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चीन की अल्पसंख्यक जाति

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सांस्कृतिक जीवन
(GMT+08:00) 2007-12-14 10:03:32    
सिन्चांग के काश्गर शहर के उइगुर निवासी

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चीन के सिन्चांग उइगुर स्वायत्त प्रदेश के दक्षिणी भाग में स्थित काश्गर शहर उइगुर जाति प्रधान अल्पसंख्यक आबादी इलाका है । वह सिन्चांग का एकमात्र राष्ट्र स्तरीय ऐतिहासिक व सांस्कृतिक नगर है । कहते हैं कि सिन्चांग का दौरा करने के दौरान काश्गर देखना अनिवार्य है ।

सिन्चांग का काश्गर शहर इतना रौनक और खूबसूरत है , जिस के बारे में लोग कहते हैं कि यदि काश्गर का दौरा नहीं किया , तो सिन्चांग का दौरा अधूरा रह जाएगा । काश्गर में अल्पसंख्यक जातियों , खास कर उइगुर जाति का रीतिरिवाज विशेषतः आकर्षक होता है ।

काश्गर में अल्पसंख्यक जातियों के रीति रिवाज का अनुभव लेने के लिए सब से बेहतर स्थल शहर के केन्द्र में स्थित इतीगार चौक है । इस चौक में शहर के निवासी घूमने फिरने , मनोरंजन करने और त्यौहार का समारोह आयोजित करने आया करते हैं । चौक में आप को यह देखने को मिलेगा कि भीड़ में ज्यादातर लोग उइगुर हैं । कोई फुलक्यारी के पास पत्थर की बैंच पर बैठे विश्राम करता हो , तो कोई छोटा मोटा व्यापार करता हो और कोई फटीफुटी हान भाषा में पर्यटकों को यादगार वस्तु बेचता हो ।

चौक के चारों ओर निर्मित बाजार का माहौल ज्यादा जातीय रंगढंग से भरा हुआ है । उइगुर जाति के वेश आभूषण अधिक आकर्षक और बेजोड़ है , बड़े छोटे या बूढे नन्हे , सभी लोगों पर सुन्दर बेलबूटेदार टोपी पहने नजर आते हैं । हम उइगुर टोपी दुकान आए , दुकान पर खूबसूरत उइगुर नवयुवती बैठी है , उस का नाम है आइशा । उइगुर वेश आभूषण की चर्चा छिड़ी , तो वह हमें बताने लगीः

देखिए, हम उइगुर लोगों का परम्परागत परिधान इसी प्रकार हैः बाहर लम्बा लम्बा स्कर्ट पहनते है , इस के भीतर पातलून , बच्चों के सिर पर बेलबूटेदार टोपी और बड़ों पर साफा ।

उइगुर लड़की टोपी पहनना नहीं पसंद करती हैं , वे अपने बालों को दर्जनों चोटियों में बांध कर रहना पसंद करती हैं । और चोटियों में अर्द्ध चंद्राकार कंघे लगाये जाते हैं । बालों की चोटी बनाने की अनेक प्रथाएं हैं , जिस के बारे में सुश्री आईशा ने कहाः

उइगुर लड़कियों की बाल चोटी अलग अलग की होती है , किसी की 19 चोटियां है , तो किसी की 21 हैं , सब से ज्यादा 41 चोटियां बांधी जाती हैं । उइगुर मानते हैं कि अंक 41 सर्वश्रेष्ठ होता है , इस का उल्लेख कुरान में मिलता है । किन्तु विवाहित महिला की चोटी महज दो होती है ।

उइगुर लोगों को वस्त्रों पर अनोखे आभूषण लटकाना पसंद होता है , जिन में जेड की कंठी , हड्डी के हार और छोटा सा चाकू आदि देखने को मिलता है , वे चीजें वस्त्र परिधान की विशेष पहचान बन जाती हैं । हम एक आभूषण दुकान आए , दुकानदार एक उइगुर युवा है , वह बड़े उत्साह के साथ हमें इंचिशा नामक छोटा चाकू की सिफारिश कर रहा हैः

हमारे काश्गर की एक इंचिशा काऊँटी है , वहां बनाये गए छोट चाकू इंचिशा चाकू के नाम से मशहूर हैं । वह शुद्ध हस्तशिल्प का है , बहुत अच्छा है , इंचिशा काऊंटी के सभी घर चाकू बनाने में माहिर हैं ।

चाकू निर्माण के शिल्प कौशल के विकास से इंचिशा के कारीगरों ने नाना किस्मों के चाकुओं का आविष्कार किया है , चाकू के हत्थे पर तांबे , चांदी , जेड या हड्डी के काम जड़ित हैं , जिस पर जातीय विशेषता वाले चित्र उत्कीर्ण है । युवा दुकानदार मेहमेत्चान ने हमें बताया कि सजावट के अलावा इस प्रकार का चाकू ठोस काम में भी आता है । उन्हों ने कहाः

हम चाकू से बकरी का मांस काट कर खाते हैं । भोजन के समय हम अपने अपने चाकू का इस्तेमाल करते हैं । बकरी का वध करने में भी चाकू का प्रयोग होता है । और विशेषता है कि हरेक मर्द उइगुर के साथ चाकू होना अपरिहार्य होता है ।

उइगुर लोगों के खानपान भी उल्लेखनीय है । उस की खानपान संस्कृति में कबाब खाना विशेष होता है । वे कबाब बनाने की भट्टी पर लाल मिर्च और जीरा जैसे मसाला रखते हैं , जिस से भुने हुए कबाब जैसे विभिन्न किस्मों के भुने गोश्त बहुत जायकादार है और खूब सुगंधित है । सिन्चांग में भुने बकरी गोश्तों की किस्में बहुत ज्यादा हैं और समूचा बकरी का भुना गया मांस बहुत मशहूर है , सिन्चांग के कबाब चीन के सभी स्थानों में पसंद किये जाते हैं और जगह जगह खूब बिकते हैं । अब देश के विभिन्न शहरों के बड़े बड़े होटलों में भी उइगुर स्वाद के तरह तरह के कबाब परोसे जाते हैं , खास कर समूचा भुना हुआ बकरी मांस आदरनीय मेहमानों का सत्कार करने में पेश किया जाता है ।

रेस्ट्रां में भोजन के समय अभी अभी सुगंधित भुने कबाब का मजा ही लिया गया कि जायकादार पुलाव भी सामने परोसा गया है । उइगुर पुलाव बहुत ही सुगंधित है और रंग पीला पीला चमकदार होता है । इस प्रकार के पुलाव के कच्चे माल का परिचय देते हुए रेस्ट्रां के कर्मचारी श्री अहमेतकन ने हमें बतायाः

उइगुर जाति के पुलाव में चावल , गाजर , बकरी का मांस शामिल है , उन्हें तेल के साथ भुन कर बनाया जाता है । खाने के समय दाईं हाथ की तीन उंगलियों से पुलाव को उठा कर मुंह में डाला जाता है ।

रेस्ट्रां के कर्मचारी ने हमें उइगुर जाति के खानपान में मौजूद एक विशेष खाद्यपदार्थ –नॉन का जायका लेने की भी सलाह दी , नॉन उइगुर जाति के लोगों के रोजाना खान पान का एक पसंदीदा प्रमुख पकवान है । नॉन खमीरी आटे से बनाया जाता है , वह गोलाकार होता है और भीतरी भाग मोटा है, बाह्य भाग पतला । नॉन की सतह पर कुछ रेखाएं भी बनायी जाती है और उस पर थोड़ा सा नमकी पानी छिड़का कर तपती भट्टी में सेंका जाता है । पका पकाया नॉन सूंघने में बहुत सुगंधित होता है और खाने में भुरभुरा और स्वादिष्ट लगता है , नॉन अत्यन्त पोषक भी होता है ।

उइगुर के स्वादिष्ट भोजन के अलावा उइगुर जाति का संगीत भी बेहद मधुर और कर्ण प्रिय होता है । हम काश्गर के वाद्ययंत्र दुकान आए , दुकान में एक उइगुर युवा रेवाब नाम के तंतु वाद्य पर उइगुर जाति की लोक कहानी पर रूपांतरित क्लासिक धुन बजा रहा है ।

उइगुर लोग संगीत , साहित्य और नृत्य कला जैसे भाषा और कला के जरिए अपने शानदार जीवन को अभिव्यक्त करते हैं और उन की कला रचनाओं में उन के आदर्श , परिकल्पना , सपना और विभिन्न ऐतिहासिक कालों में लोगों के मनोभावों को अभिव्यक्त किया जाता है । उइगुर संगीत की विश्व की विभिन्न जातियों में अपनी अलग पहचान रखने वाली विशेषता होती है , जो बेमिसाल है ।