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(GMT+08:00) 2006-07-31 09:02:57    
फाह्वयान कौन थे? चीन में बैंक;पक्षी बर्ड फ्लू का वाहक है?(1)

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आज के इस सभा में मऊ उत्तर प्रदेश के मोहम्मद दनिश,कोआथ बिहार के राकेश रौशन, शेख जफर हसन, हरद्वार प्रसाद केशरी, राजू कुमार भार्गव, मुन्ना प्रसाद गुप्ता, किशोर कुमार केशरी, दीपमाला रानी, पिन्टू केशरी, टिन्कू केशरी, मऊनाथ भंजन उत्तर प्रदेश के इर्शाद अहमद अंसारी, मुर्सरत जहां, न्याज अहमद अंसारी, शकीला खातून, राशिद जमाल, मुहम्मद गुफरान के पत्र शामिल हैं.

मऊ उत्तर प्रदेश के मोहम्मद दनिश जानना चाहते हैं कि फाह्वयान कौन थे?

भैया,फाह्वयान चीन का एक विख्यात धर्माचार्य था।उस का जन्म सन् 337 में वर्तमान शानशी प्रांत में हुआ था।तीन साल की अवस्था में ही वह श्रामणेर बन गया था और बीस साल का होने पर उपसंपन्न ग्रहण किया था।बौद्ध सूत्रों का अध्ययन करते समय उसे विनयपिटकों की कमी महसूस हुई।उस ने सभी विनयपिटक एकत्र करने के लिए भारत जाने का संकल्प कर लिया। ईस्वी सन् 399 में उस ने अन्य बौद्ध भिक्षुओं के साथ छांगआन यानी आज के शीआन से प्रस्थान कर अपनी जोखिम भरी यात्रा आरंभ कर दी। पश्चिम की ओर बढते हुए उन्हें न जाने कितनी ही मुसीबतें झेलनी पड़ी थीं।रेगिस्थान और पामीर पठार पार करके वे आखिर अपने गंतव्य स्थान—भारत पहुंचे।फिर फाह्यान ने क्रमश:उत्तर,पश्चिम,मध्य और पूर्व भारत की यात्रा की।और बड़ी सख्या में संस्कृत बौद्धसूत्र एकत्र किए।इस के बाद वह एक व्यापारिक जहाज पर सवार होकर श्रीलंका भी गया।वहां उसे दीर्धागम और संयुक्तागम इत्यादि संस्कृत सूत्र भी प्राप्त हुए।श्रीलंका में दो साल रहने के उपरांत उस ने समुद्री मार्ग से स्वदेश लौटने का निश्चय किया।रास्ते में उस ने यव द्वीप यानी आज के जावा की यात्रा भी की।सन् 421 में उस ने अपनी मातृभूमि पर कदम रखे।दूसरे साल वह च्येनखांग यानी वर्तमान नानचिंग शहर गया।इस प्रकार उस ने 14 सालों में तीसेक छोटे-बड़े राज्यों का भ्रमण कर अपना मनोरथ पूरा कर लिया।

नानचिँग में बसने के बाद उसने भारत के बौद्ध-भिक्षु बुद्धभतद्र के हमापरिनिवार्ण सूत्र,

महासंघविनय और संयुक्ताभिधर्महृदयशास्त्र का चीनी में अनुवाद किया।

फाह्यान ने अपनी यात्रा में जो देखा सुना था,उस का एक पुस्तक में विवरण भी लिखा।पुस्तक का नाम था बुद्धदेश का वृत्तांत यानी धर्माचार्य फाह्यान की जीवनकथा।यह पुस्तक प्राचीनकालीन मध्य और दक्षिण एशियाई देशों के इतिहास तथा चीन और इन देशों के बीच आवाजाही का अध्ययन करने के लिए महत्वपूर्ण संदर्भ-सामग्री है।और आप के भारत देश में आज भी उस का स्मरण किया जाता है।

कोआथ बिहार के राकेश रौशन, शेख जफर हसन, हरद्वार प्रसाद केशरी, राजू कुमार भार्गव, मुन्ना प्रसाद गुप्ता, किशोर कुमार केशरी, दोपमाला रानी, पिन्टू केशरी, टिन्कू केशरी पूछते हैं कि इस समय चीन में कुल कितने सरकारी और गैरसरकारी बैंक कार्य कर रहे हैं? मऊनाथ भंजन उत्तर प्रदेश के इर्शाद अहमद अंसारी, मुर्सरत जहां, न्याज अहमद अंसारी, शकीला खातून, राशिद जमाल, मुहम्मद गुफरान ने भी इस संदर्भ में जानकारी हासिल करने की इच्छा प्रकट की है।

चीन में पहले सिर्फ सरकारी बैंक थे और अब गैरसरकारी बैंक भी दिखाई देने लगे हैं। इस समय 5 बड़े-बड़े सरकारी बैंक है।वे हैं: चीनी जन बैंक,बैंक आफ़ चाइना,चीनी कंस्ट्रक्शन बैंक,चीन कृषि बैंक और चीन उद्योग व वाणिज्य बैंक।चीनी जन बैंक देश का केंद्रीय बैंक है और वही चीनी मुद्रा रनमिनबी जारी करता है।

गैरसरकारी और अर्धगैरसरकारी बैंक तो पिछले सालों में ही स्थापित किए गए हैं।वे मुख्यत:स्थानीय हैं। जैसे ह्वाश्या बैंक,मिनशंग बैंक,पेइचिंग सिटी बैंक,चाओशांग बैंक और क्वांगता बैंक आदि। अभी चीन में विदेशी बैंक ज्यादा नहीं है। विश्व के प्रमुख बैंकों ने सिर्फ चीन के महानगरों में ही अपने कार्यालय खोले हैं। उन में से कौन सब से बड़ा है? इस सवाल का सही जवाब देना आसान नहीं है। खबर है कि चीन सरकार ने निर्णय लिया है कि और अधिक गैरसरकारी बैंक खोलने और विदेशी बैंकों को चीन में बिजनेस करने की अनुमति दी जाएगी।यह भी अर्थतंत्र के गैरसरकारी क्षेत्र के विकास और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को गति देने की नीति का एक अंग है।

हौज़खास नयी दिल्ली के दीपक ठाकुर ने पूछा है कि चीन बर्ड फ्लू का शिकार हुआ है,क्या पक्षी बर्ड फ्लू का वाहक है?

बर्ड-फ्लू को लेकर चर्चा का बाजार गर्म है कि यह बीमारी जल्द ही विश्व स्तर पर महामारी का रूप लेने वाली है। बर्ड-फ्लू जानने से पहले सामान्य फ्लू की जानकारी लेना ज़रूरी है।

पूर्व में 1918 में स्पेनिश फ्लू से 2 करोड़ लोग मर चुके हैं। स्पेनिश फ्लू वायरस से अभी छुटकारा मिला ही था कि 1957 में एशियन फ्लू की चपेट में आकर 70 हजार लोग मौत का शिकार बन गये। यह सिलसिला यहीं खत्म नहीं हुआ। 1968 में हांगकांग फ्लू से 34 हजार लोगों की मौत हुई। यानी वायरस से होने वाली यह बीमारी ऐसी है कि वैज्ञानिकों व इस के बीच तू डाल-डाल,मैं पात-पात वाला खेल चलता रहता है। इस का वायरस इतना चतुर होता है कि यह लगातार अपना स्वरूप बदलता रहता है। साथ ही इस में दवाओं के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने के संकेत भी देखने में आए हैं। प्रवासी पक्षियों के रूप में उन्हें ऐसे वाहक मिले हैं,जो संक्रमण का लक्षण प्रकट किए बिना दूसरों को इस से संक्रमित करते रहते हैं।(अगली बार जारी)