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आज के इस कार्यक्रम में दरभंगा के प्रहलाद कुमार ठाकुर, राम बाबू महतो, मुकेश कुमार, कोआथ बिहार के राकेश रौशन, शेख जफर हसन, हरद्वार प्रसाद केशरी, राजू कुमार भार्गव, मुन्ना प्रसाद गुप्ता, किशोर कुमार केशरी, दीपमाला रानी, पिन्टू केशरी, टिन्कू केशरी, भागलपुर बिहार के मनोज कुमार आजाद, दिनेश प्रसाद आजाद, अनिता कुमारी, मनोज कुमार सुमन विजय के पत्र शामिल किए जा रहे हैं।
दरभंगा बिहार के प्रहलाद कुमार ठाकुर, राम बाबू महतो, मुकेश कुमार ने चीन की रेल के बारे में कुछ बताने को कहा है, वे जानना चाहते हैं चीन में कितनी किलोमीटर लंबी रेललाइन है।
मित्रो, इस सवाल का जवाब यों हम पहले दे चुके हैं पर आपकी जिज्ञासा को देखते हुए इसे एक बार फिर दोहरा रहे हैं। चीन का प्रथम रेलमार्ग कोई 120 साल पूर्व प्रकाश में आ गया था, जो सन् 1876 में एक ब्रितानी व्यापारी द्वारा शांघाई मे बनवाया गया था। 1881 में छिन राजवंश प्रशासन ने पेइचिंग के नजदीक थांगशान खनन-क्षेत्र में 10 किलोमीटर लम्बा एक रेलमार्ग बनाने की अनुमति दी। तब से चीन में खुद चीनियों द्वारा अपने बूते पर रेलमार्ग का निर्माण करने का इतिहास शुरू हुआ। पेइचिंग से चांगचाखो तक जाने वाला रेलमार्ग चीनियों द्वारा स्वनिर्मित प्रथम रेलमार्ग था। ध्यान रहे, सन् 1912 में ही डॉक्टर सुन यात-सेन ने 1 लाख 60 हजार किलोमीटर लम्बी रेल-लाइन बिछाने की पेशकश की थी। यह चीन में रेल-जाल कायम करने की प्रथम परिकल्पना मानी गयी।
1949 के अंत तक यानी चीन लोक गणराज्य की स्थापना के समय तक चीन भर में रेलमार्गों की कुल लम्बाई सिर्फ 22 हजार 600 किलोमीटर थी। गत शताब्दी के 50 वाले दशक में चीन की जन सरकार के एकीकृत प्रबंध में दसेक पुराने रेलमार्गों के जीर्णोद्धार के अलावा कोई 3000 किलोमीटर लम्बे नए रेलमार्गों का भी निर्माण किया गया और 14 रेल स्टेशनों में सुधार लाया गया। इस तरह चीन में केँद्र सरकार के नियंत्रण वाली रेल-लाइनों, जिन में स्थानीय सरकारों द्वारा किसी विशेष कारोबार के लिए निर्मित रेलमार्ग शामिल नहीं थे, की कुल लम्बाई बढ़कर 26 हजार 7 सौ किलोमीटर हो गयी। 1961 में चीन में प्रथम बार 91 किलोमीटर लम्बे विद्युतीकृत रेलमार्ग पर यातायात शुरू हुआ। तब से लेकर 1999 के अंत तक चीन में इस तरह के रेलमार्गों की लम्बाई लगभग 12 हजार किलोमीटर तक पहुंच गई । इस से चीन विश्व में रूस, जर्मनी और फ्रांस आदि देशों के बाद ऐसा नौवां देश बना,जिस के पास 10 हजार किलोमीटर से अधिक लम्बा विद्युतीक़ृत रेलमार्ग है। 3 साल पूर्व चीनी रेलमार्गों की कुल लम्बाई 70 हजार किलोमीटर तक पहुंचकर एशिया में प्रथम स्थान पर आ गयी थी।
चीन का पश्चिमी-भाग पूर्वी-भाग से अपेक्षाकृत पिछड़ा है। इस के उद्धार के लिए केंद्र सरकार ने सन् 2000 में एक योजना बनायी, जिस के तहत देश में पूंजी-निवेश को पश्चिमी भाग की ओर खींचा गया। बड़ी धन-राशि के सहारे वहां अनेक नयी रेललाइनें बिछायी गयीं। 2005 के अंत तक इस तरह पश्चिमी चीन में रेलमार्गों की लम्बाई 18 हजार किलोमीटर तक जा पहुंची।
उल्लेखनीय है कि चीन में एक्सप्रेस रेलमार्ग का भी बड़ा विकास हुआ है। 2005 तक देश भर में 14 हजार किलोमीटर लम्बा एक्सप्रेस रेलमार्ग जाल बिछाया जा चुका था।
कोआथ बिहार के राकेश रौशन, शेख जफर हसन, हरद्वार प्रसाद केशरी, राजू कुमार भार्गव, मुन्ना प्रसाद गुप्ता, किशोर कुमार केशरी, दीपमाला रानी, पिन्टू केशरी, टिन्कू केशरी, भागलपुर बिहार के मनोज कुमार आजाद, दिनेश प्रसाद आजाद, अनिता कुमारी, मनोज कुमार सुमन और विजय ने प्रश्न किया है कि सी आर आई हिन्दी सेवा के प्रथम अध्यक्ष कौन थे? वर्तमान में सी आर आई के अध्यक्ष कौन है? सी आर आई से कुल कितनी भाषाओं में प्रसारण हो रहा है? सी आर आई के हिन्दी-विभाग में इस समय कुल कितने कर्मचारी हैं। वर्तमान में भारतीय उद्घोषक कितने हैं?
चाइना रेडियो इंटरनैलशनल का प्रसारण वर्ष 1941 की 3 दिसम्बर को शुरू हुआ। इस का पुराना नाम रेडियो पेइचिंग था। इस समय यह 38 विदेशी भाषाओं और 4 स्थानीय बोलियों में विश्व के विभिन्न इलाकों के लिए कार्यक्रम प्रसारित करता है। भाषाओं की संख्या और प्रसारण-समय के हिसाब से वह बीबीसी और सीएनएन के बाद दुनिया का तीसरा बड़ा रेडियो है। वर्ष 2005 में उसे 160 देशों के श्रोताओं से 20 लाख से ज्यादा पत्र मिले। विश्व भर में फैले उस के श्रोता-क्लबों की संख्या 3600 से अधिक जा पहुंची है। उस के वर्तमान अध्यक्ष वानकंगन्यान हैं,जो एक उच्चस्तरीय अनुभवी संवाददाता और संपादक भी हैं।
सीआरआई की हिन्दी सेवा 15 मार्च, 1959 को शुरू हुई। इस की प्रथम अध्यक्ष सुश्री लीलीचुन थीं,जो 20 साल पहले सेवानिवृत हो गईं। हमारी प्रसारण सेवा का विकास आप जैसे उत्साहपूर्ण श्रोताओं के समर्थन से अलग नहीं किया जा सकता।आप की राय और सुझावों से हमें अपने कार्यक्रमों में सुधार करने में बड़ी मदद मिली है। इस समय भारत में हमारे हिन्दी श्रोताओं के कोई 1000 क्लब हैं। हिन्दी-विभाग में कुल 13 कर्मचारी हैं, जिन में से एक भारतीय विशेषज्ञ हैं। नयी दिल्ली स्थित हमारे कार्यालय में भी हमारे एक सहयोगी तैनात हैं।
भारतीय विशेषज्ञ मुख्य रूप से संपादन का काम करते हैं, कभी-कभी वे उद्घोषक के रूप में भी काम करते हैं। पेइचिंग में रह रहे कुछ भारतीय छात्र भी हमारे निमंत्रण पर अपनी सुविधानुसार अनियमित रूप से हमारे यहां उद्घोषक का काम करते हैं।

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