हमारी कार सछ्वान प्रांत के दक्षिणी अंचल अमेइ काउंटी की तरफ तेज़ी से बढ़ती जा रही थी। सहसा हमें एक शिला-स्मारक नजर आया, जिस पर लिखा थाः "विश्वविख्यात पर्वत"। इसे एक चट्टान पर स्वर्गीय कामरेड क्वो मोरो की हस्तलिपि में तराशा गया था।
पाओक्वो मन्दिर समुद्र की सतह से 3099 मीटर की ऊंचाई पर अमेई की तलहटी में बना हुआ है। इसका निर्माण ईसा की 16वीं शताब्दी में किया गया था। इसमें 4 महाकक्ष हैं, जिन के आसपास बहुत सी शानदार इमारतें बनी हुई हैं।
पाओक्वो मन्दिर से पहाड़ की चोटी पर चढ़ने के लिए 60 किलोमीटर का रास्ता तय करना पड़ता है। कार सिर्फ दोहरे कुएं तक जा सकती है, जो चोटी से कोई 11 किलोमीटर दूर है। चोटी पर पहुंचने के बाद नीचे की चोटियां जंगल की तरह दिखाई देती हैं। पूर्व की ओर छिडंई नदी, मिनच्याडं नदी और तातू नदी चांदी के फीतों के समान चमकती रहती हैं। पश्चिम की ओर बर्फ से ढके ताश्वे और कुडंका पर्वत खड़ें हैं। अचानक बादल समुद्र की लहरों की भांति उमड़ने लगते हैं और पहाड़ की चोटियां उमड़ते सागर में डूबते-उतारते द्वीपों जैसी प्रतीत होने लगती हैं। पलक मारते ही बादल तितर-बितर हो जाते हैं और चोटियों को अपनी गोद में छिपा लेते हैं। लेकिन दक्षिण पूर्व में स्थित एक ऊंची चोटी उन्हें आगे नहीं बढ़ने देती।
"अपूर्व, सचमुच कैसा अपूर्व दृश्य है।"शानतुडं से आए एक शौकिया चित्रकार ने मुग्ध होकर कहा और वे अपनी कूची व रंग उठाकर इस अनोखे प्राकृतिक दृश्य के चित्रांकन में जुट गए। कहा जाता है कि तीसरे पहर 3 से 4 बजे के बीच कभी-कभी यहां"तथागत का प्रभामंडल"नजर आता है, जो वास्तव में बादलों के सागर पर कुहरे से छन कर पड़ने वाली किरणों का ही सतरंगा प्रतिबिम्ब होता है।