वांग हानपिन अपनी रचना दिखाते हुए
17 मई को वांग हानपिन के चित्र प्रदर्शनी के वक्त पेइचिंग में परोपकारी संगठन मीरा प्लैनेट की स्थापना की गई। इस संगठन के संस्थापक लम्बे समय तक परोपकारी कार्य करने वाले और स्वयं सेवक रहे चू थङफ़ेई हैं। उन्होंने अपने टीम के सदस्यों की ओर से संगठन का पहला परोपकारी अभ्यास किया। यानी आत्मविमोही से परेशान हुए चित्रकार वांग हानपिन को तिब्बती जाति के पारंपरिक थांगखा चित्र सीखने का अवसर दिया गया। इस संगठन की सहायता से वांग हानपिन थांगखा शिल्पकार चङ थाईच्या के शिष्य बने। चू थङफ़ेई के विचार में थांगखा चित्र बनाने की तकनीक सीखने से आत्मविमोही से परेशान हुए वांग हानपिन की पेंटिंग प्रतिभा और निपुण होगी। इसके साथ ही देश के बाजार में थांगखा चित्र की अच्छी बिक्री के चलते वांग हानपिन से थांगखा चित्र बनाकर आमदनी भी अर्जित कर सकते हैं और उसका आर्थिक मूल्य प्रदर्शित होगा। थांगखा चित्र बनाने से वांग हानपिन को स्थिर आर्थिक स्रोत मिलेगा। इसकी चर्चा में चू थङफ़ेई ने कहा:
"आत्मविमोही बच्चों द्वारा तैयार दूसरे चित्रों की तुलना में थांगखा चित्र बाज़ार में ज्यादा आसानी से बेचे जा सकते हैं। वास्तव में आत्मविमोही बच्चों की चित्र-रचनाओं की बिक्री अधिक तौर पर परोपकारी व्यक्तियों की सहायता पर निर्भर रहती है। लेकिन बाज़ार में थांगका चित्र का मूल्य स्पष्ट है और संबंधित व्यवस्था भी सुनिश्चित है। इस तरह हम उम्मीद करते हैं कि आत्मविमोही चित्रकार थांगखा चित्र बनाने की ज्यादा तकनीक सीखकर अच्छी कमाई कर सकेंगे। मुझे लगता है कि यह हमारे देश में आत्मविमोही लोगों के इतिहास में एक सार्थक कदम है।"
तिब्बती थांगखा शिल्पकार चङ थाईच्या अपने शिष्य के साथ संजीदगी से पेश आते हैं। उन्होंने कहा कि थांगखा चित्र बनाना एक लंबा काम है, जिसके लिए कलाकार में धैर्य की जरूरत होती है। थांगखा बनाने के दौरान चित्रकार को बिना सोचे दुनिया भर की सभी चीजों के प्रति अपनी समझ, भावना और अपना विश्वास भी डालकर चित्रित करना चाहिए। इसी दौरान थांगखा चित्रकारों की तकनीक के लिए ही नहीं, उसकी मानसिक दृढ़ता की परीक्षा भी होती है। आत्मविमोही पीड़ित रोगी की विशेषता है कि वे लोग एक ही समय में एक ही कार्रवाई बार-बार करते हैं, या वे एक स्वर बार-बार दोहराते हैं। इस प्रकार वाले व्यवहार को"स्टिरियोटाइप व्यवहार"कहा जाता है। साधारण लोगों की नज़र में आत्मविमोही रोगियों द्वारा ऐसा करना सामान्य नहीं है। लेकिन थांगखा चित्र बनाने के दौरान उन्हें इस तरह के ध्यान की आवश्यकता है। चङ थाईच्या ने कहा कि थांगखा चित्र बनाना शिल्पकार की प्रतिभा और गुणवत्ता पर ज्यादा निर्भर रहता है। आत्मविमोही पीड़ितों का मन बहुत साफ होता है। थांगखा चित्रण में इसकी जरूरत होती है। उनका कहना है:
"थांगखा चित्र बनाने के दौरान शिल्पकारों के मन में धर्मपरायण की जरूरत होती है। आत्मविमोही होने के बावजूद वांग हानपिन सच्चे मायने में लगन से चित्र बनाता है। उसके दिल में कोई लौकिक विचार नहीं होता। यह थांगखा चित्र बनाने के लिए बहुत उपयोगी है।"
अगर आत्मविमोही नहीं होता, तो शायद वांग हानपिन विश्वविद्यालय में पढ़ रहा होता। कला के प्रति असामान्य प्रतिभा और अपनी दृढ़ता के कारण चित्र और हस्तलिपि जैसे क्षेत्रों में उसने भारी कामयाबी हासिल की। उसके द्वारा लिखित हस्तलिपि रचनाओं और चित्रों को कई बार संबंधित प्रदर्शनी में शामिल किया गया। उनमें से कई रचनाओं की नीलामी परोपकारी गतिविधियों में की जाती थी, जिससे 4 लाख युआन की राशि मिली। वांग हानपिन ने हस्तलिपि रचना《लीसाओ सूत्र》की नकल की, यह नकली हस्तलिपि की लम्बाई 263.5 मीटर और ऊंचाई 42.5 मीटर, जिसमें कुल 2 हज़ार से अधिक शब्द शामिल हैं। इसे लिखने के लिए वांग हानपिन को तीन महीने लगे। इसी नकली हस्तलिपि लिखने के दौरान उसने कोई भी एक गलत शब्द नहीं लिखा, न ही किसी शब्द को सुधारने की जरूरत पड़ी। इसका श्रेय उसकी हस्तलिपि प्रतिभा को ही नहीं, आत्मविमोही रोगी की विशेष क्षमता को भी जाता है।
तिब्बती थांगखा चित्र के शिल्पकार चङ थाईच्या ने पहली बार चीन के भीतरी इलाके में गैरतिब्बती व्यक्ति को अपना शिष्य बनाया। उनके विचार में यह काम बहुत सार्थक है। इससे न सिर्फ़ जातीय संस्कृति की विरासत में लेते हुए विकास करने में तिब्बती जाति की कोशिश दर्शायी जाती है। बल्कि इस गतिविधि से तिब्बती संस्कृति का और विकास व प्रसार-प्रचार के लिए भी काफी महत्व है। चीनी संस्कृति मंत्रालय के अधीन चीनी हस्तलिपि और चित्रण अकादमी के उच्च स्तरीय शोधकर्ता, चीनी संग्राहक संघ के सदस्य वांग होंगफो ने कहा:
"थांगखा चित्र एक किस्म का रहस्य चित्रकला है। वर्तमान में थांगखा के प्रति लोगों की रूचि लगातार बढ़ रही है। इसके साथ ही लोगों के इस चित्रकला से संबंधित जानकारी हासिल करने की मांग भी बढ़ रही है। अगर चीन के भीतरी इलाके में गैरतिब्बती लोग थांगखा चित्र बनाने का तकनीक हासिल कर उसे दूसरी जाति के चित्रकला को जोड़ा, तो थांगखा चित्रकला के विकास के लिए सार्थक होगा।"
थांगखा शिल्पकार चङ थाईच्या अपने शिष्य वांग हानपिन द्वारा रची गई रचनाओं के प्रशंसक हैं। उन्हें विश्वास है कि अपनी अतूल्य चित्रण प्रतिभा के सहारे थांगखा चित्र बनाने के रास्ते में शिष्य वांग हानपिन जरूर आगे बढ़ेगा। इसके साथ ही गुरू और शिष्य के बीच कलात्मक स्पार्क पैदा होगा। इसकी चर्चा में चङ थाईच्या ने कहा:
"मुझे आशा है कि शिष्य वांग हानपिन थांगखा चित्र बनाने की तकनीक सच्चे मायने में हासिल करके अपने तरीके को मिक्स कर अधिक सुन्दर रचनाएं तैयार कर सकेगा।"
तिब्बती बौद्ध धर्म थांगखा चित्र का मूल तत्व है। दया बौद्ध धर्म का सिद्धांत है। थांगखा शिल्पकार चङ थाईच्या और उनके शिष्य वांग हानपिन के साथ इस बौद्धिक सिद्धांत को अच्छी तरह दिखाते हैं। थांगखा चित्र रचने के रास्ते में गुरू और शिष्य दोनों हाथ में हाथ मिलाकर ज्यादा कामयाबियां जरूर हासिल कर सकेंगे।