सछ्वान प्रांत के दक्षिण-पश्चिमी अंचल में स्थित लोशान नगर का इतिहास 1300 वर्ष पुराना है। इस का प्राचीन नाम च्यातिडं या च्याचओ था। यह छिडंई, मिनच्याडं और तातू नदियों के संगम पर बसा हुआ है तथा दक्षिणी सछ्वान जाने वाले स्थल-मार्ग और जल-मार्ग का मुख्य जंकशन है। लिडंयुन पहाड़ और ऊयओ पहाड़ जिम्हें एक नदी लोशान नगर से पृथक करती है, नगर के प्रमुख दर्शनीय स्थान हैं।
लिडंयुन पहाड़ की एक सीधी चट्टान पर 70 मीटर लम्बी एक विशाल बुद्ध-मूर्ति तराशी गई है, जिस के दोनों तरफ दो सशस्त्र प्रहरियों की पूर्तियां भी खड़ी हैं। बुद्ध मूर्ति के बाईं और सीधी चट्टान पर नौ मोड़ों वाला एक रास्ता बना हुआ है, जिससे पर्यटक बुद्ध के सिर तक पहुंच सकते हैं। लाल रंग की इस बुद्ध-मूर्ति का निर्माण ईस्वीं 713 में थाडं राजवंश में खाएय्वान के शासन के आरम्भिक काल में हुआ था। अद्भुत अनुपातसाम्य वाली इस कलाकृति के पांव के तलवे एकदम समतल-सपाट हैं।
एक पौराणिक कथा के अनुसार लिडंयुन बौद्ध विहार के भिक्षु हाइथुडं ने जब यह देखा कि इस तूफानी नदी में नौकाएं, अक्सर डूब जाती हैं, तो इसे वश में करने और सुरक्षित नौ परिवहन की गारंटी करने के लिए उन्होंने एक खड़ी चट्टान पर बुद्ध-मूर्ति तराशने का सुझाव दिया। इस विशाल मूर्ति का निर्माण नौ वर्ष में पूरा किया गया। मूर्ति में अद्भुत अनुपातसाम्य मौजूद है और इसे बनाने में अनोखी तकनीक अपनाई गई है। उदाहरण के लिए एक गुप्त नाली बड़ी कुशलता के साथ मूर्तिके सिर से पैरतक तराशी गी है, ताकि इस कलाकृति को मौसम के कारण होने वाली क्षति से बचाया जा सके।
ऊयओ पहाड़ लिडंयुन पहाड़के दक्षिण पूर्व में है। यह चारों तरफ से पानी से घिरा हुआ है और हरेभरे पेड़ों व बांस के झुरमुटों से ढका हुआ है। इस पहाड़ पर ऊयओ बौद्ध-बिहार का निर्माण थाडं राजवंश के मध्य काल में किया गया था। विहार में विभिन्न राजवंशों की लिपिकला, चित्रकला, बौद्ध ग्रंथों और अन्य सांस्कृतिक अवशेषों के अलावा सुडं राजवंश के विख्यात साहित्यकार सू तुडंपो के शिलालेख भी हैं।
लोशान के सुन्दर प्राकृतिक दृश्यों और सुप्रसिद्ध बुद्ध मूर्ति को देखने असंख्य पर्यटक आते हैं। उन की सुविधा के लिए लिडंयुन पहाड़ व ऊयओ पहाड़ तक नियमित मोटर-बोट सेवा की व्यवस्था की गई है। इस के अलावा पहाड़ पर चढ़ने के लिए एक घुमाव-दार रास्ते और इनदोनों पहाड़ों को जोड़ने वाले एक झूलते पुल का निर्माण भी किया गया है।