19 नवंबर 2020

2020-11-19 11:56:55

अनिलः अमेरिका में एक भारतीय ने ऐसा अनूठा चैंबर (कक्ष) तैयार किया है। उसका इस्तेमाल सार्वजनिक स्थान पर अत्यधिक घबराहट महसूस होने के समय किया जा सकता है। दावा किया गया है कि इसके इस्तेमाल से भावनाओं पर काबू पाने  में मदद मिलेगी।

32 वर्षीय कार्तिकेय मित्तल ने पीटीएसडी यानी किसी त्रासदीपूर्ण घटना के बाद तनाव के कारण पैदा होने वाले मानसिक विकार (पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर) से निपटने में मदद करने के लिए कक्ष तैयार किया है। विकार के कारण व्यक्ति के सामाजिक जीवन में कई समस्याएं पैदा हो सकती हैं और उसे रोजाना के काम करने में भी परेशानी आ सकती है।

मित्तल ने डिजाइन और इंजीनियरिंग में अपने ज्ञान और मनोचिकित्सा क्षेत्र में अनुसंधान की मदद से ‘रीबूट’ नामक कक्ष बनाया है। कक्ष को विश्वविद्यालय परिसरों, अस्पतालों, हवाई अड्डों, मॉल और भीड़ वाले अन्य स्थानों पर लगाया जा सकता है।

यह कक्ष संवेदी उद्दीपन को नियंत्रित करता है और ऐसा माहौल मुहैया कराता है, जिसमें व्यक्ति बिना किसी बाधा के अपनी भावनाओं पर काबू पा लेता है। ‘रीबूट’ के नाम से बनाए गए कक्ष की चौड़ाई पांच फीट और ऊंचाई 7.5 फुट है और इसे चार फुट तक गहरा किया जा सकता है।

नीलमः वहीं सड़क के चौराहों या पार्क में आप सभी ने नेताओं की मूर्ति तो खूब देखी होगी, लेकिन क्या आपने कभी ये सोचा है कि आप किसी सड़क पर चल रहे हों और चौराहे पर किसी जानवर की मूर्ति आपको लगी दिखे। भले ही आपको ये बात थोड़ी अजीब लग रही हो, लेकिन तुर्कमेनिस्तान के शासक ने अपने पसंदीदा कुत्ते की 'सोने' की मूर्ति बनवाई है।

तुर्कमेनिस्तान की सत्ता पर काबिज गुरबांगुली बेर्दयमुखमेदोव ने यह मूर्ति राजधानी अश्गाबात के नए इलाके में बनवाई है। साल 2007 से राज कर रहे गुरबांगुली बेर्दयमुखमेदोव ने पिछले साल इस कुत्ते की विशाल मूर्ति का अनावरण किया। बता दें कि बेर्दयमुखमेदोव अलबी प्रजाति के कुत्ते को काफी पसंद करते हैं। कुत्ते की यह प्रजाति देश में ही पैदा होती है और इसे तुर्कमेनिस्तान की राष्ट्रीय पहचान का हिस्सा माना जाता है।

इस कुत्ते की 50 फुट ऊंची मूर्ति पर 24 कैरेट सोने की परत चढ़ाई गई है। कुत्ते की यह मूर्ति अश्गाबात के जिस इलाके में बनाई गई है, वह सरकारी अधिकारियों के रहने के लिए बनाया गया है। इस इलाके में मार्बल से बनी कई इमारतें, स्कूल, खेल मैदान, सिनेमा हॉल, पार्क और दुकानें हैं।

इतना ही नहीं गुरबांगुली बेर्दयमुखमेदोव ने कुत्ते की इस प्रजाति को समर्पित करके कई किताबें और कविताएं लिखी हैं। इस कुत्ते को वो उपलब्धि और विजय का प्रतीक मानते हैं। बेर्दयमुखमेदोव ने तो एक बार इस प्रजाति के कुत्ते को रूस के राष्ट्रपति को गिफ्ट के रूप में दिया था।

एक ओर तुर्केमेनिस्तान के शासक ने कुत्ते की मूर्ति बनवाने के लिए इतना सारा पैसा खर्च कर दिया, तो वहीं दूसरी ओर देश की जनता गरीबी में जिंदगी गुजारने के लिए मजबूर है। भले ही देश की अर्थव्यवस्था तेल और प्राकृतिक गैस की वजह से तेजी से बढ़ रही है, लेकिन इसका फायदा सिर्फ अमीरों को हो रहा है।

अनिलः एक और जानकारी। जैसा कि हम जानते हैं कि

दिवाली के समय देश रोशनी से जगमगा उठता है। दिवाली हिंदू धर्म का एक बड़ा त्योहार है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन भगवान राम 14 वर्षों का वनवास पुरा कर अयोध्या वापस लौटे थे। हर जगह इस दिन उत्साह का महौल होता है। बता दें कि इस दिन धन की देवी मां लक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है। वैसे तो दिवाली भारत समेत दुनिया के कई देशों में मनाई जाती है, लेकिन एक देश ऐसा भी है जहां दिवाली कुछ अलग ढंग से मनाई जाती है।

दरअसल, भारत के पड़ोसी देश नेपाल में दिवाली मनाई तो जाती है, लेकिन यहां लक्ष्मी-गणेश की नहीं बल्कि कुत्तों की पूजा की जाती है। नेपाल में दिवाली को तिहार कहा जाता है। यह बिल्कुल वैसे ही मनाई जाती है जैसे भारत में दिवाली मनाई जाती है। नेपाल में लोग इस दिन दीये जलाते हैं, नए कपड़े पहनते हैं, खुशियां बांटते हैं। लेकिन इसके अगले ही दिन एक और दिवाली मनाई जाती है। इस दिवाली को कुकुर तिहार कहा जाता है। कुकुर तिहार पर कुत्तों की पूजा की जाती है।

खास बात यह है कि यह दिवाली यहीं खत्म नहीं होती, बल्कि पांच दिन चलती है। इस दौरान लोग अलग-अलग जानवर जैसे गाय, कुत्ते, कौआ, बैल आदि की पूजा करते हैं। कुकुर तिहार पर कुत्तों को सम्मानित किया जाता है। उनकी पूजा की जाती है, फूलों की माला पहनाई जाती है और तिलक भी लगाया जाता है।

नीलमः अब एक और जानकारी का समय हो गया है। एक वक्त में चेर्नोबिल में लोगों को जाने की मनाही थी। वजह 33 साल पहले 1986 में हुआ परमाणु हादसा। लेकिन वक्त बीतने के साथ चेर्नोबिल अब धीरे-धीरे रोमांच पसंद करने वाले घुमक्कड़ों को अपनी ओर खींच रहा है। इनमें से कुछ घुमक्कड़ तो ऐसे हैं, जो चेर्नोबिल में हाल ही में सरकार की ओर से खोले गए हॉस्टल में पूरी रात गुजार रहे हैं। दुनिया के सबसे खतरनाक परमाणु हादसे वाली जगह में लोगों की ऐसी दिलचस्पी तनिक हैरान करती है। भारत से यूक्रेन की दूरी करीब पांच हजार किलोमीटर है। यूक्रेन की राजधानी किएव से दो घंटे की दूरी पर 30 किलोमीटर के क्षेत्रफल में चेर्नोबिल एक्सक्लूयजन (निषेध) जोन है। इसे दुनिया की उन चंद खतरनाक जगहों में गिना जाता है, जहां लोग एक तय वक्त तक ही ठहर सकते हैं। ऐसा न करना खतरे को दावत दे सकता है।

इस जगह कोई यूं ही आसानी से नहीं पहुंच सकता। हमें यहां पहुंचने के लिए सरकार से खास इजाजत और रेडिएशन मॉनीटर करने वाले उपकरणों से लैस होना होता है। हर सुबह एक स्पेशल टूर गाइड और यहां घूमने वाले लोगों के साथ एक बस इस वीरान इलाके में आती है। साल 2011 में यूक्रेन की सरकार के इस जगह को पर्यटकों को खोलने के बाद अब तक हजारों लोग यहां आ चुके हैं। यहां आने वाले लोगों में विदेशी भी शामिल होते हैं। ऐसे में सरकार ने कुछ वक्त पहले ही एक्सक्लूजिव जोन के भीतर एक नया हॉस्टल खोला है। यहां आप सिर्फ 500 रुपये खर्च कर एक रात गुजार सकते हैं। 96 बेड वाले इस हॉस्टल का व्यापार तेजी से बढ़ रहा है। वजह हैं अमेरिका, ब्राजील, चेक रिपब्लिक, पोलैंड और यूके से आने वाले पर्यटक।

हॉस्टल मैनेजर स्विटलाना ग्रित्सेंको बताती हैं, 'जब लोग यहां ठहरने आते हैं तो उन्हें ये साफ तौर पर चेता दिया जाता है कि बाहर रुकना ज्यादा सुरक्षित नहीं है।' चेर्नोबिल पहली नजर में ऐसा मालूम होता है, जैसे ये अब भी पुराने दौर में अटका हुआ है। लेकिन चेर्नोबिल का ये होस्टल मेहमानों के लिए बनाए गए आधुनिक टी-रूम और तेज स्पीड वाले वाई-फाई से लैस है।

अनिलः चेर्नोबिल घूमने के अनुभव वाकई अजब गजब हैं। पर्यटकों को रेडिएशन चैक से होकर गुजरना होता है। यहां बच्चों को जाने की इजाजत नहीं है। इस बात को लेकर सख्त नियम हैं कि चेर्नोबिल की किस जगह बिलकुल नहीं जाना है और किसी भी चीज को हाथ नहीं लगाना है।

यहां जाने से पहले गाइड एक पेपर साइन करवाते हैं। इस पेपर में यहां के नियम और शर्तें लिखी हुई हैं। गाइड बताते हैं कि क्या खाना है, क्या पीना और घूम्रपान करना है या नहीं करना है। इस जगह से जाने से पहले जो रेडिएशन चैक होता है। उस चैक में फेल होने पर यहां आए लोगों को अपने जूते भी यहां छोड़कर जाने पड़ सकते हैं। लेकिन ऐसी चेतावनियों का रोमांच पसंद करने वाले पर्यटकों पर कोई असर पड़ता हुआ नजर नहीं आता है।

अब चेर्नोबिल से 20 किलोमीटर दूर प्रिप्यात की तरफ चलते हैं। 26 अप्रैल 1986 को चेर्नोबिल न्यूक्लियर प्लांट की यूनिट-4 में विस्फोट हुआ था और हवा में रेडियोएक्टिव मटेरियल घुल गया था। इस हादसे के बाद मानों प्रिप्यात के लिए वक्त जैसे थम गया है। इस हादसे के कुछ ही हफ्तों के भीतर 30 कर्मचारी और मदद करने पहुंचे अपनी जान गंवा चुके थे। तब इस इलाके के करीब दो लाख लोगों को बचा लिया गया था।

नीलमः वहीं कुछ और रोचक जानकारी से रूबरू करवाते हैं। आज से कई सौ साल पहले दुनिया में ऐसे-ऐसे शहर हुआ करते थे, जो अब इतिहास का हिस्सा बन गए हैं। ये शहर अब समुद्र की गहराइयों में विलीन हो गए हैं। आज हम आपको कुछ ऐसे ही शहरों के बारे में बताने जा रहे हैं, जो रहस्यमय तो हैं ही, साथ ही वो समुद्र की अनंत गहराइयों में डूब गए थे।

खंभात का खोया हुआ शहर

इसे खंभात का खोया हुआ शहर कहते हैं, जो 17 साल पहले खंभात की खाड़ी (भारत) में मिला था। बताया जाता है कि यह शहर करीब 9500 साल पहले समुद्र में डूब गया था। साल 2002 में विशेषज्ञों ने इसे खोज निकाला। हालांकि यह अभी भी रहस्य ही है कि यह आखिर कैसे डूबा?

हेरास्लोइन शहर

ये है मिस्र का प्राचीन शहर हेरास्लोइन, जो करीब 1200 साल पहले समुद्र में समा गया था। कुछ साल इसकी खोज की गई। इतिहासकार हेरोटोडस के मुताबिक, यह शहर बेशुमार दौलत के लिए मशहूर था। गोताखोरों को यहां से खजाना भी मिल चुका है

अलेक्जेंड्रिया

ये है सिकंदर का शहर अलेक्जेंड्रिया (मिस्र), जो करीब 1500 साल पहले भयानक भूकंप के कारण समुद्र में डूब गया था। पानी में इसके खंडहर आज भी मौजूद हैं, जो इस शहर की विरासत को बयां करते हैं।

अनिलः चीन के चच्यांग में शी चेंग नाम का एक शहर हुआ करता था, जो करीब 1300 साल पुराना था, लेकिन साल 1959 में यह शहर गहरी झील में डूब गया। इसे 'लायन सिटी' के नाम से जाना जाता है। हैरानी की बात ये है कि इस शहर के खंडहर आज भी पानी के अंदर बिल्कुल सही स्थिति में हैं।

मिस्र में तो आपने कई पिरामिड देखें होंगे, लेकिन क्या कभी समुद्र के अंदर पिरामिड देखा है। दरअसल, जापान में कुछ साल पहले एक टूरिस्ट गाइड ने समुद्र के अंदर मौजूद इन पिरामिडों को खोज निकाला था। इसे योनगुनी शहर के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि यह शहर कभी पौराणिक महाद्वीप का हिस्सा था।

टेक न्यूज़

सैमसंग, मोटोरोला और हुवावे जैसी अधिकतर मोबाइल कंपनियों के फोल्डेबल फोन बाजार में आ चुके हैं लेकिन एपल अभी इस मामले में पीछे है। अब खबर है कि साल 2022 में एपल का फोल्डेबल आईफोन बाजार में दस्तक दे सकता है। एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि सितंबर 2022 में एपल अपना पहला फोल्डेबल आईफोन पेश करेगा। रिपोर्ट के मुताबिक एपल फोल्डोबल फोन को लेकर ताइवान के सप्लायर Hon Hai और Nippon Nippon के साथ बात कर रहा है।

कहा जा रहा है कि एपल का पहला फोल्डेबल फोन OLED या MicroLED स्क्रीन के साथ आएगा। एपल के फोल्डेबल आईफोन की डिस्प्ले की सप्लाई सैमसंग करेगा। रिपोर्ट के मुताबिक आईफोन के फोल्डेबल डिस्प्ले की टेस्टिंग भी चल रही है।

डिस्प्ले पैनल के लिए सैमसंग के अलावा Nikko के साथ भी बात चल रही है, जबकि फोल्डेबल आईफोन को असेंबल करने के लिए ताइवान की कंपनी Hon Hai से बात हो रही है, हालांकि यह पहली रिपोर्ट नहीं है जिसमें फोल्डेबल आईफोन को लेकर दावा किया गया है। इससे पहले भी कई रिपोर्ट में इस तरह के दावे किए गए हैं। इसी साल फरवरी में एपल के फोल्डेबल आईफोन का पेटेंट लीक हुआ था जिसमें देखा जा सकता था कि दो डिस्प्ले के बीच काफी जगह दी गई है, ताकि मुड़ने पर उसमें किसी प्रकार की कोई खराबी ना आए।

नीलमः अब वक्त हो गया है श्रोताओं की टिप्पणी का।

पहला पत्र हमें भेजा है खंडवा मध्य प्रदेश से दुर्गेश नागनपुरे ने। लिखते हैं हमारी ओर से सीआरआई हिन्दी सेवा की पूरी टीम और सभी श्रोता बंधुओं को दीपावली पर्व की हार्दिक शुभकामनायें।

है रोशनी का यह त्योहार, लाए हर चेहरे पर मुस्कान, सुख और समृद्धि  की बहार, समेट लो सारी खुशियां, अपनों का साथ और प्यार, इस पावन पर्व को दिवाली का प्यार।

दुर्गेश जी दीवाली बीत चुकी है। फिर भी आप सभी को शुभकामनाएं।

अनिलः अब पेश है केसिंगा उड़ीसा से सुरेश अग्रवाल का पत्र। जो कि दीपावली से पहले लिखा गया है। लिखते हैं नमस्कार। भारत में आज 'धनतेरस' है और दो दिन बाद दीपों का त्योहार 'दीपावली' मनाया जाना है। अतः आज सर्वप्रथम आप सभी इन तमाम त्योहारों की हार्दिक शुभकामनाएं स्वीकार करें। सुरेश जी दीवाली का त्यौहार जा चुका है। फिर भी आप सभी को दीपों के पर्व की ढेर सारी शुभकामनाएं।

लिखते हैं, हर बार की तरह साप्ताहिक "टी टाइम" का इस बार का अंक भी ध्यानपूर्वक सुना, जो कि अपने आप में तमाम महत्वपूर्ण जानकारियां समेटे हुये था।  छत्तीसगढ़ प्रदेश के जशपुर जिले में आदिवासी बहुल गांव और शहरों में घर-मकानों की पुताई काले रंग से किये जाने का मनोविज्ञान समझाती जानकारी से कार्यक्रम का आगाज़ किया जाना अच्छा लगा। वैसे काले रंग की मिट्टी से घरों की लिपाई का चलन यहां ओड़िशा में कालाहाण्डी ज़िले के आदिवासी बहुल क्षेत्रों में होना भी आम बात है। ये मकान वैसे भी कच्ची-मिट्टी ही के बने होते हैं।

वर्ष 2003 में इराक़ में हुई बैंक डकैती में राष्ट्रपति के बेटे के शामिल होने वाली बात हैरान करने वाली लगी। जहां देश के प्रथम नागरिक का बेटा ही चोरी-डकैती की घटनाओं में संलिप्त हो, उसकी साख के बारे में सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। 

कोरोना वायरस के कारण दिल्ली मेट्रो की अपनी नौकरी गंवाने वाले अल्मोड़ा जिले के दान सिंह द्वारा पहाड़ी घास से हर्बल चाय बना लाखों रुपये कमाने का किस्सा प्रेरक लगा। 

नीलमः आज़ादी के बाद हैदराबाद रियासत को भारतीय गणराज्य का हिस्सा बनाने में सरदार पटेल की भूमिका के बारे में सुन कर ज्ञात हुआ कि उन्हें लौहपुरुष क्यों कहा जाता है। वहीं निज़ाम हैदराबाद के पास रखे कोहिनूर तथा 185 कैरेट के जैकब हीरे पर भी अहम जानकारी हासिल हुई। इस जानकारी से यह भी स्पष्ट हो जाता है कि कोहिनूर हीरा भारत की मिल्कियत है और ब्रिटेन उसे भारत को लौटाने में नाहक़ इन्कार कर रहा है।

इन तमाम जानकारियों के साथ कार्यक्रम में पेश श्रोताओं की राय एवं चुटीले जोक्स भी काफी उम्दा लगे। धन्यवाद फिर एक जानदार प्रस्तुति के लिये।

सुरेश जी पत्र भेजने के लिए शुक्रिया। उम्मीद करते हैं आपके साथ हमारा साथ यूं ही बना रहेगा।

सुरेश जी पत्र भेजने के लिए शुक्रिया।

अनिलः अब बारी है जोक्स की।

पहला जोक

एक महाकंजूस पति अपनी पत्नी के साथ कहीं घूमने गया।

.पत्नी - सुनो जी, मुझे प्यास लगी है। पानी की एक बोतल ले लीजिए।

.पति - दही कचौरी खाएगी क्या...?

.पत्नी - एजी, ऐसे मत बोलिए, मेरे तो मुंह में पानी आ गया।

.

पति - बस, तो उसी को पी ले। बोतल में क्या डूब के मरना है...!!!

दूसरा जोक

औलाद चाहे

कितनी भी बिगड़ैल हो लेकिन

शादी के कार्ड में

'सुपुत्र' लिखवाना ही

पड़ता है।

तीसरा जोक

2000 का नोट और

एक्स-रे की रिपोर्ट

.

बन्दा भले ही उसके

विषय में कुछ भी ना जानता हो

.

पर हाथ में आते ही

ऊंचा करके देखता जरूर है।

रेडियो प्रोग्राम