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आज के इस कार्यक्रम में वलिदपुर मऊ उत्तर प्रदेश के ज़की तनवीर हैदरी,बांदा उत्तर प्रदेश के संतोष कुमार सोनी,गुरदासपुर पंज़ाब के कौशलेश्वर कुमार वर्मा और उड़ीसा चाइनिस फ़्रेंड्स क्लब के अध्यक्ष हेमसागर नाइक के पत्र शामिल हैं।
वलिदपुर मऊ उत्तर प्रदेश के ज़की तनवीर हैदरी का प्रश्न है कि भारत और चीन के बीच की सीमा रेखा को किस नाम से पुकारा जाता है और दूरी कितनी है? बांदा उत्तर प्रदेश के संतोष कुमार सोनी ने भी संबंधित पश्न पूछा है। गुरदासपुर पंज़ाब के कौशलेश्वर कुमार वर्मा पूछते हैं कि भारत का चीन अधिकृत अक्साईचीन क्षेत्र खाली करने में क्या कठिनाई है?
भारत और चीन के बीच सीमा की कुल लम्बाई 1700 किलोमीटर है,जो पूर्वी,मध्य और पश्चिमी तीन भागों में बंटी है।लगभग हर भाग की सीमा पर दोनों देशों के बीच विवाद मौजूद हैं।पूर्वी भाग की सीमा से जुड़ी 90 हजार वर्गकिलोमीटर क्षेत्रफल वाली भूमि पर विवाद माइक.माहुंग रेखा से उत्पन्न हुआ है।चीन ने इस रेखा को नहीं माना है,जबकि भारत ने इसे विधिवत् सीमा मानकर 1987 में इस के पास अरूणाचल प्रदेश की स्थापना की।
मध्य भाग की सीमा से लगी विवादित 2100 वर्गकिलोमीटर क्षेत्रफल वाली भूमि पर इस समय भारत का कब्जा है।पश्चिमी भाग की सीमा से लगी विवादित 33 हजार वर्गकिलोमीटर क्षेत्रफल वाली भूमि का अधिकांश हिस्सा चीन के हाथ में है।इस परिवेश में आने वाले प्रमुख क्षेत्र अक्साईचीन और बालीकास अलग-अलग तौर पर चीन और भारत के कब्जे में हैं।
गुरदासपुर पंज़ाब के कौशलेश्वर कुमार वर्मा जी,आप के विचार में अक्साईचीन भारत का है,पर हम समझते हैं कि तथाकथित अरूणाचल हमारे देश का है।इस तरह की जानकारी तो आप औऱ हम ने संबंधित सामग्रियों से प्राप्त की है।ये सामग्रियां आखिरकार कितनी विश्वसनीय हैं? और वास्तविकता आखिरकार क्या है ? विश्वास है कि आप भी हमारी तरह नहीं जानते। इतिहास से छूटा यह सवाल दोनों देशों के राजनीतिज्ञों और इतिहासकारों पर छोड़ दें।इक्के-दुक्के सवाल हमारे दोनों देशों के मैत्रीपूर्ण संबंधों के विकास को बाधित नहीं कर सकते हैं।
चीनी विद्वानों का मानना है कि चीन की 92 हजार वर्गकिलोमीटर रकबे वाली प्रादेशिक भूमि पर भारत का कब्ज़ा है।पर चीन सरकार भारत के साथ सीमा-विवाद के समाधान में सक्रिय है और भारत सरकार भी इस के प्रति सकारात्मक रवैया अपना रही है।
अप्रैल 2005 में चीनी प्रधान मंत्री वन चा-पाओ की भारत-यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच सीमा-सवाल के समाधान के लिए राजनीतिक मार्गदर्शक सिद्धांत पर एकमतता प्राप्त की गयी।
इस सिद्धांत के तहत चीन और भारत दोनों का मानना है कि शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के पांच सिद्धांतों,एक दूसरे के सम्मान और मदद तथा समानता के आधार पर शांति व समृद्धि के उम्मुख रणनीतिक व सहयोगी साझेदारी का विकास करना चीन औऱ भारत दोनों देशों की जनता के मूल हित में है।दोनों देशों द्वारा अपने-अपने समग्र व दूरगामी हितों को ध्यान में रख कर सीमा-विवाद को जल्द ही दूर करना दोनों के ही बुनियादी हितों से मेल खाता है।चीन और भारत ने अनेक मौकों पर समान विचार व्यक्त किए हैं कि वे शांतिपूर्ण और मैत्रीपूर्ण सलाह-मशविरे के जरिए न कि शस्त्र-बल या शस्त्र-धमकी से सीमा-विवाद का समाधान करने की कोशिश करेंगे।आशा है कि दोनों देशों की सरकारें समानता के आधार पर सलाह-मशविरे के जरिए सीमा-विवाद का न्यायोचित व युक्तिसंगत समाधान,जो दोनों पक्षों को स्वीकार्य होना चाहिए ढ़ूंढ निकालने में सफल होंगी।
उड़ीसा चाइनिस फ़्रेंड्स क्लब के अध्यक्ष हेमसागर नाइक पूछते हैं कि चीन में कितने ऑटोनॉमस रीज़न हैं और उन की स्थापना कब-कब हुई है?
चीन में कुल 5 स्वायत्त प्रदेश हैं।वे हैं: सिनच्यांग वेवुर स्वायत्त प्रदेश,निनश्या ह्वेई स्वायत्त प्रदेश,भीतरी मंगोलिया स्वायत्त प्रदेश,तिब्बत स्वायत्त प्रदेश और क्वंगशी ज्वांग स्वायत्त प्रदेश। सिनच्यांग वेवुर स्वायत्त प्रदेश की स्थापना पहली अक्तूबर 1955 को,निनश्या ह्वेई स्वायत्त प्रदेश की स्थापना 25 अक्तूबर 1958 को और भीतरी मंगोलिया स्वायत्त प्रदेश की स्थापना पहली मई 1947 को हुई।तिब्बत स्वायत्त प्रदेश और क्वंगशी ज्वांग स्वायत्त प्रदेश क्रमश:पहली सितम्बर 1965 को और 11 दिसम्बर 1958 को कायम हुए।
इस के अलावा चीन में 30 स्वायत्त प्रिफेक्चर और 120 स्वायत्त काऊंटियां भी हैं।
चीन के सभी स्वायत्त प्रशासन क्षेत्रों की सरकारों को स्थानीय राजनीतिक,आर्थिक व सांस्कृतिक विशेषताओं के अनुसार स्थानीय कानून-कायदे बनाने,स्थानीय वित्तीय आय का प्रयोग करने,स्थानीय आर्थिक निर्माण से संबंधित योजना तैयार करने,स्थानीय शिक्षा, विज्ञान,संस्कृति,चिकित्सा व स्वास्थ्य और खेलकूद से जुड़े कार्यों का प्रबंध करने तथा स्थानीय सांस्कृतिक अवशेषों को इकठ्ठा कर संरक्षित करने का पूरा हक भी है।

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