जलवायु परिवर्तन के मुकाबले के लिए प्रतिबद्ध है चीन
समूची दुनिया जलवायु परिवर्तन की समस्या से जूझ रही है। एक ऐसी चुनौती जिससे अकेले निपटना किसी भी देश के लिए संभव नहीं है। इसीलिए बार-बार इस दिशा में वैश्विक स्तर पर एकजुट प्रयासों की मांग भी उठती रही है। जहां तक चीन की बात है तो वह जलवायु परिवर्तन के मुकाबले के लिए व्यापक प्रयास कर रहा है। साथ ही चीन इस ग्लोबल समस्या के हल में अग्रणी भूमिका निभाने की क्षमता भी रखता है।
हाल में चीन, फ्रांस व जर्मनी के नेताओं ने इस बाबत एक ऑनलाइन शिखर सम्मेलन में हिस्सा लिया। जिसमें चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने के लिए चीन की प्रतिबद्धता दोहरायी। चीनी नेता विश्व को अपने इस वक्तव्य के जरिए बताना चाहते हैं कि चीन इस चुनौती से निपटने के लिए प्रमुखता से योगदान देगा। जिसका असर हमें भविष्य में वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में गिरावट के रूप में देखने को मिल सकता है।
यहां बता दें कि चीन ने हाल के वर्षों में पारिस्थितिकी विकास के साथ-साथ कार्बन डाईऑक्साइड के स्तर में कमी लाने के लिए कई कदम उठाए हैं। जिनमें हरित विकास के साथ-साथ निम्न-कार्बन व चक्रीय अर्थव्यवस्था पर ध्यान दिया जा रहा है। इसके साथ ही हमने देखा है कि चीन सरकार व संबंधित एजेंसियों ने पर्यावरण प्रदूषण के संकट को काबू में करने के लिए कदण उठाए हैं। इसके मद्देनजर खतरनाक गैसों का उत्सर्जन करने वाले कई उद्योगों को या तो बंद कर दिया गया है या फिर उन्हें पुनरुत्पादनीय ऊर्जा का इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित किया गया है।
जैसा कि हम जानते हैं कि चीन विश्व की दूसरी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति है, और उसने कई बार क्लाइमेट चेंज के मुकाबले के लिए विश्व के समक्ष आह्वान भी किया है। कुछ महीने पहले संपन्न जलवायु महत्वाकांक्षा शिखर सम्मेलन में चीन ने अपना स्वैच्छिक योगदान बढ़ाने का वचन दिया।
जबकि पिछले हफ्ते आयोजित सम्मेलन में चीनी राष्ट्रपति ने संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन और पेरिस समझौते को निष्पक्ष व समान रूप से आगे बढ़ाने की बात कही। जिसमें उन्होंने सभी पक्षों द्वारा अपनी-अपनी ज़िम्मेदारी निभाने का महत्व भी बताया।
इस बीच यह बताना अहम है कि चीन हरित व कम कार्बन उत्पादन पर लगातार ज़ोर दे रहा है। चीन का दावा है कि वह वर्ष 2030 तक प्रति यूनिट जीडीपी में कार्बन डाइआक्साइड का उत्सर्जन 2005 के मुकाबले 65 प्रतिशत से अधिक घटाने में सफल रहेगा। वहीं नॉन फॉशिल ऊर्जा का अनुपात 25 फीसदी पहुंचाए जाने संबंधी प्रतिबद्धता भी चीन ने जाहिर की है।
कहा जा सकता है कि चीन द्वारा किए जा रहे सार्थक प्रयासों से विकसित देशों को सीख लेने की आवश्यकता है। ताकि दुनिया के सामने खड़ी जलवायु परिवर्तन की चुनौती का बेहतर ढंग से मुकाबला किया जा सके।
अनिल पांडेय