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(GMT+08:00) 2006-09-25 12:28:46    
चीन में बौद्धिक संपदा अधिकार संरक्षण, चीन में बौद्ध धर्म

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आज के इस कार्यक्रम में कोआथ बिहार के सुनील केशरी,डी.डी साहिबा, संजय केशरी,बविता केशरी प्रियंका केशरी खुशबू केशरी,एस के जिंदादिल, धनवंतरी देबी, सीताराम केशरी, प्रमोद कुमार केशरी,सीतामढ़ी बिहार के मोहम्मद जहांगीर के पत्र शामिल हैं।

कोआथ बिहार के सुनील केशरी,डी डी साहिबा,संजय केशरी, बविता केशरी प्रियंका केशरी खुशबू केशरी,एस के जिंदादिल, धनवंतरी देबी, सीताराम केशरी पूछते हैं कि चीन में बौद्धिक संपदा अधिकार संरक्षण कितना कारगर हुआ हैं?

दोस्तो,मानव-जाति की सभ्यता और बाजार अर्थव्यवस्था के विकास के चलते दुनिया में बौद्धिक संपदा अधिकार की रक्षा की व्यवस्था कायम हुई है,जिस के तहत विभिन्न देश अपने बौद्धिक संपदा प्राप्त लोगों के अधिकारों व हितों की रक्षा कर रहे हैं,राष्ट्रीय वैज्ञानिक व तकनीकी प्रगति बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं और बहुत से क्षेत्रों में अंतरराष्ट्रीय स्पर्द्धाएं कर रहे हैं। लेकिन ऐतिहासिक कारणों से चीन में बौद्धिक संपदा अधिकार की रक्षा की व्यवस्था अपेक्षाकृत देरी से बनी है।पिछली शताब्दी के 70 वाले दशक के अंत में चीन में आर्थिक सुधार शुरू होने के बाद इस व्यवस्था की स्थापना में तेजी आयी है।मार्च 1980 में चीन सरकार ने विश्व बौद्धिक संपदा अधिकार संगठन को इस की सदस्यता पाने के लिए अर्जी-पत्र दिया था।3 महीनों के पश्चात वह इस संगठन का सदस्य बना।बीते बीसेक वर्षों की कोशिशों से चीन ढेर सारे काम कर बौद्धिक संपदा अधिकार की रक्षा की अपेक्षाकृत परिपूर्ण कानूनी व्यवस्था की स्थापना में सफल रहा और बौद्धिक संपदा अधिकार की रक्षा में उस के द्वारा उपलब्ध कामयाबियां भी विश्वध्यानाकर्षक रही हैं।

इस समय बौद्धिक संपदा अधिकार की रक्षा देशों के बीच राजनीतिक,आर्थिक,विज्ञान-तकनीक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान में व्यापक ध्यान खींचने वाला एक सवाल बन गया है।इस पर द्विपक्षीय व बहुपक्षीय वार्ताओं विशेषकर चुंगी व व्यापार आम समझौते के संपन्न होने से बौद्धिक संपदा अधिकार की रक्षा का मापदंड एक नए स्तर पर पहुंचा है।चीन ने अपने बौद्धिक संपदा अधिकार की रक्षा के स्तर को इस मापदंड के निकट लाने के लिए अनेक अहम कदम उठाए हैं और बौद्धिक संपदा अधिकार की रक्षा के क्षेत्र में अपने अंतरराष्ट्रीय कर्तव्यों को सफलतापूर्वक निभाया है।चीन में बौद्धिक संपदा अधिकार की रक्षा के काम की अंतराष्ट्रीय समुदाय द्वारा भूरि-भूरि प्रशंसा की गयी है।विश्व बौद्धिक संपदा अधिकार संगठन के महानिदेशक अर्बड ने बीते 20 वर्षों में अपने संगठन औऱ चीन के बीच हुए सहयोग पर टिप्पणी करते हुए कहा कि चीन ने बौद्धिक संपदा अधिकार की रक्षा की व्यवस्था की स्थापना में जितना कम समय लगाया है,वह दुनिया में अभूतपूर्व है।बौद्धिक संपदा अधिकार की रक्षा के लिए चीन द्वारा किए गए बहुत से काम कारगर और संतोषजनक है।

बौद्धिक संपदा अधिकार के उल्लंघन की हरकत के प्रति चीनी जन न्यायालय कानून के अनुसार उल्लंघन करने वाले को नुकसान पीड़ित पक्ष से क्षमा याचना करने, क्षति-आपूर्ति करने का आदेश दे सकता है और उल्लंघन करने वाले पक्ष के द्वारा की गयी अवैध आमदनी को जब्त करने, जुर्माना करने तथा उसे न्यायिक हिरासत में भेजने की सज़ा दे सकता है।

कोआत बिहार के प्रमोद कुमार केशरी का सवाल है कि चीन में बौद्ध धर्म के मानने वाले कितने लोग हैं और बौद्ध धर्म चीन में कब आया ? कोआथ बिहार के संजय केशरी व उन के साथियों और सीतामढ़ी बिहार के मोहम्मद जहांगीर तथा अन्य अनेक श्रोताओं ने भी अपने पत्रों में चीन में धर्मों के बारे में प्रश्न पूछे हैं।

दोस्तो,चीन में बौद्ध धर्म,ताओ पंथ और इस्लाम के अलावा दो ईसाई संप्रदाय प्रोटेस्टेंट और कैथालिक आदि प्रमुख रूप से प्रचलित हैं।

चीन में बौद्ध-मत का प्रचार कोई 2000 वर्ष पूर्व भारत से शुरू हुआ था।बौद्ध धर्म के यहां तीन संप्रदाय हैं:चीनी भाषी संप्रदाय,तिब्बती भाषी संप्रदाय और पाली भाषी संप्रदाय।चीनी भाषी संप्रदाय के अनुयायी बहुसंख्यक हान लोग हैं,जबकि तिब्बती भाषी संप्रदाय के अनुयायी मुख्यत: तिब्बती,मंगोल,यूकू औऱ मन्पा आदि अल्पसंख्यक जातियों के लोग।और पाली भाषी संप्रदाय के अनुयायी ताए,पूलांग,तआन और वा इत्यादि अल्पसंख्यक जातियों में ही पाए जाते हैं।इस समय चीन में 10 करोड़ से अधिक बौद्ध हैं।

ताओपंथ चीन का मौलिक धर्म है।इस के अनुयायी 20 से 30 लाख के आसपास हैं।इस धर्म की विशेषता लोगों की नैतिकता को परिष्कृत करने पर जोर देना है।

इस्लाम धर्म को मानने वालों की संख्या 1 करोड़ 80 लाख से ज्यादा है।इन में अधिकांश सुन्नी हैं।ह्वेई,वेवुर,तातार,खल्खस,कज्जाक,उजबेक,तुंगश्यांग,साला और पाओआन आदि अल्पसंख्यक जातियों के लोग मुसलमान ही हैं।

नवीनतम आंकड़ों के अनुसार वर्तमान में चीन में लगभग 1 करोड़ प्रोटेस्टेंट और 40 लाख से अधिक कैथोलिक हैं।चीनी प्रोटेस्टेंटों और कैथोलिकों के गिरजाघर भी अलग-अलग हैं।