08 अक्तूबर 2020

2020-10-08 15:08:41 CRI

अनिलः जानकारी... जापान की राजधानी टोक्यो में ऐसे कई बौद्ध मंदिर हैं, जो हजारों साल पूराने हैं। इन्हीं में से एक मंदिर ऐसा है, जहां हिंदूओं के गणेश देवता से काफी मिलती-जुलती मूर्ति रखी गई है। आठवीं सदी में बने इस मंदिर का नाम मात्सुचियामा शोटेन (Matsuchiyama Shoten) है, जिसमें रखी गई मूर्ति गणेश जी का ही जापानी वर्जन है। तंत्र-मंत्र को मानने वाले बौद्ध इस मूर्ति की पूजा करते हैं। धर्म से जुड़ें विषयों पर रिसर्च करने वाले लोगों का मानना है कि आठवीं सदी के दौरान जापान में पहली बार गणेश जी को माना जाने लगा। बौद्ध धर्म में एक ऐसी शाखा है, जिसके अनुयायी बुद्धिज्म पर यकीन करते हुए तांत्रिक शक्तियों की पूजा करते हैं। बौद्ध धर्म का ये शाखा भारत के उड़ीसा से होते हुए चीन और उसके बाद जापान पहुंचा।

जापान में गणेश जी (केंगिटेन) को एक शक्तिशाली भगवान के तौर पर देखा जाता था और इनकी पूजा भी खास तरीके से शुद्ध रहते हुए तंत्र-मंत्र के सहारे होती थी। ऐसे में गणेश जी को मानने वालों की संख्या बढ़ती चली गई। इस बात का जिक्र क्लासिकल गोल्डन एज (794-1185 CE) के दौरान मिलता है। फिलहाल जापान में गणेश जी के कुल 250 मंदिर हैं, लेकिन इन्हें अलग-अलग नामों से बुलाया जाता है जैसे केंगिटेन, शोटेन, गनबाची (गणपति) और बिनायकातेन (विनायक)।

बता दें कि तांत्रिक बुद्धिज्म में गणेश जी को एक स्त्री हाथी से लिपटा हुआ दिखाया जाता है और इसे शक्ति कहा जाता है। यह मूर्ति पुरुष और स्त्री के मेल से पैदा हुई ऊर्जा का प्रतीक है। हालांकि, गणेश जी की मूर्ति या तस्वीरें कुछ कामुक लगने के कारण मंदिरों में सामने नहीं दिखती हैं। इन्हें लकड़ी के सजे हुए बक्से में रखा जाता है, जिसकी रोज पूजा की जाती हैं। केवल किसी खास मौके पर मूर्ति बाहर निकाली जाती है और उसकी पूजा सबके सामने होती है।

नीलमः बचपन में हम सभी के मन में एक बार उड़ने की इच्छा जरूर पैदा हुई होगी। लेकिन जब इसके बारे में हमने बड़ों से सवाल किया कि क्या हम उड़ सकते हैं, तो इसका कोई खास जवाब नहीं मिला। अगर आज भी हम लोगों से कोई ये पूछे कि आखिर इंसान क्यों नहीं उड़ सकता है, तो इस सवाल का हम क्या जवाब देंगे? यह सवाल बहुत लोगों को हैरान करती है कि अगर छोटे पक्षी जिस काम को आसानी से कर सकते हैं, तो हम इंसान क्यों नहीं कर पाते हैं। चलिए हम एक साथ जानते हैं।

इस सवाल का सबसे अधिक जवाब यही मिलता है कि इंसान के पास पंख नहीं होते, जिसके वजह से इंसान उड़ नहीं सकते हैं। अगर हम पक्षियों की तरह पंख भी लगा लें, तो धरती हमें खींच लेती है। लेकिन पक्षी जब अपने पंख फड़फड़ाते हैं, तो हवा में उड़ने लगते हैं। बता दें कि पक्षियों के पंख कुछ इस तरह के होते हैं, जो हवा को काट सकते हैं। इससे उड़ने की क्रिया सफल होती है।

क्या इंसानों में पंख लगा दिया जाए तो उड़ पाएंगे? बता दें कि इस सवाल का संबंध हमारे वजन से है। पक्षियों का वजन बहुत कम होता है, जिसके वजह से उनके पंख हवा में उड़ने देने के लिए काफी होते हैं। इसी वजह से जितना बड़ा और भारी पक्षी होता है, तो उसके पंख उतने ही विशाल होते हैं। पक्षी जब हवा में उड़ते हैं, तो उनके फैले पंखों के ऊपर और नीचे दोनों तरफ से हवा पास होती है। पंखों की बनावट ऐसी होती है कि पंखो के ऊपर हवा की गति पंखों के नीचे की गति के मुकाबले हमेशा ही ज्यादा होती है और इसका परिणाम यह होता है कि नीचे के मुकाबले पंखों के ऊपर दबाव कम होता है। इस वजह से पक्षी उड़ने के दौरान नीचे नहीं गिर पाता है।

हवा में पक्षियों के उड़ते समय पंखों का फड़फड़ाना भी अहम क्रिया होती है। इस क्रिया से पक्षी बल लगाते हैं और हवा में आगे की ओर बढ़ते हैं। पंखों के फड़फड़ाने की वजह से पक्षी अधिक ऊंचाई तक भी जा सकते हैं।

अनिलः एक और जानकारी। दुनियाभर में लगभग 6,900 से भी ज्यादा भाषाएं बोली जाती हैं। इनमें से कई भाषा ऐसी हैं, जो हजारों साल पुरानी है। वहीं कई भाषा ऐसी भी हैं, जिनका अस्तित्व बहुत जल्द ही खत्म होने वाला है। क्योंकि इन भाषाओं को बोलने वाले मुश्किल से हजार लोग ही बचे हैं। कुछ इसी तरह की एक भाषा है यघान। अर्जेंटीना के एक द्वीप की ये मूल भाषा अब लगभग गायब हो चुकी है। यघान भाषा को लेकर हैरान करने वाली बत ये है कि इसे बोलने वाला एक ही शख्स जीवित है, जो एक महिला है। बता दें कि यघान भाषा को अर्जेंटीना और चिली के बीच बसे टिएरा डेल फ्यूगो नामक द्वीप पर रहने वाले आदिवासी बोला करते थे। इस भाषा को संस्कृत से मिलता-जुलता माना जाता है। हालांकि, अब इसे बोलने वाली एकमात्र बुजुर्ग महिला है। इस भाषा को बोलने वाली इस महिला का नाम क्रिस्टिना काल्डेरॉन है। क्रिस्टिना को स्थानीय लोग अबुइला बुलाते हैं। अबुइला एक स्पेनिश शब्द है, जिसका अर्थ दादी मां होता है। क्रिस्टिना के परिवार के बाकी सदस्य स्पेनिश या अंग्रेजी जैसी भाषाएं बोलते हैं। हालांकि, परिवार के कई सदस्य भाषा समझते तो हैं, लेकिन बोल नहीं पाते हैं। यघान भाषा के अस्तित्व को बरकरार रखने के लिए क्रिस्टिना को कई बार सम्मानित भी किया जा चुका है। साल 2009 में चिली सरकार ने उन्हें Living Human Treasure की उपाधि दी। यह उपाधि उन लोगों को मिलती है, जिन्होंने कल्चर को सहेजने में बेहद बड़ी भूमिका निभाई हो। बता दें कि यघान एक भाषा ही नहीं बल्कि एक बंजारा समुदाय का नाम था, जो दक्षिणी अमेरिका से होते हुए चिली और अर्जेंटिना तक पहुंच आए। पुर्तगालियों ने सबसे पहले साल 1520 में इस कबीले के बारे में पता लगाया था। आज के समय में क्रिस्टिना यघान भाषा को सरकारी मदद से जिंदा रखने की मुहिम चला रही हैं। क्रिस्टिना अर्जेंटिना के स्कूलों में छोटे बच्चों को ये भाषा सिखाने का काम करती हैं।

अनिलः सुरेश अग्रवाल जी ने ये भेजा है। आप भी सुनिए।

माँ का पल्लू ....

मुझे नहीं लगता कि आज के बच्चे यह जानते हों कि पल्लू क्या होता है, इसका कारण यह है कि आजकल की माताएं अब साड़ी नहीं पहनती हैं। पल्लू बीते समय की बात हो चुकी है।

माँ के पल्लू का सिद्धांत माँ को गरिमा मयी छवि प्रदान प्रदान करने के लिए था। लेकिन इसके साथ ही, यह गरम बर्तन को चूल्हा से हटाते समय गरम बर्तन को पकड़ने के काम भी आता था।

पल्लू की बात ही निराली थी। पल्लू पर कितना ही लिखा जा सकता है ।

साथ ही पल्लू बच्चों का पसीना / आँसू पूछने, गंदे कानों/मुंह की सफाई के लिए भी इस्तेमाल किया जाता था। माँ इसको अपना हाथ तौलिया के रूप में भी इस्तेमाल का लेती थी । खाना खाने के बाद पल्लू से मुंह साफ करने का अपना ही आनंद होता था।

कभी आँख में दर्द होने पर माँ अपने पल्लू को गोल बनाकर, फूँक मारकर, गरम करके आँख में लगा देती थी, सभी दर्द उसी समय गायब हो जाता था ।

माँ की गोद मे सोने वाले बच्चों के लिए उसकी गोद गद्दा और उसका पल्लू चादर का काम करता था ।

जब भी कोई अंजान घर पर आता , तो उसको, माँ के पल्लू की ओट ले कर देखते था । जब भी बच्चे को किसी बात पर शर्म आती, वो पल्लू से अपना मुंह ढक कर छुप जाता था ।

और जब बच्चों को बाहर जाना होता , तब माँ का पल्लू एक मार्गदर्शक का काम करता था । जब तक बच्चे ने हाथ में थाम रखा होता, तो सारी कायनात उसकी मुट्ठी में होती।

और जब मौसम ठंडा होता था , मां उसको अपने चारों और लपेट कर ठंड से बचने की कोशिश करती ।

पल्लू एप्रन का काम भी करता था । पल्लू का उपयोग पेड़ों से गिरने वाले जामुन और मीठे सुगंधित फूलों को लाने के लिए किया जाता था। पल्लू घर में रखे समान से धूल हटाने मे भी बहुत सहायक होता था ।

पल्लू मे गांठ लगा कर माँ एक चलता फिरता बैंक या तिजोरी रखती थी और अगर सब कुछ ठीक रहा तो कभी-कभी उस बैंक से कुछ पैसे भी मिल जाते थे।

मुझे नहीं लगता की विज्ञान इतनी तरक्की करने के बाद भी पल्लू का विकल्प ढूंढ पाया है ।

पल्लू कुछ और नहीं बल्कि एक जादुई एहसास है। मैं पुरानी पीढ़ी से संबंध रखता हूं और अपनी माँ के प्यार और स्नेह को हमेशा महसूस करता हूँ, जो कि आज की पीढ़ियों की समझ से शायद गायब है।

सुरेश जी बहुत-बहुत शुक्रिया।

जानकारी देने का सिलसिला यही संपन्न होता है। अब बारी है श्रोताओं के पत्रों की।

नीलमः पहला पत्र भेजा है, खंड्वा मध्य प्रदेश से दुर्गेश नागनपुरे ने। लिखते हैं, नमस्कार और वेरी गुड इवनिंग। हमें 1 अक्टूबर दिन गुरुवार का टी टाइम कार्यक्रम बहुत मनभावन लगा ।

कार्यक्रम के प्रारंभ में आपके द्वारा भारत के वन्य जीव समुदाय के "एलिफैंट डॉक्टर" के नाम से मशहूर 59 वर्षीय डॉक्टर कुशल कुंवर शर्मा जी के बारे में दी गई जानकारी बहुत प्रेरणादायक लगी ।

साथ ही क्रमश : जापानी कंपनी गुडंम द्वारा बनाये गये RX - 78 के बारे में बताया गया। वहीं इजराइल में की जा रही वर्टिकल फार्मिंग और भारतीय रेलवे के बारे में दी गई रोचक जानकारी काफी पसंद आई । वहीं सुरेश अग्रवाल जी द्वारा भेजा गया " कोरोना काल मे ससुराल यात्रा " प्रसंग बहुत ही मनोरंजक लगा । जबकि हिंदी गीत , मजेदार चुटकुले और श्रोताओं की प्रतिक्रियाएं बहुत ही अच्छी लगी । धन्यवाद। दुर्गेश जी आपका भी धन्यवाद।

अनिलः अब बारी है अगले खत की, जिसे भेजा है खुर्जा यूपी से तिलक राज अरोड़ा ने। लिखते हैं अनिल पांडेय जी और बहन नीलम जी, सप्रेम नमस्ते।

पिछला टी टाइम कार्यक्रम सुना और पसंद आया। एलिफेंट डॉ कुशल कंवर शर्मा जी के बारे में जानकर बहुत ही प्रसन्नता हुई। हाथियों के प्रति इतना प्यार और सेवा करने के लिये डॉ कुशल कंवर जी को दिल से प्रणाम करते हैं और भगवान से इनकी लंबी आयु की प्रार्थना करते हैं ताकि हाथियों के प्रति इनका प्यार और सेवा जारी रहे।

जापान के योकोहामा शहर में 60 फिट ऊँचे और 25 टन वजन के रोबोट के बारे में जानकर बहुत आश्चर्य हुआ।

जबकि इजराइल में दीवारों पर खेती होती है वाली जानकारी शानदार लगी। इजराइल के अलावा अन्य देशों को भी इस तकनीक को अपनाना चाहिए।

भारतीय रेलों पर भी जानकारी की जितनी भी प्रंशसा की जाए उतनी ही कम है। इस जानकारी से रेल पर यात्रा करने वालो की जानकारी में इजाफा जरूर होगा।

हास्य और व्यंग से भरपूर हास्य कविता कोरोना काल मे ससुराल यात्रा भी तारीफ योग्य लगी।

कार्यक्रम मे श्रोता बंधुओं के पत्र भी सराहनीय योग्य लगे। कार्यक्रम में जोक्स बेहतरीन लगे।

कार्यक्रम टी टाइम सुंदर आवाज और शानदार प्रस्तुति के साथ सुनवाने के लिये हम आपका दिल से शुक्रिया प्रकट करते हैं। अरोड़ा जी पत्र भेजने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया।

नीलमः अब पेश है हमारे वरिष्ठ श्रोता सुरेश अग्रवाल का खत। लिखते हैं पिछला "टी टाइम" भी पूरे मनोयोग से सुना, जो कि तमाम रोचक एवं ज्ञानवर्ध्दक जानकारियों से भरपूर था। भारत के वन्यजीव समुदाय में 'एलिफैंट डॉक्टर' के नाम से मशहूर डॉक्टर कुशल कुंवर शर्मा द्वारा हाथियों के साथ गुज़ारे गये अपने जीवन के बहुमूल्य 35 वर्षों के बारे में सुन कर उनके सन्मान में सिर स्वतः झुक गया। उनके ज़ज़्बे को नमन। वहीं जापानी कम्पनी गुंडम द्वारा बनाये गये ख़ास रोबोट RX-78 पर दी गई जानकारी सुन कर सहसा ज़ुबान से यही निकला कि ऐसी ईज़ाद तो जापान ही कर सकता है।

वर्टिकल फार्मिंग या दीवार पर की जाने वाली खेती और इस कृषि-तकनीक में माहिर देश इस्रायल के बारे में दी गई जानकारी भी अत्यंत सूचनाप्रद लगी। आपने यह बतला कर भी अच्छा किया कि -इस्रायल के अलावा वर्टिकल फार्मिंग अब अमेरिका, यूरोप और चीन आदि में भी तेजी से फैल रही है। अच्छा होता, यदि यह भी बतलाया जाता कि भारत में इसकी क्या स्थिति है ?

इसके साथ ही ट्रेन के अलग-अलग डिब्बों पर बनी अलग रंगों की धारियों में छिपे सन्देश के बारे में बतला कर भी आपने हम श्रोताओं पर उपकार किया है।

इन तमाम महत्वपूर्ण जानकारियों के साथ मुझ द्वारा प्रेषित 'कोरोना काल में ससुराल यात्रा' शीर्षक व्यंगात्मक कविता को आपने कार्यक्रम के योग्य समझा, इसके लिये हृदयतल से आभार।

अनिलः मैं आभारी हूँ भाई तिलकराज चोपड़ा एवं दुर्गेश नागनपुरे जी का कि जिन्होंने गतांक में पेश मेरे पत्र/सामग्री की खुले दिल से प्रशंसा की। आज के कार्यक्रम में श्रोताओं की प्रतिक्रिया वाले पत्र तो कम थे, परन्तु तीनों जोक्स उम्दा लगे। धन्यवाद फिर एक श्रमसाध्य प्रस्तुति के लिये।

सुरेश जी पत्र भेजने के लिए धन्यवाद। श्रोताओं की टिप्पणी यही संपन्न होती है। अब बारी है जोक्स की। जो हमें भेजे हैं दुर्गेश नागनपुरे जी ने।

जोक्स...

पहला जोक

प्रेमी - मैं उस लड़की से शादी करूंगा, जो मेहनती हो,

सादगी से रहती हो, घर को संवारकर रखती हो,

आज्ञाकारी हो...!.

प्रेमिका - मेरे घर आ जाना, ये सारे गुण

मेरी नौकरानी में हैं...!!

दूसरा जोक

पत्नी के जन्मदिन पर हद से ज्यादा कंजूस पति

पति - तुम्हें क्या गिफ्ट चाहिए

.पत्नी की इच्छा नई कार लेने की थी

उसने इशारों में कहा -

मुझे ऐसी चीज लेकर दो जिस पर सवार

होते ही वो सेकण्ड में 0 से 100 पर पहुंच

जाए...

.शाम को ही पति ने वजन तौलने वाली मशीन लाकर दे दी...!

तीसरा जोक

पति - क्या तुम मेरे जीवन का चांद बनोगी..?

.पत्नी (खुश होकर) - हां जानू...!

.पति - बहुत खूब, तो मुझसे 384,400 किलोमीटर दूर रहो...!!!

.फिर पति की हुई जोरदार कुटाई...

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