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हिंदी सीखकर करियर बना रहे चीनी छात्र
2016-07-19 15:03:50 cri


चीनी छात्रों में हिंदी सीखने के प्रति रुझान धीरे-धीरे ही सही, पर बढ़ रहा है। चीन में बीजिंग सहित कई शहरों के विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जा रही है। जहां सैंकड़ों छात्र-छात्राएं भारतीय भाषा और संस्कृति का अध्ययन कर रही हैं। वे न केवल चीन में हिंदी सीख रहे हैं, बल्कि भारत जाकर हिंदी की पढ़ाई भी करते हैं। भारत और चीन के रिश्ते बेहतर होने के साथ-साथ लोगों में हिंदी और अन्य भारतीय भाषाएं सीखने की ललक बढ़ रही है। हिंदी सीखने वालों को नौकरी के अच्छे अवसर भी मिल रहे हैं।

दक्षिण पश्चिम चीन के युन्नान प्रांत की राजधानी खुनमिंग में भी हिंदी पढ़ाई जा रही है। जैसा कि हम जानते हैं कि युन्नान प्रांत चीन, भारत, बांग्लादेश, थाइलैंड और म्यांमार आदि देशों का गेटवे है। इसके मद्देनजर वर्ष 2011 में खुनमिंग स्थित युन्नान जातीय विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग की स्थापना की गई। हाल ही में बांग्ला विभाग भी खोला गया है। उम्मीद है कि इससे चीनी युवाओं की भारत के प्रति समझ बढ़ेगी। यहां बता दें कि दक्षिण पश्चिम चीन में युन्नान जातीय विश्वविद्यालय ऐसा पहला विश्वविद्यालय है, जहां हिंदी पढ़ाई जा रही है।

हाल के वर्षों में कई चीनी छात्र हिंदी की पढ़ाई कर चुके हैं और ग्रेजुएट होने के बाद हिंदी पढ़ाने, अनुवाद या भारत से जुड़े काम कर रहे हैं। ऐसी ही एक छात्रा छाव छन रवेई(हिंदी नाम प्रिया) हैं, साल 2010 में शीआन इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट हुई। इसके बाद दिल्ली विश्वविद्यालय से भी हिंदी का अध्ययन किया। वर्ष 2010 से युन्नान जातीय विश्वविद्यालय से जुड़ी हैं, जबकि सितंबर 2011 में हिंदी विभाग शुरू होने पर हिंदी पढ़ाने का काम कर रही हैं। वर्तमान में वह हिंदी विभाग की अध्यक्ष हैं।

युन्नान जातीय विश्वविद्यालय में सौ छात्र-छात्राएं हिंदी का अध्ययन कर रही हैं। इसके अलावा बाव शान शहर की सरकार द्वारा 20 लोगों को यहां हिंदी सीखने भेजा गया है।

छाव छन रवेई कहती हैं कि उन्हें भारत और हिंदी से बहुत लगाव है। शुरूआत में उनके टीचर ने उनसे कहा कि चीन में हिंदी सीखने वाले बहुत कम हैं। अगर वह हिंदी सीख पायी तो शिक्षिका बन सकती हैं, और उनका करियर संवर सकता है। वास्तव में उनके शिक्षक ने ठीक ही कहा था, आज वह खुद पर गर्व करती हैं कि उन्होंने हिंदी को अपना विषय चुना।

वह मानती हैं कि युन्नान में हिंदी और बांग्ला विषय शुरू होने से भारत और दक्षिण एशिया के लिए चीन का द्वार खुल गया है। क्योंकि यह प्रांत भारत आदि देशों के बहुत नजदीक है।

(अनिल आज़ाद पांडेय)

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