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(GMT+08:00) 2006-10-23 08:51:19    
एशियान मंच

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कोआथ बिहार के सुनील केशरी, डी डी साहिबा, संजय केशरी, प्रियंका केशरी ने सवाल किया है कि एशियान मंच का गठन कब हुआ था ? इन के सदस्य कौन कौन हैं?

एशियान का लक्ष्य समानता व सहयोग की भावना से क्षेत्रीय आर्थिक वृद्धि,सामाजिक प्रगति और सांस्कृतिक विकास को बढावा देने की समान कोशिश करना, सदस्य देशों के बीच संबंधों के मापदंडों और संयुक्त राष्ट्र चार्टर का पालन करते हुए क्षेत्रीय शांति व स्थायित्व को सुदृढ़ करना तथा अन्य अंतरराष्ट्रीय व क्षेत्रीय संगठनों के साथ आपसी लाभ के आधार पर घनिष्ठ सहयोग करना है। एशियान की मुख्य संस्थाएं हैं,शिखर-सम्मेलन,विदेश मंत्री सम्मेलन,स्थाई समिति की बैठक,आर्थिक मंत्री सम्मेलन और अन्य मंत्री स्तरीय सम्मेलन,सचिवालय,विशेष कमेटी,गैरसरकारी व अर्धगैरसरकारी संस्थाएँ। शिखर-सम्मेलन एशियान का फैसला लेने वाली सर्वोच्च संस्था है। वर्ष 1995 में उस का प्रथम-सत्र आयोजित हुआ। तब से हर साल उस का एक सत्र बुलाया जाने लगा है। उस का अध्यक्ष देश सदस्य-देशों में से बारी-बारी से बनता है।विदेश मंत्री संम्मेलन एशियान की नीति-नियामक संस्था है,प्रतिवर्ष उस का एक सत्र सदस्य देशों में बारी-बारी से बुलाया जाता है। स्थाई समिति की बैठक का मुख्य कार्य एशियान की विदेश-नीति पर विचार-विमर्श करना और सहयोग की ठोस परियोजनाओं का क्रियान्वयन करना है। सचिवालय इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में स्थित है,जो एशियान से संबंधित दस्तावेजों के प्रकाशन के कार्य की देखरेख करता है।

एशियान की कूटनीतिक सक्रियता है। उस के दायरे में जुलाई 1994 में एशियान मंच कायम हुआ। सितम्बर 1999 में पूर्व एशिया—लातिन अमरीका मंच स्थापित हुआ। फिर 10 प्लस 3 और 10 प्लस 1 वाली सहयोगी व्यवस्था प्रकाश में आयी। जनवरी 2002 में उस के स्वतंत्र मुक्ति व्यापार क्षेत्र की स्थापना की शुरूआत की गयी।

15 दिसम्बर 1997 को एशियान और चीन,जापान एवं दक्षिण-कोरिया के नेताओं का प्रथम सम्मेलन यानी 10 प्लस 3 सम्मेलन मलेशिया में आयोजित हुआ। एशियान के दस सदस्य देशों और चीन,जापान एवं दक्षिण-कोरिया तीन देशों के नेताओं ने संयुक्त रूप से 21वीं सदी के उम्मुख पूर्वी एशिया के भविष्य,भावी विकास और सहयोग पर निष्कपट व गहन तौर पर विचारों का आदान-प्रदान किया तथा सर्वसहमति प्राप्त की। इस दौरान कूटनीति,वित्त,

अर्थतंत्र,कृषि-वानिकी,पर्यटन और श्रम से जुड़े 6 मंत्री स्तरीय सम्मेलन की व्यवस्था भी कायम हुई,जिस से संबंधित क्षेत्रों में सहयोग को बड़ी प्रेरणा मिली है।

नवम्बर 2001 में एशियान और चीन के नेताओं ने ब्रुनेई में अपना पांचवा सम्मेलन आयोजित किया। इस 10 प्लस 1 वाले सम्मेलन में इस बात पर सर्वसहमति प्राप्त की गयी कि 10 सालों के भीतर चीन—एशियान स्वतंत्र मुक्ति व्यापार क्षेत्र की स्थापना की जाएगी। इस सम्मेलन ने एशियान के अर्थ मंत्रियों व उच्च पदाधिकारियों को यथाशीघ्र संबंधित वार्ता शुरू करने का अधिकार भी सौंप दिया। योजना के अनुसार चीन-एशियान स्वतंत्र मुक्ति व्यापार क्षेत्र की स्थापना के उपरांत 1अरब 70 करोड़ आबादी वाला एक व्यापक बाजार बन जाएगा,जिस का कुल घरेलू उत्पादन मूल्य 20 खरब अमरीकी डालर और कुल व्यापारिक रकम 12 खरब अमरीकी डालर की होगी। कहा जा सकता है कि यह स्वतंत्र मुक्ति व्यापार क्षेत्र विकासशील देशों से बनने वाला सब से बडा मुक्ति व्यापार क्षेत्र हो जाएगा।

अपने भीतर आर्थिक एकीकरण को जल्द ही ठोस रूप देने के लिए एशियान में मुक्ति व्यापार क्षेत्र की स्थापना का काम जनवरी 2002 में विधिवत् रूप से शुरू हुआ। मुक्ति व्यापार क्षेत्र का लक्ष्य इस क्षेत्र में चुंगी-कर रहित व्यापार चलाना है। ब्रुनेई,इंडोनेशिया,मलेशिया,फिलिपीन्स,सिंगापुर और थाईलैंड ने 2002 में ही अपने अधिकांश उत्पादों पर चुंगी-कर को 5 फीसदी से शून्य तक घटा दिया है। वियतनाम,लाओस,म्यांमार और कंबोदिया वर्ष 2015 में इस लक्ष्य को प्राप्त करने की कोशिश करेंगे।

अक्तूबर 2003 में एशियान का नौवां शिखर सम्मेलन इंडोनेशिया के बाली द्वीप में आयोजित हुआ। इस में उपस्थित विभिन्न सदस्य देशों के नेताओं ने एशियान समुदाय का घोषणा-पत्र पारित किया और इस समुदाय के घनिष्ठ सहयोग के लिए अधिक स्पष्ट ठोस कदम तय किए।

यह इस बात का प्रतीक है कि राजनीति,अर्थतंत्र,सुरक्षा,समाज व संस्कृति जैसे क्षेत्रों में एशियान में चतुर्मुखी सहयोग अपने इतिहास के नए दौर में प्रविष्ट हुआ है। चीन सरकार ने उस सम्मेलन के तुरंद बाद आयोजित एशियान व चीन के नेताओं के अधिवेशन में दक्षिण पूर्वी एशियाई मैत्री व सहयोग की संधि में शामिल होने की घोषणा की और एशियान के साथ शांति व सम़ृद्धि की ओर मुखातिब रणनीतिक साझेदारी की स्थापना के संयुक्त घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर किए। उसी साल 11 दिसम्बर को जापान और एशियान का विशेष शिखर-सम्मेलन तोक्यो में हुआ। जापानी प्रधान मंत्री कोईजुमी चुनिजिरो ने दक्षिण पूर्वी एशियाई मैत्री व सहयोग की संधि में भाग लेने का औपचारिक एलान किया। जुलाई 2004 में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन ने इस संधि में रूस की हिस्सेदारी के बारे में कानूनी दस्तावेज पर दस्तखत किए।