जैसा कि आप जानते है कि पेइचिंग शहर के आसपास बहुत से पुराने मंदिर हैं। थान चेह मंदिर उन में से एक है । पेइचिंग के दौरे पर आने-वाले देशी-विदेशी पर्यटक आम तौर पर इसी प्रसिद्ध मंदिर का दौरा करने जाते हैं ।
थान चेह मंदिर पेइचिंग शहर के प्रसिद्ध पश्चिमी पर्वत के सहारे खड़ा पुराना मंदिर है और वह आसपास नौ ऊंची -ऊंची चोटियों से घिरा हुआ है । कोई एक हजार सात सौ वर्ष पुराने मंदिर का निर्माण ईस्वी 307 में हुआ था।इस का मतलब है कि इस मंदिर का इतिहास प्राचीन शहर पेइचिंग से भी पुराना है । थान चेह मंदिर की प्रबंधन कमेटी के सहायक प्रधान श्री हाउ शिन च्येन मे इस मंदिर का परिचय देते हुए कहा
उस समय उत्तरी राज्य के शासक का नाम वांग चुन था। ईस्वी 307 में शासक वांग चुन की पत्नी ह्वा फांग का देहांत हुआ ।वांग चुन ने अपनी पत्नी को पश्चिमी चीन के पा पाओ शान क्षेत्र में दफना दिया । उसी वर्ष वांग चुन ने अपनी पत्नी और राज्य के अमन चैन के लिये पेइचिंग शहर के पश्चिमी उपनगर में चा फू मंदिर का निर्माण किया ।बाद में इस चा फू मंदिर का नाम थान चेह मंदिर में बदल गया ।
थान चेह मंदिर की स्थापना के बाद बहुत से राजा पूजा करने के लिये यहां आते थे । कुछ राजा राजगद्दी पर बैठने के तुरंत बाद धूपबत्ती जलाने और भगवान की पूजा करने के लिये विशेष तौर पर इस मंदिर में आते थे । क्योंकि पुराने जमाने के हरेक राजवंश के राजाओं के मन में थान चेह मंदिर का विशेष स्थान था। इसलिये थान चेह मंदिर ने चीनी बौद्ध धार्मिक जगत में अपनी अलग पहचान बना रखी है और यह मंदिर पेइचिंग के अनगिनत मंदिरों में प्रथम स्थान पर माना जाता रहा है ।
थान चेह मंदिर की सब से बड़ी विशेषता बड़े पैमाने वाला निर्माण समूह है । समूचे मंदिर का कुल क्षेत्रफल करीब 2.5 हैक्टर है । मंदिर के प्रवेश द्वार से अंदर जाने के लिये एक लम्बा चौड़ा रास्ता है । रास्ते के दाएं व बाएं दोनों तरफ आलीशान भवन आमने-सामने खड़े हुए नजर आते हैं , जिस में चीन की प्राचीन वास्तु शैली के सौंदर्य को पूर्ण रूप से देखा जा सकता है ।
थान चेह मंदिर में खाना बनाने का एक कांस्य बर्तन बहुत चर्चित है और वह थान चेह मंदिर की एक धरोहर भी जानी जाती है । इस भीमकाय बर्तन का व्यास चार मीटर है और उस की गहराई दो मीटर है। एक बर्तन चावल बनाने में दसेक घंटे लग जाते हैं । बर्तन साफ करने के लिये मंदिर के भिक्षुओं को सीढी का प्रयोग करना पड़ता है । बर्तन के चूल्हे पर थान चेह मंदिर का अक्षर अंकित हुआ है । पर थान चेह मंदिर का अक्षर चूल्हे पर क्यों लिखा गया है । थान चेह मंदिर की प्रबंधन कमेटी के सहायक प्रधान श्री हाउ शिन च्येन ने इस सवाल का उत्तर देते हुए कहा
कहा जाता है कि पहले इस मंदिर के आचार्य को डर था कि कहीं इस मंदिर में आग न लग जाए। क्योंकि इस मंदिर के सभी भवन लकड़ी से तैयार हुए हैं । एक दिन उन्हों ने यह सपना देखा कि जब थान चेह मंदिर आग में लगाई जाए , तो मंदिर में आग कतई नहीं लगेगी । जागने के बाद इस सपने को याद करते-करते अचानक उन के मन में यह विचार आया कि यदि थान चेह मंदिर का अक्षर चूल्हे पर अंकित किया जाये , तो वह रोज रोज आग से ही जलाया जायेगा । इस तरह थान चेह मंदिर आग लगने की नौबत से बच सकेगा । अतः उन्हों ने थान चेह मंदिर के शब्द चूल्हे पर खुदवा दिए ।
थान चेह मंदिर में भीमकाय कांस्य बर्तन के अलावा और एक धरोहर भी है और वह है विख्यात पत्थर मछली । इस पत्थर मछली की लम्बाई 1.7 मीटर है और वजन 150 किलोग्राम भारी है तथा उस का रंग गहरे हरे का है । हमारी गाइड सुश्री ली लू ने कहा कि स्थानीय वासियों की मान्यता में यह पत्थर मछली रोगों का इलाज करने व संकट को दूर करने में सक्षम है ।
इस पत्थर मछली के पीछे यह किम्वदंती प्रचलित है कि यह पत्थर मछली दक्षिण समुद्र के ड्रेगन महल की एक धरोहर है । ड्रेगन महल के राजा ने उसे स्वर्ग के राजा को भेंट किया था। बाद में स्वर्ग के राजा ने मानव जाति के रोगों व संकटों को दूर करने के लिये यह पत्थर मछली हमारे थान चेह मंदिर को उपहार के रूप में दे दी । वह रोगों का इलाज करने और संकटों को दूर करने में समर्थ है । स्थानीय वासी उस पर बहुत विश्वास करते हैं । इसलिये जब किसी के सिर में दर्द हो , तो वह यहां आकर इस पत्थर मछली के सिर को छूता है , जब पेट में दर्द होता है , तो वह इस पत्थर मछली के पेट को छूता है , ऐसा करने से दर्द दूर हो जाता है ।
पर वास्तव में यह पत्थर मछली वायुमंडल से थान चेह मंदिर में गिरे एक बड़े पत्थर से तराशी हुई है । क्योंकि इस पत्थर में कांस्य , लौहे जैसे धातुतत्व हैं , इसलिये उसे अलग-अलग जगह पीटने से भिन्न-भिन्न मधुर आवाजें निकलती हैं । धीरे-धीरे स्थानीय लोगों ने इस पत्थर मछली को देवता के रूप में मान लिया है ।
थान चेह मंदिर में प्राचीन पेड़ भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र हैं । बेशुमार प्राचीन पेड़ों में चेह पेड़ सब से उल्लेखनीय है । चेह पेड़ दुर्लभ हैं , उन के पत्ते रेशम के कीड़ों को खिलाये जा सकते हैं , जबकि उस की लकड़ी का प्रयोग बढ़िया फर्निचर बनाने में किया जाता है। इस मंदिर के पीछे लुंग थान नामक कुम्भ स्थित है और पर्वत पर चेह पेड़ उगे हुए हैं , इसलिये इस मंदिर का नाम थान चे रखा गया है । थान चेह मदिर में भिन्न-भिन्न किस्म वाले प्राचीन छायादार पेड़ों की भरमार है , जिन में शाह पेड़ नामक पेड़ पर्यटकों को मोह लेते हैं । इस पेड़ की ऊंचाई चालीस मीटर से भी अधिक है , जबकि उस की मोटाई सात आठ व्यक्तियों की बांहों जितनी लम्बी । गर्मियों में इस प्राचीन पेड़ का छायादार क्षेत्रफल कोई 6 सौ वर्गमीटर विशाल होता है , जबकि शरद के आगमन पर पेड़ के सभी पत्ते सुनहरे हो जाते हैं। हवा के झोंकों में ये सुनहरे पत्ते अनगिनत उड़ती तितलियों की तरह बहुत सुंदर दिखायी देते हैं । कहा जाता है कि पुराने जमाने में यदि कोई राजा राजगद्दी पर बैठता था , तो इस पेड़ की जड़ से एक नन्ही शाखा निकलती थी । यदि किसी राजा का देहांत हो जाता था , तो इस पेड़ की कोई न कोई शाखा अपने आप टूट जाती थी । इसलिये स्थानीय लोग इस पेड़ को शाह पेड़ कहकर पुकारते हैं ।
इस रहस्यमय प्राचीन पेड़ को छोड़कर थान चेह मंदिर में और दो बैगनी माग्नोलिया पेड़ भी बहुचर्चित हैं । हालांकि पेइचिंग शहर में माग्नोलिया पेड़ों की भरमार है , पर थान चेह मंदिर में ये दोनों बैगनी माग्नोलिया पेड़ सब से पुराने माने जाते हैं । सुना जाता है इन दोनों पेड़ों की उम्र कोई चार सौ साल है । हर वर्ष वसंत में जब पेड़ों पर सुंदर बैगनी फूल खिलते हैं,तो लाखों करोड़ों देशी विदेशी पर्यटक फूल देखने यहां आते हैं । पेइचिंग वासी सुश्री वांग लिन को ये फूल बहुत पसंद हैं । उन का कहना है
मैं पेइचिंग के छाओ यांग जिले में रहती हूं । आज दोस्त से सुना कि यहां माग्नोलिया फूल खिले हुए हैं। इसलिये मैं विशेष तौर पर यहां देखने आयी हूं । इन दोनों दुर्लभ प्राचीन पेड़ों पर खिले हुए फूल सचमुच अति सुंदर हैं। देखकर मेरा मन बहुत खुश हो गया है ।
प्रिय श्रोताओ , आज थान चेह मंदिर प्राचीन सांस्कृतिक अवशेषों और मनोहर प्राकृतिक दृश्यों के कारण बड़ी तादाद में देशी-विदेशी पर्यटकों को अपनी ओर खींच लेता है। इस मंदिर के पास बहुत सी आधुनिक पर्यटन सेवाएं भी उपलब्ध हैं । अब यह मंदिर पेइचिंग के उपनगरों में एक सब से विख्यात पर्यटन स्थल बन चुका है ।