रअकुंग जातीय संस्कृति भवन का दृश्य
रअकुंग जातीय संस्कृति भवन में
थांगखा चित्र
थांगखा चित्र तिब्बती लामा बौद्ध धर्म से घनिष्ट रूप से जुड़ने वाली कला है, थांगखा के माध्यम से बौद्ध धार्मिक कथाओं को प्रदर्शित करना चीनी तिब्बती जाति में पुरानी परम्परा रही है, अत्याधिक संख्या में तिब्बती लोग बड़े सम्मान के साथ घर में एक थांगखा चित्र खरीदकर लटकाते हैं, इसके साथ ही हर रोज इसकी पूजा करते हैं। धार्मिक संस्कृति और थांगखा कला का मूल सिर्फ गहराई से ही तिब्बत से नहीं जुड़ा है बल्कि सैकड़ों वर्षों की विरासत के रूप में तिब्बती जनता के जीवन का अभिन्न अंग बन चुका है, इतना ही नहीं, तिब्बती लामा बौद्ध धर्म और मठों को छोड़कर तिब्बती चिकित्सा, खगोलशास्त्र और भूगोल पर भी उसका प्रभाव है। आज के इस कार्यक्रम में हम आपका परिचय करवाएंगे थांगखा चित्र बनाने में तिब्बती बौद्ध धर्म के भिक्षु गाज़ांचात्सो से।
थांगखा तिब्बती भाषा का शब्द है, यह रंगीन रेशमी कपड़े पर बना एक धार्मिक चित्र है, थांगखा चित्र में मुख्य रूप से बौद्ध धर्म की कहानियां, तिब्बती जाति के इतिहास में महान व्यक्ति, मथकों, कथाओं और महाकाव्यों में शामिल पात्रों की कथाएं शामिल हैं। चीन में तिब्बती बहुल क्षेत्रों में हर बड़े छोटे मंदिरों, हर परिवार में थांगखा चित्र रखा जाता है। थांगखा चित्रकला का जन्म 7वीं शताब्दी ईस्वी में तत्कालीन तिब्बत यानी थूपो के राजा सोंगचान कानबू के काल में हुआ था, आजतक इसका 1 हज़ार 3 सौ से अधिक वर्ष का प्राचीन इतिहास है। तिब्बती जाति घुमंतू जीवन बिताते हैं और तिब्बती लोग आम तौर पर घास के मैदान में ही रहते हैं, उनके हृदय में थांगखा चित्र मंदिर का स्थान रखता है। चाहे शिविर हो, या पेड़ की शाखा पर ही क्यों न हो, थांगखा चित्र लगाने के बाद तिब्बती लोग उसकी पूजा करते हैं। उनके विचार में थांगखा चित्र एक शुद्ध बौद्ध धर्म का चिह्न है।
चीन में तिब्बती बहुल क्षेत्रों में तिब्बती बौद्ध धर्म मठों में पहुंचने के साथ ही आप कई तरह के थांगखा चित्र देख सकते हैं। उनमें रअकुंग थांगखा चित्र सबसे संवेदनशील और विविध रंगों से परिपूर्ण होता है।"रअकुंग"तिब्बती भाषा में"रअकुंग सेचोम"का संक्षिप्त शब्द है, जिसका मतलब है सपना पूरा करने वाली स्वर्ण घाटी। आज का रअकुंग क्षेत्र छिंगहाई तिब्बती पठार में स्थित छिंगहाई प्रांत के ह्वांग नान तिब्बती प्रिफेक्चर की थोंगरन कांउटी है। रअकुंग कला तिब्बत में ही नहीं, देश भर में, यहां तक कि विश्वभर में बहुत प्रसिद्ध है। इस कला का जन्म 13वीं शताब्दी में हुआ था। यह तिब्बती बौद्ध धर्म के मठों में प्रचलित परंपरागत हस्तकला है। रअकुंग कला का विकास धर्म के साथ घनिष्ठ रूप से रहा है। थांगखा चित्र रअकुंग कला का प्रतिनिधित्व माना जाता है। वर्ष 2009 में थांगखा चित्र प्रमुख रअकुंग कला को युनेस्को की गैरभौतिक सांस्कृतिक विरासतों की श्रेणी में शामिल किया गया है।