मध्य शरत् उत्सव के रिवाज
“ एक साल बारह बार पूर्णचंद्र निकलते हैं, लेकिन मध्य शरत् का पूर्णचंद्र सब से रोशनीदार है।”चांद की पूजा करना और चांदनी के सौंदर्य का लुत्फ लेना मध्य शरत् उत्सव का अनिवार्य कार्यक्रम है, जिसमें मेलमिलन के प्रति लोगों की गहरी अभिलाषा गर्भित है।
चांद की पूजा करना
चांद की पूजा करना मध्य शरत् उत्सव की महत्वपूर्ण प्रथाओं में से एक है। प्राचीन चीन में यह प्रथा चलती थी कि सम्राट वसंत काल में सूरज की पूजा करते थे, और शरद काल में चांद की पूजा करते थे। बाद में साहित्यकार और बुद्धिजीवी लोग भी सम्राटों का अनुकरण करते हुए चांद की पूजा करते थे और चांदनी का आनंद उठाते थे। यह प्रथा फिर आम लोगों में भी चल गयी और पीढ़ी दर पीढ़ी विकसित होकर एक परम्परागत गतिविधि बन गयी।
चांद की पूजा करने की प्रथा के बारे में सब से पुराना लिखित वर्णन“लिची”शीषर्क पुस्तक में“छ्यो मू शी य्येई, यानि शरत् में चांद की पूजा होती है, में मिलता था। चो राजवंश में हर मध्य शरत् की रात को लोग शीत काल के आगमन का स्वागत करते थे और चांद की पूजा करते थे। वेई, जिन, थांग व सुंग राजवंशों में मध्य शरत् उत्सव पर चांद का लुत्फ लेना एक पैमाने वाली प्रथा बन गयी थी। मिंग राजवंश में चांद की पूजा करना लोकप्रिय हो गया था। मिंग राजवंश के सम्राट श चुंग ने पदाधिकारियों को नियुक्त कर शी य्येई थान (चंद्र मंच) बनवाया था जो आज पेइचिंग के य्येई थान पार्क का पूर्व रूप था। यहां विशेष तौर पर राजसी चंद्रमा यज्ञ का अनुष्ठान होता था। उस समय आम लोगों में चांद की पूजा करने की विविध गतिविधियां भी जोरदार तौर पर चली थीं। मध्य शरत् में जब चांद निकलता था, तो लोग खुले मैदान में मेज़ रखकर उसपर मून केक, अनार और बेर आदि फल व मिठाई रखते थे और गंभीरता से चंद्र देवता की पूजा करते थे।
इस के अलावा आम लोगों में विविध सुन्दर दंतकथाएं भी चलती हैं। यह कहावत भी है कि“अष्टम माह की 15 तारीख को स्वर्ग का द्वार खुलता है।”कहा जाता है कि उस दिन, यज्ञ-दान मिलने के बाद चंद्र महल की रानी मानव के लोक में आकर गरीब लोगों को मदद देती थी। इसलिए जब स्वर्ग का द्वार खुल जाता था और लोग यह आशा करते थे कि उन्हें स्वर्ग से वरदान प्राप्त होगा। आम लोगों में यह कथा भी है कि“यदि घर में चांद की पूजा नहीं करता, तो बाहर निकलते ही तूफानी वर्षा का सामना करना पड़ता है।”जिससे जाहिर है कि आम लोग आठवें माह की 15 तारीख को चांद की पूजा पर बड़ा महत्व देते थे।