24 दिसंबर 2020

2020-12-23 20:27:01

अनिलः सबसे पहले यह जानकारी...

मध्य प्रदेश के ग्वालियर में एक अनोखे तरीके से नौ साल की बच्ची पर ऑपरेशन किया गया। इस ऑपरेशन के जरिए ब्रेन ट्यूमर निकाला गया और इस दौरान बच्ची पियानो बजाती रही। यह ऑपरेशन ग्वालियर के बिरला अस्पताल में डॉक्टर अभिषेक चौहान ने शुक्रवार को किया। डॉक्टर ने ऑपरेशन करके सिर की हड्डी से ट्यूमर निकाल दिया और अब बच्ची पूरी तरह स्वस्थ है।

मुरैना जिले के बानमोर में रहने वाली सौम्या को मिर्गी आती थी। सौम्या पिछले दो सालों से मिर्गी की चार दवाएं ले रही थीं लेकिन उन्हें कोई फायदा नहीं हो रहा था। लगभग एक साल पहले पता चला की उन्हें ब्रेन ट्यूमर है। परिवार इसका ऑपरेशन करवाने के लिए तैयार नहीं था क्योंकि यह ऑपरेशन न सिर्फ काफी मुश्किल था बल्कि जोखिम भरा भी था। वहीं यह भी आशंका थी कि बच्ची जिंदगी भर के लिए अपंग हो सकती है।परिवार ने हाल ही में जब दोबारा से बच्ची के मस्तिष्क की जांच कराई तो पता चला कि ट्यूमर का आकार पहली बार की जांच से लगभग चार गुना बढ़ गया है। परिवार ये सर्जरी किसी बड़े शहर में करवाना चाहता था लेकिन उन जगहों पर सर्जरी कराने का खर्च ग्वालियर की तुलना में तीन गुना अधिक आ रहा था। इसी वजह से परिवार ने ग्वालियर में ही ऑपरेशन कराने का फैसला लिया।ऑपरेशन करने वाले डॉक्टर अभिषेक चौहान ने  बताया, "यह एक मुश्किल ऑपरेशन था और इसमें जरा सी भी गड़बड़ी होने पर बच्ची की जान के साथ ही दूसरी दिक्कतों की आशंका बहुत ज्यादा थी।" बिरला अस्पताल के मुताबिक, पूरे विश्व में इतने छोटे बच्चे के ऑपरेशन का इस तरह का यह दूसरा मामला है, जिसमें ब्रेन ट्यूमर के ऑपरेशन के दौरान नौ वर्षीय बच्ची पियानो बजाती रही।डॉक्टर अभिषेक ने बताया, "यह ऑपरेशन अवेक क्रेनोटामी पद्धति से किया गया। कभी-कभी ब्रेन ट्यूमर मस्तिष्क के ऐसे हिस्से में होता है कि उसके पास ही ब्रेन का वह हिस्सा होता है जो कि शरीर के उन कार्यों को नियंत्रित करता है जो हमारे लिए अत्यंत आवश्यक होते हैं।"उन्होंने आगे बताया, "ट्यूमर को सर्जरी से निकलते समय मस्तिष्क का कुछ मिलीमीटर अतिरिक्त हिस्सा अगर निकल जाए तो मस्तिष्क के उस हिस्से से नियंत्रित होने वाले काम फिर कभी नहीं किए जा सकते।"

नीलमः यह खबर पर्यटन से जुड़ी है। जैसा कि हम जानते हैं कि बिहार में राजगीर पर्यटकों के बीच काफी पसंदीदा जगह है। बता दें कि राजगीर में घूमने के लिए ना सिर्फ देश के कोने-कोने से बल्कि विदेशों से भी लोग आते हैं। भगवान बुद्ध की विरासत के साथ भारतीय इतिहास को अपने में समेटे हुए ये शहर पूरे राज्य में आकर्षण का केंद्र है। अब इस शहर में चीन के तर्ज पर पहला ग्लास ब्रिज तैयार हुआ है, जो लोगों का मन मोह रहा है। बिहार में बना ये ग्लास स्काईवॉक ब्रिज नेचर एडवेंचर को बढ़ावा देगा।पूर्वोत्तर भारत में यह पहला ग्लाज ब्रिज है, जिसे बिहार सरकार के द्वारा पर्यटकों के लिए तैयार कराया गया है। राजगीर क्षेत्र में और अधिक पर्यटन को बढ़ावा मिले, इस चीज को ध्यान में रखकर यह पुल बनाया गया। चीन के हांगझोऊ प्रांत में बने 120 मीटर ऊंचे कांच के पुल की तर्ज पर ही राजगीर में भी ग्लास स्काईवॉक ब्रिज को तैयार किया गया है। इस पुल पर चलते हुए आप अपने कदमों के नीचे की धरती को भी आसानी से देख पाएंगे। राजगीर को अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है। बिहार सरकार के पर्यटन विभाग ने इस पुल के आसपास टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए नेचर सफारी पार्क के निर्माण का फैसला लिया है। राजगीर में जू सफारी, तितली पार्क, आर्युवेदिक पार्क और देश-विदेश के अलग-अलग प्रजातियों के पेड़-पौधे देखने को मिलते हैं, जो आम तौर पर कहीं और नहीं देखने को मिलता है।पूर्वोत्तर के इस पहले ग्लास पुल को नए साल के मौके पर आम लोगों के लिए खोला जाएगा। इसके साथ ही वहां करोड़ों रुपये की लागत से रोपवे का भी निर्माण कराया जा रहा है, जो लोगों को विश्व शांति स्तुप तक आसानी से पहुंचा देगा। बता दें कि नालंदा जिले को सेंट्रल जू अथॉरिटी से भी जू सफारी पार्क के लिए मान्यता मिल गई है। चीन में बने पहले ग्लास स्काईवॉक ब्रिज को जब 20 अगस्त 2016 को आम लोगों के लिए खोला गया था, तो यह उस वक्त दुनिया का सबसे लंबा और सबसे ऊंचा कांच का पुल था। इस पुल की कुल लंबाई में 430 मीटर और चौड़ाई 6 मीटर, और यह जमीन से लगभग 300 मीटर की ऊंचाई पर है।

अनिलः अब अगली जानकारी से रूबरू करवाते हैं। ब्राजील की एक नदी में इन दिनों कछुओं की संख्या काफी बढ़ गई है। प्यूर्स नदी के किनारे हजारों की संख्या में साउथ अमेरिकन रिवर टर्टल्स की प्रजाति के कछुओं के बच्चों की फौज दिखाई दी है। दरअसल, ये कछुए सुनामी में नदी के अंदर से लहर की तरह निकल रहे थे। बता दें कि अमेजन नदी की सहायक प्यूर्स नदी के किनारे एक संरक्षित क्षेत्र में इन कछुओंं को इकट्ठा किया गया है।

ब्राजील के वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन सोसाइटी ने इन हजारों कछुओं की तस्वीरें और वीडियो को अपने ट्विटर हैंडल के माध्यम से साझा की हैं। बताया जा रहा है कि ये कछुए अभी बच्चे हैं, जो कुछ समय पहले ही अंडों से निकले थे। कछुओं की ये प्रजाति दक्षिणी अमेरिका में मीठे पानी के सबसे विशालकाए कछुए में से एक है।वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन सोसाइटी के मुताबिक, ब्राजील के इस इलाके में साउथ अमेरिकन रिवर टर्टल्स हर साल प्रजनन के लिए आते हैं। इन कछुओं के बच्चों को अंडों से बाहर निकलने में महीनों दिन का समय लग जाता है। रेतीले बालू के किनारे से निकलकर कछुओं के ये बच्चे नदी की तरफ बढ़ते हैं। वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन सोसाइटी ने बताया कि हर दिन हजारों की संख्या में कछुए अपने अंडों से निकलकर ऐसे ही झुंडों में दिखाई देते हैं और यह सिलसिला कई दिनों तक चलता रहता है।बता दें कि कछुओं की ये प्रजाति लुप्त होने के कगार पर है। ऐसे में इनके प्रबंधन और संरक्षण को बेहतर बनाने के लिए हमेशा रिसर्च चलता रहता है। वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन सोसाइटी के सदस्य संरक्षित इलाके में मादा वयस्क कछुओं की देखभाल करते हैं। कछुओं की ये प्रजाति मांस और अंडे की तस्करी के वजह से काफी प्रभावित हुई हैं।वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन सोसाइटी की एक्वाटिक टर्टल स्पेशलिस्ट कैमिला फेरारा के मुताबिक, विशालकाय साउथ अमेरिकन रिवर टर्टल्स का जन्म इसी तरह से होता है। लेकिन इनके जीवन का यह क्षण बहुत ही नाजुक होता है। अपनी जीवन की यात्रा शुरू करने के दौरान, तो ये कछुए एक साथ दिखाई देते हैं, लेकिन बाद में अलग हो जाते हैं। अमेजन के जंगलों में कछुओं की ये प्रजाति बीजों को फैलाकर पारिस्थितिकी तंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाती है, जिससे जंगल को पनपने में सहायता मिलती है। वयस्क साउथ अमेरिकन रिवर टर्टल्स का वजन 90 किलो और लंबाई साढ़े तीन फीट से भी अधिक हो सकता है।नीलमः पिछले करीब एक साल से दुनिया कोरोना वायरस जैसी महामारी से जूझ रही है। कोरोना वायरस को खत्म करने के लिए देश- दुनिया में लगातार शोध जारी हैं। कई देशों में कोरोना के खतरे को कम करने के लिए वैक्सीन बनाने का काम भी युद्धस्तर पर हो रहा है। हालांकि अभी तक कोरोना से सुरक्षित रहने के लिए उम्मीद के मुताबिक सफलता हासिल नहीं हो पाई है। हाल ही में हुए एक अध्ययन में ये दावा किया जा रहा है कि एलईडी लाइट्स की मदद से कोरोना वायरस को खत्म किया जा सकता है।इस शोध के अनुसार इस तकनीक को एयर कंडीशनिंग और वॉटर सिस्टम में स्थापित किया जा सकता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि पराबैंगनी (यूवी) प्रकाश उत्सर्जक डायोड (यूवी-एलईडी) कोरोना वायरस को सफलतापूर्वक समाप्त कर सकते हैं। शोधकर्ताओं का ये भी कहना है कि ये तकनीक काफी सस्ती भी होगी।जर्नल ऑफ फोटो कैमिस्ट्री एंड फोटो बायोलॉजी में प्रकाशित शोध के अनुसार वैज्ञानिकों ने वायरस पर अलग-अलग तरंगों वाले यूवी-एलईडी विकिरण की कीटाणुशोधन दक्षता का आकलन किया है, जिसमें COVID-19 वायरस पैदा करने वाला SARS-CoV-2 को भी शामिल किया गया है।इजराइल के तेल अवीव विश्वविद्यालय में अमेरिकन स्टडी के सह-लेखक हादस ममने का कहना है कि, एलईडी बल्बों के आधार पर कीटाणुशोधन प्रणाली को वेंटिलेशन सिस्टम और एयर कंडीशनर में स्थापित किया जा सकता है। उन्होंने कहा, कि शोध में हमने पाया कि पराबैंगनी प्रकाश को फैलाने वाले एलईडी बल्बों का उपयोग करके कोरोना वायरस को खत्म किया जा सकता है। इस शोध में हमने सस्ते और आसानी से उपलब्ध होने वाले एलईडी बल्बों का इस्तेमाल कर वायरस को मार दिया।

अनिलः शोधकर्ताओं का कहना है कि इस सिस्टम को डिजाइन किया जा सकता है। इस सिस्टम को इस तरह तैयार किया जाना चाहिए कि एक व्यक्ति सीधे प्रकाश के संपर्क में न आए। शोधकर्ताओं का कहना है कि घरों के अंदर कीटाणुरहित सतहों के लिए यूवी-एलईडी का उपयोग करना बहुत खतरनाक हो सकता है। 

इसी के साथ प्रोग्राम में जानकारी देने का सिलसिला यही संपन्न होता है। 

अब समय हो गया है श्रोताओं के पत्र शामिल करने का। 

नीलमः पहला पत्र हमें भेजा है, खंडवा मध्य प्रदेश से दुर्गेश नागनपुरे ने। लिखते हैं, हमें पिछला अंक बहुत अच्छा लगा। कार्यक्रम में अमेरिका के राष्ट्रपति भवन व्हाइट हाउस के बारे में आपने बहुत ही विस्तार से बताया। साथ ही इस वर्ष लगने वाले दूसरे सूर्य ग्रहण के बारे में भी बहुत विस्तार से जानने को मिला। वही कार्यक्रम में हिन्दी गीत " अपने तो अपने होते हैं । मजेदार जोक्स और भाई तिलक राज अरोड़ा जी का सुंदर पत्र बहुत ही अच्छा लगा। दुर्गेश जी पत्र भेजने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया।  अनिलः यह पत्र हमें आया है केसिंगा उड़ीसा से सुरेश अग्रवाल ने। लिखते हैं हर बार की तरह आज दिनांक 17 दिसम्बर का "टी टाइम" भी पूरे मनोयोग से सुना, परन्तु चिकित्सकीय परामर्श पर एक पखवाड़े के लिये मेरी आँखें विश्राम की मुद्रा में होने के कारण मैं कार्यक्रम पर विस्तृत टिप्पणी करने की स्थिति में नहीं हूँ, जिसका मुझे खेद है। जैसे ही स्थिति सामान्य हो जायेगी, मैं पूर्ववत अपनी विस्तृत प्रतिक्रिया प्रेषित करूँगा। धन्यवाद।सुरेश जी हम आपके जल्द से जल्द स्वस्थ होने की कामना करते हैं। कभी-कभी हमें लाइफ़ में विश्राम की भी जरूरत होती है। आप कुछ ही दिनों में फिर से उसी जोश और उत्साह के साथ हमें पत्र भेजने लगेंगे। आपकी उपस्थिति हमारे लिए बहुत मायने रखती है। धन्यवाद।

नीलमः अब पेश है, खुर्जा यूपी से तिलक राज अरोड़ा का पत्र। लिखते हैं कि अमेरिका के व्हाइट हाउस के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी काबिले तारीफ लगी। 14 दिसंबर को साल के दूसरे और आखिरी सूर्य ग्रहण के बारे में जो जानकारी सुनवायी गयी बेहतरीन लगी। ग्रहण का प्रभाव इंसानों पर ही नही पशु पक्षियों पर भी पड़ता है। इस विषय पर विस्तारपूर्वक जानकारी बहुत पसंद आयी।ब्रिटेन में एक नवजात बच्चे को एसएमए बीमारी हो गयी है, इसके इलाज के लिये 16 करोड़ का खर्चा आयेगा। हम ईश्वर से प्रार्थना करते है कि बच्चे के इलाज के लिये 16 करोड़ रुपये इकट्ठा हो जाये और बच्चे की जान भी बच जाये।अपने तो अपने होते है गीत सुना और पसंद आया।कार्यक्रम में श्रोताओं के पत्र सुनकर बहुत ही खुशी प्राप्त होती है।कार्यक्रम में जोक्स सुनकर बहुत ही आनंद आया।बेहतरीन कार्यक्रम टी टाइम सुनवाने के लिये हम आपका दिल से शुक्रिया प्रकट करते हैं।

अनिलः अब पेश है दरभंगा बिहार से शंकर प्रसाद शंभू का पत्र। लिखते हैं, पिछले प्रोग्राम में आपने बताया कि अमेरिका के विशालकाय राष्ट्रपति भवन 'व्हाइट हाउस' के किचन से लेकर सेमिनार रूम तक मात्र 5 घंटे में ही साफ-सफाई कर नए राष्ट्रपति के अनुकूल तैयार किया जाता है। कार्यक्रम से हमें ज्ञात हुआ कि अमेरिका के नियमानुसार नवनिर्वाचित नए राष्ट्रपति के आने और पुराने राष्ट्रपति के भवन से जाने के बीच मात्र 5 ही घंटों का अंतर रहता है। हमें यह भी पता चला कि व्हाइट हाउस को तैयार करते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि नए राष्ट्रपति आएं, तो उन्हें अपनी किताबों और कपड़ों से लेकर टूथब्रश भी जगह पर मिले। प्रत्येक सामान को नए राष्ट्रपति की पसंद और आवश्यकता को देखते हुए रखा जाता है। यह जानकारी सूचनाप्रद लगी।           वहीं 14 दिसंबर को साल का दूसरा और अंतिम सूर्य ग्रहण देखा गया। जानकर बहुत अच्छा लगा। जबकि अगली जानकारी में बताया गया कि मिस्र की राजधानी काहिरा निवासी 25 वर्षीय मोहम्मद हम्दी बोष्टा बिच्छुओं के ज़हर से लाखों का कारोबार करते हैं। वाकई में कहना होगा कि अगर काम करने का जुनून हो तो क्या नहीं किया जा सकता है। वहीं मनोरंजन खण्ड में हिन्दी गीत- बाकी सब सपने होते हैं अपने तो अपने होते हैं--- मधुर एवं कर्णप्रिय लगा। श्रोताओं की टिप्पणी और जोक्स भी बेहद पसन्द आये, जिसमें पप्पू और राहगीर वाला जोक अधिक गुदगुदाने वाली लगे।शंभू जी पत्र भेजने के लिए शुक्रिया। 

अब वक्त हो गया है जोक्स यानी हंसगुल्लों का। पहला जोक..

बंटू - जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, दिन-प्रतिदिनइंसान रईस बनता जाता है..!!.घंटु - वो कैसे..?.बंटू - बूढ़े होने पर चांदी बालों में, सोना दांतों में, मोती आखों मेंशुगर खून में और महंगे पत्थर किडनी में पाए जाने लगते हैं..!!दूसरा जोक

वो लड़के जो लड़कियों से बड़ी-बड़ी हांकते हुए कहते हैं...'मैं तुमको कभी भूल नही पाऊंगा!'..वो दुकान पर जा कर ये भूल जाते हैं किमम्मी ने दाल कौन सी वाली मंगवायी थी...!!

तीसरा जोक शाम को पति के घर आते ही पत्नी नेकिच-किच शुरू कर दी...!!!.परेशान पति - अरे यार दिनभर का थका-हारा आया हूं,पहले फ्रेश तो होने दो..!!.पत्नी - मैं भी तो दिनभर अकेली थी,तो मैं भी फ्रेश ही हो रही हूं...!!!

रेडियो प्रोग्राम