26 नवंबर 2020

2020-11-26 09:58:24

अनिलः सबसे पहले यह जानकारी।

दोस्तो, आज के समय में बिजली और मोबाइल जीवन का अभिन्न हिस्सा है। आज लगभग हर व्यक्ति बिजली और मोबाइल का इस्तेमाल करता है। बिना मोबाइल और बिजली के रहना काफी मुश्किल है, परंतु यूनाइटेड किंगडम में रहने वाले एक व्यक्ति के लिए बिजली और मोबाइल काफी खतरनाक हैं। 48 साल के इन शख्स को बिजली और मोबाइल रेडिएशन से एलर्जी है। इन शख्स के लिए उस स्थान पर रहना काफी मुश्किल होता है, जहां पर बिजली के उपकरण चल रहे हों या फिर मोबाइल का अधिक इस्तेमाल किया जा रहा हो।

इन शख्स का नाम ब्रूनो बैरिक है। ब्रूनो  नॉर्थहैम्प्टनशायर के रॉथवेल में रहते हैं। ब्रूनो इस एलर्जी की वजह से कैदी की तरह घर में ही रहते हैं। ब्रूनो चार साल पहले तक एकदम स्वस्थ थे। अब ब्रूनो काफी बूढ़े दिखने लगे हैं। इन चार सालों में ब्रूनो का वजन 31 किलोग्राम तक घट गया है।

ब्रूनो इलेक्ट्रोमैग्नेटिक हाइपरसेंस्टिविटी की समस्या से पीड़ित हैं। इसे इलेक्ट्रोसेंस्टिविटी भी कहा जाता है। इस बीमारी को इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड इनटॉलरेंस सिंड्रोम या इलेक्ट्रोफोबिया के नाम से भी जाना जाता है।

ब्रूनो बिल्डर और ग्रेहाउंड कुत्तों के ट्रेनर रहे हैं। ब्रूनो अपनी पत्नी लीजा और तीन बेटियों के साथ रहते हैं। ब्रूनो के परिवार के सदस्य बिजली के उपकरणों का कम से कम इस्तेमाल करते हैं। एक्सपर्ट के अनुसार ब्रिटेन में 4 फीसदी लोगों में इलेक्ट्रोसेंस्टिविटी की समस्या से परेशान हैं।

नीलमः अब एक और अजीबोगरीब जानकारी।

जर्मनी की पूर्व राजधानी रह चुके बॉन शहर में एक बेहद ही अजीबोगरीब कायदा है। सर्दी के मौसम के बाद अगर आप बॉन शहर पहुंचेंगे, तो देखेंगे की बहुत से लोग सड़कों पर मेंढकों को बकायदा सड़क पार करा रहे होंगे। बॉन में जैसे-जैसे गर्मी बढ़ती है, तो मेंढ़कों का यहां-वहां घूमना शुरू हो जाता है। दरअसल, गर्मी के मौसम की शुरुआत होने पर मेढक अपने सर्दी के ठिकाने से निकलते तो हैं, लेकिन नए ठिकाने पर पहुंचने के दौरान सड़कों पर तेज चलती गाड़ियों के नीचे दबकर मर जाते हैं। ऐसे में जर्मनी की कई स्वयंसेवी संस्थाओं ने उन्हें बचाने का जिम्मा ले लिया है।

मेंढकों को बचाने के लिए किए जा रहे उपयों के बारे में वाइल्डलाइफ कनजर्वेशन से जुड़ी एक संस्था की डायरेक्टर मोनिका हचटेल कहती हैं कि कई-कई बार तो ऐसा होता था कि बहुत सारे मेंढक गाड़ियों से कुचलकर मर जाते थे। ये देखते हुए हमने उन्हें सड़क पार करने के दौरान बचाने का जिम्मा ले लिया। अब कई संस्थाएं काफी समय से मेढको को सड़क पार कराने के लिए काम कर रही हैं।

मेंढकों को बचाने के लिए कई तरह के तरीकों को उपयोग में लाया जाता है। मेंढकों को सड़क पार कराने के लिए सड़कों के नीचे सुरंग बना दी जाती है, जहां से ये आराम से कभी भी इस पार से उस पार जा सकते हैं। इसके साथ ही मेंढकों को बचाने के लिए फेंसिंग बनाई गई हैं।

एनजीओ और जर्मनी की सरकार ने मिलकर पूरे बॉन शहर में 800 फेंसिंग बनवाई हैं, जो मेंढकों की सड़कों पर चलती गाड़ियों से सुरक्षा करती हैं। एनजीओ के लोग रोजाना फेंस चेक करते हैं और बंद हुए मेंढकों को पास के जंगल में छोड़ आते हैं।

विशेषज्ञों के मुताबिक, मेंढकों की ये प्रजाति जहरीले और नुकसान पहुंचाने वाले कीड़े-मकोड़ों को खाती है, इससे उनपर नियंत्रण रहता है। इसके साथ ही ये मच्छरों को भी खाते हैं। इन्हीं सब वजहों से मेंढकों को बचाना इतना जरूरी समझा जाता है। वैश्विक स्तर पर भी देखा जाए, तो मेंढकों की प्रजाति जिंदा रहना बहुत जरूरी है। मेढक पानी में मौजूद एल्गी खाते हैं, जिससे पानी की गुणवत्ता बनी रहती है।

अनिलः दोस्तो, अब आपको रूबरू करवाते हैं इस जानकारी से। हो सकता है कि आपने नखचिवन का नाम कभी न सुना हो। अजरबैजान का यह स्वायत्त गणराज्य ट्रांस-काकेशियन पठार पर स्थित है। नखचिवन चारों तरफ से अर्मेनिया, ईरान और तुर्की के बीच फंसा है। यह पूर्व सोवियत संघ के सबसे अलग-थलग आउटपोस्ट में से एक है और यहां ना के बराबर सैलानी आते हैं। अर्मेनिया की 80-130 किलोमीटर चौड़ी पट्टी इसे अपने देश अजरबैजान से अलग करती है। साढ़े चार लाख की आबादी दुनिया के सबसे बड़े लैंडलॉक एक्सक्लेव में रहती है।

इसका क्षेत्रफल बाली के बराबर है। यहां सोवियत काल की इमारतें हैं। सोने से जड़ी गुंबद वाली मस्जिदें हैं और लोहे की जंग जैसे लाल रंग के पहाड़ हैं। यहां के एक ऊंचे मकबरे में हजरत नबी को दफनाया गया था। पहाड़ पर बने मध्यकालीन किले को लोनली प्लैनेट ने "यूरेशिया का माचू पिचू" करार दिया था।

नखचिवन की राजधानी बेहद साफ-सुथरी है। हर सप्ताह सरकारी कर्मचारी यहां पेड़ लगाते हैं और सफाई करते हैं। बिखरते सोवियत संघ से सबसे पहले यहीं आजादी का एलान किया गया था- लिथुआनिया से कुछ महीने पहले। उसके एक पखवाड़े बाद ही यह अजरबैजान में शामिल हो गया था।  

नीलमः कोरोना वायरस से पूरी दुनिया परेशान है, लेकिन इसका वातावरण पर क्या असर देखने को मिल रहा है। जानिए।

संयुक्त राष्ट्र की मौसम एजेंसी का कहना है कि कोरोना वायरस महामारी के कारण औद्योगिक गतिविधियों के धीमे होने से प्रदूषणकारी तत्व और गर्मी बढ़ाने वाली ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम हुआ है, लेकिन वातावरण में उनके रिकॉर्ड स्तर में कमी नहीं आई है।

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में कार्बन डाईऑक्साइड के उत्सर्जन में बहुत बढ़ोतरी हुई है और उसने चेतावनी दी है कि महामारी से संबंधित औद्योगिक गतिविधियों की कमी के परिणामस्वरूप प्रदूषण के स्तर में किसी तरह की कमी के लाभ मिलने में सालों लग जाएंगे। संगठन ने यह भी कहा कि अगर सभी देश अपने ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में कटौती कर उसे शून्य तक पहुंचा दें तो इस लक्ष्य को सर्वश्रेष्ठ तरीके से प्राप्त किया जा सकता है।

डब्ल्यूएमओ महासचिव पेटेरी तालास ने सोमवार को संगठन के वार्षिक ग्रीनहाउस गैस बुलेटिन के ताजा संस्करण के विमोचन के बाद कहा, लॉकडाउन के कारण उत्सर्जन में कमी से दीर्घकालिक ग्राफ में एक छोटी सी अस्थायी गिरावट दर्ज हो सकती है। लेकिन हमें ग्राफ को लंबे समय तक सपाट रखना होगा। संगठन ने कहा, कोविड-19 जलवायु परिवर्तन के लिए समाधान नहीं है।

अनिलः अब चीन से जुड़ी एक ख़बर।

चीन चांद पर एक मानव-रहित मिशन भेजने की तैयारी कर रहा है। 1970 के दशक के बाद यह किसी भी देश का चांद पर ऐसा पहला मिशन होगा जो चांद से पत्थर के टुकड़े पृथ्वी पर लाने की कोशिश करेगा। मिशन का नाम चांग'इ के नाम पर रखा गया है, जिन्हें चीन में चांद की देवी माना जाता है।

इसका उद्देश्य है चांद से ऐसी सामग्री वापस पृथ्वी पर लाने का जिससे वैज्ञानिक उसके बनने के बारे में और जानकारी हासिल कर सकें। इस मिशन से चीन अंतरिक्ष से सैंपल धरती पर लाने की अपनी क्षमता का परीक्षण करना चाह रहा है।

अगर यह काम सफलतापूर्वक हो पाया तो फिर और मुश्किल मिशनों की तैयारी की जाएगी। अगर यह मिशन सफल रहा तो चीन चांद से सैंपल वापस लाने वाला तीसरा देश बन जाएगा। करीब दशकों पहले अमेरिका और सोवियत संघ यह उपलब्धि हासिल कर चुके हैं।

सोवियत संघ का लूना 2 मिशन 1959 में चांद की सतह से टकरा कर नष्ट हो गया था। उसके बाद जापान और भारत जैसे देश भी चांद पर मिशन भेज चुके हैं। अमेरिका का अपोलो चांद पर पहला मिशन था। इसके तहत 1969 से ले कर 1972 तक चांद पर छह उड़ानें भेजी और 12 अंतरिक्ष यात्रियों को चांद पर उतारा गया था। चीन का नया मिशन दो किलो वजन के सैंपल वापस लाने की कोशिश करेगा। ये नमूने ‘ओशियेनस प्रोसेलाराम’ नाम के एक ऐसे लावा के मैदान से लिया जाएगा जहां पहले कभी कोई भी मिशन नहीं गया।

इस मिशन से कई सवालों के जवाब मिल सकते हैं जैसे चांद में अंदर की तरफ कब तक ज्वालामुखी सक्रिय थे और सूर्य की किरणों से जीवों को बचाने के लिए आवश्यक चांद की अपनी चुंबकीय क्षेत्र कब नष्ट हुए। यदि पूरी प्रक्रिया सफल रही तो सैंपलों को वापस लौटने वाले एक कैप्सूल में डाल कर पृथ्वी पर वापस भेज दिया जाएगा।

नीलमः अब समय हो गया है श्रोताओं की टिप्पणी का। सबसे पहला पत्र आया है। खंड्वा मध्य प्रदेश से दुर्गेश नागनपुरे का। लिखते हैं, प्रिय अनिल भैया और बहन नीलम जी नी हाउ नमस्कार और वेरी गुड इवनिंग। हमें टी टाइम प्रोग्राम बेहद पसंद है। पिछला कार्यक्रम भी बहुत अच्छा लगा।  कार्यक्रम में दिवाली पर्व मनाये जाने के बारे में बताया गया, साथ ही कुत्ते की सोने की मूर्ति के बारे में जानकर बहुत आश्चर्य हुआ। साथ ही मजेदार जोक्स और हिन्दी गीत काफी मनभावन लगे । धन्यवाद।

दुर्गेश जी पत्र भेजने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया।

अनिलः अब पेश है, अगला पत्र। जिसे भेजा है खुर्जा यूपी से तिलक राज अरोड़ा ने। लिखते हैं 19 नवंबर का टी टाइम कार्यक्रम सुना और पसंद आया। कार्यक्रम में सुनवायी गयी जानकारियां काबिले तारीफ लगी। कार्यक्रम में जोक्स मनोरंजक लगे। श्रोताओं के पत्र भी सुने और पसंद आये। कार्यक्रम में जब हम पत्र लिखते हैं तो मोबाइल का सहारा लेते हैं जिस से पत्र लिखने में आसानी होती है परंतु 19 नवंबर का टी टाइम कार्यक्रम और इस से पहले 12 नवंबर का कार्यक्रम मोबाइल पर इतना बारीक लिखा आ रहा है जिसको हम पढ़ नही पाते हैं। इस लिये विस्तार पूर्वक पत्र नहीं लिख पा रहे हैं। कृपया इस और ध्यान दीजिये। पहले की तरह ही मोटे अक्षर से ही मोबाइल पर कार्यक्रम लोड करें। आशा है आप हमारी इस बात को समझ गए होंगे और आगे ध्यान रखेंगे।

अरोड़ा मोबाइल फांट संबंधी समस्या से अवगत कराने के लिए आपका शुक्रिया। हम इस बारे में तकनीकी विभाग से बात करेंगे। पत्र भेजने के लिए धन्यवाद।

नीलमः अब पेश है, केसिंगा उड़ीसा से सुरेश अग्रवाल का पत्र। लिखते हैं, आदरणीय अनिलजी एवं नीलमजी, नमस्कार। पिछला "टी टाइम" सीआरआई हिन्दी वेबसाइट के बदले हुये फ़ॉरमेट पर सुना। पहली नज़र में नया स्वरूप काफी पेचीदा नज़र आया और फ़ॉन्ट के अक्षर भी काफी महीन होने के कारण चीज़ें पढ़ने में काफी परेशानी हुई। सम्भव है कि उसमें अभी आवश्यक सुधार होना बाक़ी हो !

इस बारे में ध्यान दिलाने के लिए धन्यवाद। सुरेश जी। कुछ अन्य श्रोताओं ने भी इस बारे में शिकायत की है।

आगे लिखते हैं कि अमेरिका में एक 32 वर्षीय भारतीय कार्तिकेय मित्तल द्वारा सार्वजनिक स्थलों पर अत्यधिक घबराहट महसूस होने की स्थिति में इन्सान के काम आने वाले चेम्बर की ईज़ाद सम्बन्धी समाचार काफी महत्वपूर्ण लगा। यह अपने आप में एक बिलकुल नई तरह की खोज़ है और इसका इस्तेमाल बड़े हवाई अड्डे अथवा रेलवे स्टेशन आदि पर मददगार साबित हो सकता है। वहीं तुर्कमेनिस्तान के शासक गुरबांगुली बेर्दयमुखमेदोव द्वारा अपने पसंदीदा कुत्ते की 'सोने' की मूर्ति देश की राजधानी अश्गाबात के नए इलाके में  स्थापित कराया जाना पालतू जानवरों के प्रति उनके स्नेह  को दर्शाता है। 

जानकारियों के क्रम में नेपाल में दिवाली से अगले दिन मनाये जाने वाले कुकुर तिहार को दीवाली से जोड़ने वाली बात कुछ समझ में नहीं आयी, क्योंकि जैसा कि आपने बतलाया कि वहां दीवाली को तिहार कहा जाता है, जो कि कुकुर तिहार से पहले दिन मनाया जाता है, अतः अगले दिन मनाये जाने वाले कुकुर तिहार से इसका क्या सम्बन्ध ?  

अनिलः वहीं 1986 की परमाणु दुर्घटना के बाद चेर्नोबिल की स्थिति सामान्य होने सम्बन्धी जानकारी पाकर खुशी हुई। सैंकड़ों साल पहले समुद्र की गहराइयों में विलीन हुये दुनिया के शहरों पर दी गयी जानकारी भी अत्यंत सूचनाप्रद लगी। ख़ास कर खंभात के खोये हुये  शहर, मिस्र के प्राचीन शहर हेरास्लोइन तथा अलेक्जेंड्रिया और चीन के चच्यांग में शी चेंग नामक शहर पर दी गयी जानकारी अहम लगी। कुछ साल पहले एक जापानी टूरि स्ट गाइड द्वारा समुद्र के अंदर मौजूद पिरामिडों की खोज किये जाने सम्बन्धी जानकारी भी दिलचस्प लगी। टेक न्यूज़ में आगामी दो वर्षों में एपल के फोल्डेबल फ़ोन आने की संभावना का भी ज़िक्र किया गया, परन्तु यह बात समझ में नहीं आयी कि एपल का फोल्डेबल फ़ोन किस मायने में औरों से भिन्न होगा।

नीलमः अब आज का आखिरी खत। जिसे भेजा है दरभंगा बिहार से शंकर प्रसाद शंभू ने। लिखते हैं कि हमने पिछला प्रोग्राम ध्यान से सुना, जिसमें अमेरिका में एक भारतीय व्यक्ति द्वारा किसी त्रासदीपूर्ण घटना के बाद तनाव के कारण पैदा होने वाले मानसिक विकार से निपटने हेतु ‘रीबूट’ नामक अनूठा कक्ष तैयार किया जाने के बारे में बताया गया।

वहीं सड़क के चौराहों या पार्कों में नेताओं की मूर्ति तो हमेशा देखी जाती है, किन्तु तुर्कमेनिस्तान की राजधानी अश्गाबात के नए इलाके में वहाँ के सत्ता पर काबिज शासक ने अपने पसंदीदा कुत्ते की 'सोने' की मूर्ति बनवाई है। वर्ष 2007 में ही उस कुत्ते की विशाल मूर्ति का अनावरण किया गया और उसे तुर्कमेनिस्तान की राष्ट्रीय पहचान का हिस्सा माना जाता है। साथ ही बताया गया कि यूक्रेन की राजधानी किएव से थोड़ी दूरी पर स्थित तीस किलोमीटर के क्षेत्रफल में चेर्नोबिल एक निषेध जोन है, क्योंकि 26 अप्रैल 1986 को चेर्नोबिल न्यूक्लियर प्लांट की यूनिट-4 में परमाणु विस्फोट हुआ था जिससे हवा में रेडियोएक्टिव मटेरियल घुल गया था। वाकई में आश्चर्यजनक जानकारी लगी।   

अनिलः  इसके अलावा आपने कुछ ऐसे शहरों की चर्चा की, जो इतिहास का हिस्सा बनते हुए अब समुद्र की गहराइयों में विलीन हो गए हैं।  

वहीं मनोरंजन खण्ड में हिन्दी गीत- मेरा क्यूँ वेशक है तुझपे ही तो मेरा हक है----  मधुर एवं रोमांटिक लगा। श्रोताओं की टिप्पणी और जोक्स भी पसन्द आये, जिसमें पति-पत्नी वाला जोक अधिक गुदगुदाने वाला लगा। शंभू जी पत्र भेजने के लिए शुक्रिया।

अब बारी है जोक्स की।

पहला जोक

पिताजी - क्यों रो रहे हो बेटा...?.पप्पू - टीचर ने मारा...पिताजी - तुमने ही कुछ गलती की होगी.पप्पू - नहीं पापा, मैं तो बस आराम से सो रहा था...!!!

दूसरा जोक

लड़की - आटा देना भैया...!दुकानदार - हमारे पास पतंजलि का है बेटालड़की - मुझे आशीर्वाद चाहिए...!दुकानदार - सदा सुखी रहो बेटा!!!

तीसरा जोक

पिता - बेटा तुमने दो साल की कॉलेज लाइफ मेंसबसे मुश्किल काम कौन सा सीखा...? 

बेटा - बस की छत पर बैठकर तेज हवाओं में एक तीलीसे तीन सिगरेट जलाना...!!!

रेडियो प्रोग्राम