22 अक्तूबर 2020

2020-10-22 07:55:02 CRI

अनिलः जानकारी.....दोस्तो, हर किसी का सपना होता है कि उसे अच्छी तनख्वाह वाली नौकरी मिल जाए। ऐसे में अगर किसी को केवल बिस्किट खाने के लिए नौकरी ऑफर की जाए और 40 लाख रुपये की सैलरी भी दी जाए, तो उसके खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहेगा।

बता दें कि स्कॉटलैंड की बिस्किट निर्माता कंपनी 'बॉर्डर बिस्किट' ने कुछ इसी तरह की नौकरी के लिए आवेदन मांगे है। इस कंपनी को अपने लिए 'मास्टर बिस्किटर' की तलाश है। मास्टर बिस्किटर का मतलब ये है कि कंपनी अपने बिस्किट टेस्ट करने के लिए लोगों को नौकरी पर रखेगी और इसके बदले सालाना 40 हजार पाउंड यानि लगभग 40 लाख रुपये का पैकेज देगी।

हालांकि, कंपनी इसके लिए आवेदकों में कुछ खास हुनर भी ढूंढ रही है। इस नौकरी के लिए आवेदक को बिस्किट का स्वाद और बिस्किट उत्पादन की गहरी समझ रखने के साथ ही नेतृत्व कौशल और बातचीत में भी माहिर होना होगा। कंपनी का कहना है कि जो भी आवेदक ग्राहकों से बेहतर संबंध बनाने के लिए दिलचस्प उपाय का सुझाव देंगे, उन्हें नौकरी में तवज्जों दी जाएगी।

कंपनी के प्रबंध निदेशक पॉल पार्किंस का कहना है कि वह देश भर के लोगों को आवेदन के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। उन्होंने कुछ अच्छे प्रतिभागियों को इंटरव्यू के लिए भी बुलाया है। पॉल पार्किंस ने बताया कि ‘बॉर्डर बिस्किट्स’ द्वारा निकाली गई यह वैकेंसी फुल टाइम होगी। इसके अलावा कर्मचारी को साल में 35 दिन की छुट्टी भी मिलेगी।

पॉल पार्किंस का कहना है कि यह नौकरी किसी के लिए भी अपने सपने को सच करने का एक अविश्वसनीय अवसर है।

नीलमः वहीं अब बात विज्ञान की करते हैं। जीवविज्ञान के मुताबिक, होमो वंश में इंसान की बहुत सारी प्रजातियां हैं, जिसमें हम होमो सेपियन्स भी शामिल हैं। लेकिन आज के समय में होमो की केवल यही एक प्रजाति बची है। इंसान से जुड़ी बहुत सारी प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं। हालांकि ऐसा क्यों और कैसे हुआ इस सवाल का जवाब वैज्ञानिक कई सालों से खोज रहे हैं। लेकिन हाल ही में हुए एक अध्ययन में इस सवाल का जवाब मिल गया है।

नए अध्ययन के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन के कारण तेजी से बदले तापमान ने इन सभी प्रजातियों को विलुप्त करने में अहम भूमिका निभाई। शोध का कहना है कि मानव की कई प्रजातियां इन बदलावों से तालमेल नहीं मिला सके और इसमें नाकाम होने के कारण विलुप्त हो गए। अध्ययन कर रही टीम ने स दौर के जलवायु परिवर्तनों की स्थितियों का आंकलन करते हुए विलुप्त प्रजातियों के जीवाश्मों को भी अपने शोध में शामिल किया।

वन अर्थ जर्नल में प्रकाशित हुए इस शोध में कहा गया है कि आग और पत्थर के हथियारों के आविष्कार के कारण एक बड़े सामाजिक नेटवर्क बन गए थे। इसके अलावा कपड़ों का उपयोग और जेनेटिक आदान प्रदान भी बहुत सारे होमो सेपियन्स का बचाव नहीं कर सका था। इंसान से जुड़ी ये प्रजातियां तकनीकी विकास और क्रांतिकारी आविष्कारों के बावजूद भी बदलती जलवायु के साथ सामंजस्य नहीं बना सके थे।

शोध में यह बात सामने आई कि होमो सेपियन्स जिसमें एच इरेक्टस, एच हेडिलबर्जेनिसिस और एच निएंडरथलेंसिस ने अपनी काफी संख्या में आवास जलवायु परिवर्तन के कारण विलुप्त होने से ठीक पहले खो दिए थे। यह उस दौर की बात है जब वैश्विक जलवायु में बहुत सारे अनचाहे बदलाव हो रहे थे। इसके साथ ही निएंडरथॉल को होमो सेपियन्स से संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा करनी होती थी, जिससे उनकी मुश्किलें और ज्यादा बढ़ गई।

अनिलः अब एक और जानकारी।

अस्पतालों में आपने डॉक्टरों को हमेशा हरे या नीले रंग का कपड़ा पहनते देखा होगा। यह कपड़ा डॉक्टर तब पहनते हैं, जब किसी का ऑपरेशन करना होता है। लेकिन क्या आपने कभी ये सोचा है कि आखिर ऑपरेशन के समय डॉक्टर हरे या नीले रंग का ही कपड़ा क्यों पहनते हैं।

कहा जाता है कि पहले डॉक्टरों से लेकर अस्पताल के सभी कर्मचारी सफेद कपड़े पहने रहते थे, लेकिन साल 1914 में एक प्रभावशाली डॉक्टर ने इस पारंपरिक ड्रेस को हरे रंग में बदल दिया। तब से यह चलन ही बन गया। हालांकि, कुछ-कुछ डॉक्टर नीले रंग के भी कपड़े पहनते हैं। अगर आपने ध्यान दिया होगा तो अस्पताल में पर्दों का रंग भी हरा या नीला ही होता है। इसके अलावा अस्पताल के कर्मचारियों के कपड़े और मास्क भी हरे या नीले रंग के ही होते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर हरे रंग या नीले रंग में ऐसा क्या खास है, जो अन्य किसी रंग में नहीं?

टूडे सर्जिकल नर्स के 1998 के अंक में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, सर्जरी के समय डॉक्टरों ने हरे रंग का कपड़े पहनने इसलिए शुरू किए, क्योंकि ये आंखों को आराम देते हैं। अक्सर ऐसा होता है कि जब भी हम किसी एक रंग को लगातार देखने लगते हैं तो हमारी आंखों में अजीब सी थकान महसूस होने लगती है। हमारी आंखें सूरज या फिर किसी भी दूसरी चमकदार चीज को देख कर चौंधिया जाती हैं। लेकिन इसके तुरंत बाद अगर हम हरे रंग को देखते हैं, तो हमारी आंखों को सुकून मिलता है।

अगर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो हमारी आंखों का जैविक निर्माण कुछ इस प्रकार से हुआ है कि ये मूलतः लाल, हरा और नीला रंग देखने में सक्षम हैं। इन रंगों के ही मिश्रण से बने अन्य करोड़ों रंगों को इंसानी आंखें पहचान सकती हैं। लेकिन इन सभी रंगों की तुलना में हमारी आंखें हरा या नीला रंग ही सबसे अच्छी तरह देख सकती हैं।

हमारी आंखों को हरा या नीला रंग उतना नहीं चुभता, जितना कि लाल और पीला रंग आंखों को चुभते हैं। इसी कारण हरे और नीले रंग को आंखों के लिए अच्छा माना जाता है। यही वजह है कि अस्पतालों में पर्दे से लेकर कर्मचारियों के कपड़े तक हरे या नीले रंग के ही होते हैं, ताकि अस्पताल में आने और रहने वाले मरीजों की आंखों को आराम मिल सके, उन्हें कोई परेशानी न हो।

डॉक्टर ऑपरेशन के समय हरे रंग के कपड़े इसलिए भी पहनते हैं, क्योंकि वह लगातार खून और मानव शरीर के अंदरूनी अंगों को देखकर मानसिक तनाव में आ सकते हैं, ऐसे में हरा रंग देखकर उनका मस्तिष्क उस तनाव से मुक्त हो जाता है।

नीलमः क्या आपको पता है कि हमारे सौरमंडल में अनेक ग्रह और उपग्रह हैं और इनमें सबसे बड़ा ग्रह बृहस्पति है, जो गैसों का एक समूह है। इसे शनि, अरुण और वरुण ग्रह के साथ एक गैसीय ग्रह के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इस ग्रह के बारे में लोग प्राचीन काल से ही जानते हैं। साथ ही यह ग्रह अनेक संस्कृतियों की पौराणिक कथाओं और धार्मिक विश्वासों के साथ भी जुड़ा हुआ है। भारत में इस ग्रह को 'गुरु' के नाम से भी जाना जाता है। वहीं अंग्रेजी में इसे 'जुपिटर' के नाम से जाना जाता है। इस ग्रह का नाम रोमन सभ्यता ने अपने पौराणिक देवता 'जुपिटर' के नाम पर रखा था।

गौरतलब है कि पृथ्वी पर जहां एक दिन 24 घंटे का होता है तो वहीं बृहस्पति ग्रह पर एक दिन मात्र नौ घंटा और 55 मिनट का ही होता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि पृथ्वी के 11.9 साल में बृहस्पति ग्रह का एक साल होता है। बृहस्पति एक चौथाई हीलियम द्रव्यमान के साथ मुख्य रूप से हाइड्रोजन से बना हुआ है। यह सदा अमोनिया क्रिस्टल और संभवतः अमोनियम हाइड्रोसल्फाइड के बादलों से ढंका हुआ रहता है। इस ग्रह पर कोई धरातल नहीं है। ऐसे में यहां इंसानों का रहना लगभग असंभव है।

इस ग्रह का अपना शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण बल है और इसी वजह से इसे सौरमंडल का 'वैक्यूम क्लीनर' भी कहा जाता है। दरअसल, यह सौरमंडल में आने वाले बाहरी उल्कापिंडों को अपनी ओर खींच लेता है और उन्हें उनके हमले से बचाता है।

अनिलः अब पेश है प्रेरक कहानी, जो भेजी है सुरेश अग्रवाल जी ने।

कहानी..

कालिदास बोले :- माते पानी पिला दीजिए बड़ा पुण्य होगा.

स्त्री बोली :- बेटा मैं तुम्हें जानती नहीं. अपना परिचय दो।

मैं अवश्य पानी पिला दूंगी।

कालिदास ने कहा :- मैं पथिक हूँ, कृपया पानी पिला दें।

स्त्री बोली :- तुम पथिक कैसे हो सकते हो, पथिक तो केवल दो ही हैं सूर्य व चन्द्रमा, जो कभी रुकते नहीं हमेशा चलते रहते। तुम इनमें से कौन हो सत्य बताओ।

कालिदास ने कहा :- मैं मेहमान हूँ, कृपया पानी पिला दें।

स्त्री बोली :- तुम मेहमान कैसे हो सकते हो ? संसार में दो ही मेहमान हैं।

पहला धन और दूसरा यौवन। इन्हें जाने में समय नहीं लगता। सत्य बताओ कौन हो तुम ?

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(अब तक के सारे तर्क से पराजित हताश तो हो ही चुके थे)

कालिदास बोले :- मैं सहनशील हूं। अब आप पानी पिला दें।

स्त्री ने कहा :- नहीं, सहनशील तो दो ही हैं। पहली, धरती जो पापी-पुण्यात्मा सबका बोझ सहती है। उसकी छाती चीरकर बीज बो देने से भी अनाज के भंडार देती है, दूसरे पेड़ जिनको पत्थर मारो फिर भी मीठे फल देते हैं। तुम सहनशील नहीं। सच बताओ तुम कौन हो ?

(कालिदास लगभग मूर्च्छा की स्थिति में आ गए और तर्क-वितर्क से झल्लाकर बोले)

कालिदास बोले :- मैं हठी हूँ ।

.स्त्री बोली :- फिर असत्य. हठी तो दो ही हैं- पहला नख और दूसरे केश, कितना भी काटो बार-बार निकल आते हैं। सत्य कहें ब्राह्मण कौन हैं आप ?

(पूरी तरह अपमानित और पराजित हो चुके थे)

कालिदास ने कहा :- फिर तो मैं मूर्ख ही हूँ ।

.स्त्री ने कहा :- नहीं तुम मूर्ख कैसे हो सकते हो।

मूर्ख दो ही हैं। पहला राजा जो बिना योग्यता के भी सब पर शासन करता है, और दूसरा दरबारी पंडित जो राजा को प्रसन्न करने के लिए ग़लत बात पर भी तर्क करके उसको सही सिद्ध करने की चेष्टा करता है।

(कुछ बोल न सकने की स्थिति में कालिदास वृद्धा के पैर पर गिर पड़े और पानी की याचना में गिड़गिड़ाने लगे)

वृद्धा ने कहा :- उठो वत्स ! (आवाज़ सुनकर कालिदास ने ऊपर देखा तो साक्षात माता सरस्वती वहां खड़ी थी, कालिदास पुनः नतमस्तक हो गए)

माता ने कहा :- शिक्षा से ज्ञान आता है न कि अहंकार । तूने शिक्षा के बल पर प्राप्त मान और प्रतिष्ठा को ही अपनी उपलब्धि मान लिया और अहंकार कर बैठे इसलिए मुझे तुम्हारे चक्षु खोलने के लिए ये स्वांग करना पड़ा।

.

कालिदास को अपनी गलती समझ में आ गई और भरपेट पानी पीकर वे आगे चल पड़े।

इससे हमें यह शिक्षा मिलती है कि -

विद्वत्ता पर कभी घमण्ड न करें, यही घमण्ड विद्वत्ता को नष्ट कर देता है।

दो चीजों को कभी व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिए.....

अन्न के कण को

"और"

आनंद के क्षण को।

सुरेश जी धन्यवाद कहानी साझा करने के लिए।

इसी जानकारी के साथ आज के प्रोग्राम में जानकारी देने का सिलसिला समाप्त होता है। अब बारी है श्रोताओं की टिप्पणी की।

नीलमः पहला पत्र हमें भेजा है, खंडवा मध्य प्रदेश से दुर्गेश नागनपुरे ने। लिखते हैं, सबसे पहले हमारी ओर से सी.आर.आई. हिन्दी सेवा की पूरी टीम और सभी प्यारे श्रोता बंधुओं को शारदीय नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें।

सीआरआई की ओर से आप सभी को नवरात्रि की ढेर सारी शुभकामनाएं।

लिखते हैं, लक्ष्मी का हाथ हो, सरस्वती का साथ हो, गणेश का निवास हो,

मां दुर्गा के आर्शीवाद से आपके जीवन में प्रकाश ही प्रकाश हो।

-शुभ नवरात्रि ।

आगे लिखते हैं कि हमें 15 अक्टूबर का नया अंक काफी रोचक लगा । इस दिन के कार्यक्रम में एक से बढ़कर रोचक जानकारियां हमें बहुत ही ज्ञानवर्धक लगी । अजीबोगरीब जानकारी के अंतर्गत आगरा में रहने वाली नेहा भाटिया जी के बारे में दी गई जानकारी , सोने की चर्चा , समुद्र के खारे पानी और भगवान् शिव के निवास स्थान कैलाश पर्वत के बारे में दी गई विस्तृत जानकारी बहुत पसंद आई ।

साथ ही कार्यक्रम में श्रोताओं की प्रतिक्रियाएं बहुत ही मनभावन लगती हैं। आपका प्रसारण हमारे यहां एकदम स्पष्ट रूप से सुनाई देता है। इसलिये हम आपका दिल से शुक्रिया अदा करना चाहते हैं। धन्यवाद।

दुर्गेश जी पत्र भेजने के लिए शुक्रिया।

अनिलः अब पेश है खुर्जा यूपी से तिलक राज अरोड़ा का पत्र। लिखते हैं पिछला प्रोग्राम सुनकर दिल खुशी से झूम उठा। आगरा की रहने वाली नेहा भाटिया आंर्गेनिक फार्म से सालाना 60 लाख रुपये कमाती हैं। यह सुनकर बहुत खुशी हुई। हम नेहा भाटिया के इस जज्बे को प्रणाम करते हैं। सोना धरती से खत्म होने वाली जानकारी काबिले तारीफ लगी। वहीं समुंदर का पानी खारा क्यों होता है, इस विषय पर जो वैज्ञानिक कारण बताये बहुत ही पसंद आये। इस विषय पर यह जानकारी पहली बार सुनी। उधर कैलाश पर्वत की चोटी पर आज तक कोई चढ़ नही पाया वाली जानकारी की जितनी भी प्रंशसा की जाए उतनी ही कम है।

कार्यक्रम में फिल्मी गीत सुनकर बहुत ही आनंद आया। कार्यक्रम में कभी-कभी पुरानी फिल्म का गीत भी सुनवाया कीजिये। जबकि कार्यक्रम में श्रोता बंधुओं के पत्र बहुत ही शानदार लगे। कार्यक्रम में जोक्स सुनकर मज़ा आ गया।

बेहतरीन कार्यक्रम टी टाइम शानदार प्रस्तुति में सुनवाने के लिये आपका शुक्रिया।

अरोड़ा जी प्रोग्राम की तारीफ करने के लिए धन्यवाद।

नीलमः अब पेश है केसिंगा उड़ीसा से सुरेश अग्रवाल द्वारा भेजा गया पत्र।

लिखते हैं कार्यक्रम का आगाज़ आगरा की रहने वाली नेहा भाटिया के शानदार प्रारब्ध की कहानी से किया जाना अच्छा लगा। उनका ऑर्गेनिक फार्मिंग का फॉर्मूला एवं क्लीन ईटिंग मूवमेंट लॉन्च किये जाने के ज़ज़्बे को सलाम। अपने लिये तो सभी करते हैं, परन्तु अपने अर्जित ज्ञान एवं अनुभव का लाभ औरों तक पहुंचाने वाले ही महान होते हैं।

जानकारियों के क्रम में सन 2035 तक विश्व में सोने के भण्डार पूरी तरह चुकने एवं अब तक 70 प्रतिशत स्वर्ण डिपॉजिट्स के दोहन सम्बन्धी जानकारी पर विशेषज्ञों की राय भले ही सही हो, उस पर विश्वास करना सम्भव नहीं है। क्योंकि इस तरह के आंकलन का कोई ठोस आधार नहीं होता।

वहीं समुद्र के पानी में नमक आने की प्रक्रिया एवं समुद्रीय जल से पूरा नमक ज़मीन पर बिछाये जाने पर बनने वाली पाँच सौ मीटर मोटी परत सम्बन्धी जानकारी विज्ञानसम्मत एवं विस्मित करने वाली लगी।

पवित्र कैलाश पर्वत के रहस्य पर दी गयी जानकारी सुन कर लगा कि भले ही विज्ञान कितनी भी तरक़्क़ी क्यों न कर ले, कुछ बातें आज भी विज्ञान से परे हैं। अन्यथा पर्वतारोही 8848 मीटर ऊँचे माउण्ट एवरेस्ट शिखर को तो बार-बार चूमने में सफल हो रहे हैं, वहीं 6638 मीटर की ऊँचाई वाले कैलाश पर्वत का नाम लेते ही उनकी आँखों के सामने अंधेरा क्यों छा जाता है ? कार्यक्रम में मेरे द्वारा प्रेषित कविता 'माँ का पल्लू' की प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष तौर पर प्रशंसा करने वाले तमाम श्रोता-मित्रों के प्रति आभार। कार्यक्रम में श्रोता-मित्रों की बेशक़ीमती राय के साथ पेश तीनों चुटकुले भी मज़ेदार लगे। धन्यवाद आज की इस ख़ास प्रस्तुति के लिये।

सुरेश जी पत्र भेजने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।

अनिलः इसी के साथ प्रोग्राम में श्रोताओं की टिप्पणी यही संपन्न होती है।

अब वक्त हो गया है जोक्स का।

पहला जोक..

एक प्रश्न : पत्नी क्या है ?

उत्तर : पत्नी उस शक्ति का नाम है जिसके घूरने भर से देखने पर टिंडे की सब्ज़ी में पनीर का स्वाद आने लगता है।

दूसरा जोक

पत्नी - अजी उठ जाओ, मैं चाय बना रही हूं..!

पति - तो बना लो, मैं कौन सा पतीले

में सो रहा हूं...!!!

तीसरा जोक

सोनू: जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, दिन-प्रतिदिन इंसान अमीर बनता जाता है।

मोनू: कैसे?

सोनू: बूढ़े होने पर चांदी बालों में, सोना दांतों में, मोती आंखों में, शुगर खून में और महंगे पत्थर किडनी में पाए जाने लगते हैं।

रेडियो प्रोग्राम