।

    वास्तव में वर्ष 2004 के नवम्बर से पहले कङका नानच्ये और दूसरे गांव वासी छिंगहाई तिब्बती पठार के थांगकुलाशान कस्बे में रहते थे, जहां चीन की माता नदी यांत्सी नदी का उद्गम स्थल है। यह छिंगहाई तिब्बत पठार में सबसे ऊंचे स्थल पर स्थित कस्बे भी हैं, जो समुद्र तल से 4700 मीटर पर बसा हुआ है। इस क्षेत्र का औसत तापमान शून्य से 4 डिग्री कम रहता है, वर्ष भर के एक तिहाई समय यहां पर तेज़ हवा का प्रकोप रहता है। पहले समय के जीवन की चर्चा करते हुए तिब्बती बंधु कङका नानच्ये ने कहा:

    "पहले हम पशुपालन क्षेत्रों में बनाए गए अपने शीविरों में रहते थे। चरवाहों के पास कोई स्थाई मकान नहीं होते थे। जीवन स्थिति थोड़ी कठिन और दुष्कर थी। समुद्र तल से ऊंचे स्थान पर होने के कारण मौसम अच्छा नहीं रहता और प्राकृतिक स्थिति भी खराब थी। उस समय चरवाहों की आय पशुपालन से ही होती थी, जीवन स्थिति गंभीर थी और यातायात की स्थिति भी सुविधापूर्ण नहीं थी। साल भर में हम हर रोज़ मांस के अलावा कम आटा और चावल खाते थे। न कि सब्ज़ियां।"

    20वीं सदी के 80 के दशक में जलवायु परिवर्तन के कारण यहां का तापमान बढ़ने लगा। पठारीय हिमनदियां पिघलने लगीं। पर्वतों की बर्फीली रेखा लगातार ऊपर की तरफ़ खिसकती जा रही है। चरागाह में अधिक पशुपालन करने, पठार में सोने जैसे धातुओं की खुदाई से चरागाह का दायरा निरंतर कम हो रहा है। कुछ स्थलों में रेतीलीपर बढ़ता जा रहा है। यांत्सी नदी के उद्गम स्थल में पानी की मात्रा में भी तेज़ गति से गिरावट आई है। इस तरह यांत्सी नदी के उद्गम स्थल का संरक्षण करना अपरिहार्य है। लगातार बिगड़ती हुई पारिस्थितिक स्थिति के मुकाबले के लिए वर्ष 2005 में चीन ने औपचारिक तौर पर सानच्यांगयुआन पारिस्थितिकी संरक्षण और निर्माण परियोजना शुरु की। इसके आधार पर सानच्यांगयुआन क्षेत्र में पशुपालन को फिर से घास-मैदान के रूप में लौटाया गया, यहां रहने वाले तिब्बतवासी दूसरे स्थलों की ओर स्थानांतरण करने लगे।

    ध्यान रहे, चीन की सभ्यता और मां समान नदी के रूप में ह्वांग हो यानी पीली नदी, छांगच्यांग नदी यानी यांत्सी नदी और छह एशियाई देशों से गुज़रने वाली लान छांगच्यांग नदी (एशिया के दूसरे देशों में इसे मेकोंग नदी भी कहा जाता है) का उद्गम स्थल छिंगहाई तिब्बत पठार पर ही स्थित है। ये तीन नदियां छिंगहाई प्रांत से गुज़रती हैं और इनका उद्गम स्थान इसी प्रांत में स्थित है। इस तरह तीन नदियों के उद्गम स्थल को चीनी लोग सानच्यांगयुआन कहते हैं। चीनी भाषा में"सान"का अर्थ"तीन"है,"च्यांग"का अर्थ"नदी"और "युआन"का अर्थ"स्रोत"। कुल मिलाकर कहा जाए, तो"सानच्यांगयुआन" का अर्थ"तीन नदियों का उद्गम स्थल"होता है। सानच्यांग युआन क्षेत्र चीन के ही नहीं, विश्व भर के पारिस्थितिकी और जलवायु के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

    वर्ष 2004 में नए आप्रवासी गांवों की पहली खेप में 128 परिवारों के 407 तिब्बती चरवाहों ने यांगत्सी नदी के उद्गम स्थल में घास के मैदान से 400 किलोमीटर दूर स्थित गेर्मू शहर के दक्षिणी भाग के उपनगर की ओर स्थानांतरण किया। कङका नानच्ये का परिवार उनमें से एक है। नये गांव का नाम छांगच्यांगयुआन गांव है, इसका अर्थ यांत्सी नदी का उद्गम गांव ही है।

    छांगच्यांगयुआन गांव में प्रवेश होकर लोगों को लगता है कि एक आधुनिक वातावरण के कस्बे में आ गया हो। गांव में मैदान, स्कूल, सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र जैसे सार्वजनिक उपकरण उपलब्ध हैं। हर एक परिवार एक-एक आंगन वाले मकान में रहता है। रहने का स्थल बहुत साफ़ सुथरा है।

    गांव के मुखिया होने के नाते कङका नानच्ये छांगच्यांगयुआन गांव के शुरुआती निर्माण और इसकी विकास स्थिति के बारे में ज्यादा जानते हैं। उन्होंने संवाददाता से कहा कि वर्ष 2004 में देश ने गेर्मू शहर के दक्षिणी भाग में उपनगर स्थित छांगच्यांगयुआ गांव के निर्माण के लिए 2 करोड़ युआन की पूंजी लगाई है। प्रत्येक सुइट की कीमत 40 हज़ार युआन है, 128 परिवार के चरवाहों को नि:शुल्क मकान दिया गया है। इसके बाद गेर्मू शहर की सरकार ने हर परिवार के लिए निशुल्क पानी सप्लाई पाइप और बिजली लाइन स्थापित किया। मकानों की मरम्मत से संबंधित सेवा प्रदान की। गांव में हर परिवार को 70 हज़ार युआन की सब्सिडी मिली थी। वर्ष 2004 में गांव का निर्माण किए जाने के बाद विभिन्न स्तरीय सरकारों ने क्रमशः 3 करोड़ युआन का अनुदान देकर गांव में मार्ग, वन रोपण, पर्यावरण संरक्षण और स्वास्थ्य उपकरण जैसे क्षेत्रों पर जोर दिया। इसका परिचय देते हुए छांगच्यांगयुआन गांव के मुखिया कङका नानच्ये ने कहा:

    "हर परिवार के मकानों का क्षेत्रफल 62.2 वर्गमीटर है। आंगन को साथ मिलाकर कुल क्षेत्रफल 300 वर्गमीटर बनता है। गांव में सभी परिवारों के मकानों का निर्माण एक ही परियोजना के अनुसार किया जाता है और कमरे का क्षेत्रफल बराबर है। इसके आधार पर विभिन्न परिवार अपनी इच्छानुसार आंगन में अतिरिक्त मकान का निर्माण कर सकते हैं।"

    छांगच्यांगयुआन गांव को बसे हुए दस वर्ष बीत चुके हैं। अब गांव वासियों के जीवन और उत्पादन में भारी परिवर्तन आया है। ये चरवाहे घुमंतू जीवन से स्थाई शहरी जीवन में बदल गए हैं। गांव के मुखिया कङका नानच्ये का कहना है:

    "यहां स्थानांतरण करने के बाद हमारे जीवन और उत्पादन में भारी परिवर्तन आया है। विशेष कर वृद्धों के लिए अच्छा है। पहले हम थांगकुलाशान पर्वत की स्थित छांगच्यांग नदी के स्रोत वाले क्षेत्र में रहते थे। उस समय वृद्ध और कमज़ोर चरवाहों को शीविरों में ठहरना पड़ता था। वहां से स्थानांतरण करने के बाद जीवन की स्थिति अच्छी हो गयी है। ये जगह समुद्र तल से ज्यादा ऊंची नहीं है। जलवायु की स्थिति बेहतर है और लोगों को रोग के उपचार में सुविधा भी मिली है। हम जो कुछ भी खाना चाहते हैं वो खा सकते हैं। जीवन के लिए सभी चीज़ों को खरीदना आसान है।"

    छांगच्यांगयुआन गांव आप्रवासी नए गांव में बँगले मकान(यानी एक मंजिला मकान) क्षेत्र के उत्तर में सात पांच-मंजिली रिहायशी इमारत खड़ी हुई हैं, जिनका निर्माण 2010 में हुआ था। पांच इमारतों में कुल 255 सुइट हैं। जो आम तौर पर 60 वर्ग मीटर और 70 वर्ग मीटर के हैं। इमारतों के बाहर लाल और सफेद रंग हैं, देखने में ये बहुत सुन्दर लगते हैं। यह सातों इमारतें थांगकुलाशान कस्बे के तिब्बती चरवाहों की बस्ती है। पहले सानच्यांगयुआन क्षेत्र में पारिस्थितिक आप्रवासियों के बंगले मकानों के निर्माण का सभी खर्च सरकार ने किया था। इसमें फ़र्क ये है कि इन सातों इमारतों के निर्माण की राशि सरकार और लोगों दोनों ने दी। 60 वर्ग मीटर वाले मकान के निर्माण के लिए चरवाहे ने 36 हज़ार 900 युआन दिए, जबकि सरकार ने भत्ते के रूप में उन्हें 64 हज़ार युआन दिए। वहीं 70 वर्ग मीटर वाले मकान के लिए चरवाहे ने 56 हज़ार युआन दिए और सरकार ने 84 हज़ार युआन की सब्सिडी दी।

    44 वर्षीय छाईरन त्सो ने वर्ष 2010 में नई इमारत में स्थानांतरण किया था। पहले वे माता-पिता के साथ छांगच्यांगयुआ गांव के बंगले में रहती थीं। उन्होंने हमारे संवाददाता से कहा कि वर्तमान में उनके पति तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की राजधानी ल्हासा में मूंगा, मानी पत्थर और फ़िरोज़ा का व्यापार कर रहे हैं। थांगकुलाशान पर्वतीय क्षेत्र के घास के मैदान में परिवार के 40 से अधिक याक हैं। छाईरन त्सो के अनुसार पहले थांगकुलाशान पर्वत के घास-मैदान में रहती थी, बेटी का स्कूल जाना मुश्किल था। वो रोज़ चरागाह मैदान में पशुओं को चराती थी और घऱेलू कामकाज में मदद करती थी। पहाड़ी क्षेत्र से यहां तक स्थानांतरण करने के बाद 14 वर्षीय बेटी ने स्थानीय स्कूल में प्राइमरी स्तर और रोज़गार मीडिल स्कूल की शिक्षा पूरी की। इसके बाद वह गेर्मू शहर के किंडरगार्टन में काम करने लगी। घर और किंडरगार्टन के बीच रास्ता सिर्फ़ 10 किलोमीटर है। बेटी हर दिन घर से कार्य स्थल आने जाने के लिये बस की यात्रा करती है। अब बेटी के पास अवकाश का पर्याप्त समय है और वह घरेलू कामों में मां की मदद करने के अलावा क्रॉस-सिलाई और स्वेटर की बुनाई भी करती है। वर्तमान जीवन की चर्चा करते हुए तिब्बती महिला छाईरान त्सो ने मुस्कुराते हुए कहा:

    "देश की नीति दिनों दिन बेहतर हो रही है। यहां रहना हमें बहुत अच्छा लगता है। जीवन के लिए, अस्पताल जाने, वस्तुएं खरीदने जैसे क्षेत्रों में हमें बड़ी सुविधा मिली है।"

    वर्तमान में छांगच्यांगयुआन आप्रवासी नए गांव के अधिकांश गांववासियों ने गेर्मू शहर में रोज़गार प्राप्त किया है। घास के मैदान और शीविर से विदा लेकर उन्हें धीरे-धीरे शहरी जीवन बिताने की आदत हुई। थांगकुलाशान कस्बे के शीर्ष नेता चाओ शोयुआन ने हमारे संवाददाता से कहा कि छांगच्यांगयुआन गांव के आधे वासी युवा हैं। युवाओं के लिए रोज़गार के पद को बढ़ाना और श्रम में युवाओं की सक्रियता को उन्नत करना कस्बे की सरकार के कार्यों को प्राथमिकता दी जाती है। उन्होंने कहा:

    "हमने वर्ष 2014 में दो बार श्रमिक तकनीक प्रशिक्षण कक्षाएं खोलीं। स्थानीय सरकार के प्रशिक्षण से 8 गांववासी स्थानीय होटल के वेटर बने और 3 युवाओं को मिनरल वॉटर कंपनी में रोज़गार मिला। इसके साथ ही सरकार द्वारा नियमित रूप से खाना बनाना, गाड़ी चलाना, वेल्डिंग, नृत्य आदि का प्रशिक्षण दिया जाता है। हमारी योजना है कि गांव में युवा लोगों को औद्योगिक मज़दूर बनाएंगे, ताकि उनकी आय में बढ़ोतरी हो।"

    छांगच्यांगयुआन गांव का दौरा करने के दौरान गांववासियों ने हमारे संवाददाता से कहा कि पशुपालन क्षेत्र से स्थानांतरण करना भावी पीढ़ी के सुखमय जीवन के लिये बहुत महत्वपूर्ण है। हालांकि आगे का रास्ता समतल नहीं होगा और उनके जीवन में किसी न किसी तरह मुसीबत आएगी। लेकिन वे विश्वास के साथ दृढ़ता से आगे चलते रहेंगे।

    © China Radio International.CRI. All Rights Reserved.
    16A Shijingshan Road, Beijing, China. 100040