01 अक्तूबर 2020

2020-10-01 10:54:23 CRI

अनिलः जानकारी। भारत के वन्यजीव समुदाय में 'एलिफैंट डॉक्टर' के नाम से मशहूर 59 साल के डॉक्टर कुशल कुंवर शर्मा जब हाथियों के बारे में बात करते है तो उनका चेहरा खुशी से खिल उठता है। वे बेहद जोश के साथ कहते है, "मैं हाथियों के साथ ही खुश रहता हूं।" अपनी जिंदगी के 35 साल हाथियों की देखभाल और इलाज करने में गुगार चुके डॉक्टर शर्मा ने असम और पूर्वोत्तर राज्यों के जंगलों से लेकर इंडोनेशिया के जंगल तक हजारों हाथियों की जान बचाई है।

हाथियों के साथ उनके जुड़ाव की कहानी इतनी लोकप्रिय हो चुकी है कि असम तथा भारत के कई राज्यों में उन्हें लोग 'एलिफैंट डॉक्टर' के नाम से पहचानने लगे है। अपनी जान की परवाह किए बगैर हाथियों के इलाज के लिए जंगलों में घूमने वाले डॉक्टर शर्मा ने बीबीसी से कहा, "मैंने हाथियों के साथ अपने जीवन का जितना समय गुजारा है उतना समय मैं अपने परिवार को नहीं दे पाया हूं। खासकर असम के हाथियों से मुझे बहुत प्यार है। मैं यहां के हाथियों की गतिविधियों से उनकी भाषा समझ लेता हूं। उनसे संकेत में बात करता हूं। उनके लिए खाने का सामान लेकर आता हूं। यहां के अधिकतर हाथी अब मुझे पहचानते है।

हाथियों के प्रति उनके प्यार और सेवा को देखते हुए इस साल भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री सम्मान से नवाजा है। वे देश के पहले पशुचिकित्सक है जिन्हें पद्मश्री मिला है। डॉक्टर शर्मा के अनुसार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दफ्तर ने पद्मश्री सम्मान के लिए उनका नामांकन भेजा था। वो बताते है, "मुझे कई महीनों तक इस बात के बारे में पता ही नहीं था कि पद्मश्री के लिए मेरा नाम किसने नामांकित किया था। काफी दिनों बाद भारत सरकार के एक अधिकारी ने बातचीत के दौरान बताया कि मेरा नामांकन पीएमओ से भेजा गया था।"

नीलमः बाढ़ के दौरान खासकर काजीरंगा नेशनल पार्क में हाथी समेत कई दुर्लभ प्रजाति के जानवरों को अपनी जान गंवानी पड़ती है। गुवाहाटी स्थित कॉलेज ऑफ वेटरीनरी साइंस के सर्जरी और रेडियोलॉजी विभाग में पढ़ाने वाले प्रोफेसर डॉक्टर शर्मा की गरूरत उस समय सबसे ग्यादा होती है। फिर चाहे उन्हें कोई आधिकारिक तौर पर मदद के लिए बुलाए या नहीं, वे खुद ही मदद के लिए पहुंच जाते है। बीते कई सालों से उन्होंने सैकड़ों वन्य जीवों की जान बचाई है। हाथियों के साथ अपने जीवन के कई भावुक किस्सों का जिक्र करते हुए डॉ. शर्मा कहते हैं कि जब किसी हाथी की मौत होती है तो वो बैचेनी महसूस करते हैं।

वो कहते हैं, "कई साल पहले बाढ़ के कारण एक हथिनी की मौत हो गई थी। जब मैं वहां पहुंचा तो मैंने देखा कि उसका चार महीने का बच्चा मरी हुई हथिनी का दूध पीने की कोशिश कर रहा था। मेरे लिए वह बेहद दुखदायी पल था। जीवन में ऐसी कई घटनाएं है जिन्हें मैं भूल नहीं पाया हूं।"

अनिलः हॉलीवुड की साइंस फिक्शन सिनेमा में अजीब तरह के मशीन मैन दिखाए जाते हैं, जो हर उम्र के दर्शकों के बीच आकर्षण के केंद्र होते हैं। वहीं कुछ सिनेमा में पावर रेंजर्स दिखाए गए हैं, जो हीरो की तरह काम करते हुए दुश्मनों से लड़ते थे। तब हम सभी का अपना एक पसंदीदा पावर रेंजर होता था। ठीक इसी तर्ज पर जापान के योकोहामा शहर में स्थित Gundam फैक्ट्री ने असली रोबोट बनाया गया है।

जापानी कंपनी गुंडम ने अपने इस रोबोट का नाम RX-78 रखा है। इस रोबोट की ऊंचाई 60 फीट और वजन करीब 25 टन के आसपास है। आप इसी बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि यह रोबोट कितना विशाल है। बता दें कि इस रोबोट को जापान की एक मशहूर एनिमेटिड सीरीज के काल्पनिक कैरेक्टर गुंडम के तर्ज पर तैयार किया गया है, जो साल 1970 के जमाने की चर्चित सीरीज रही है। सोशल मीडिया पर इन दिनों इस रोबोट की वीडियो काफी तेजी से वायरल हो रही है। वीडियो में यह रोबोट मूव करता नजर आ रहा है। यह विशाल रोबोट अपने कदम आगे बढ़ा रहा है और जमीन पर बैठ रहा है। इस रोबोट की क्रिया को देखकर पब्लिक हैरान है। RX-78 रोबोट का मूविंग स्टाइल सबसे ज्यादा आकर्षित करता है।

इस रोबोट की निर्माण करने वाली कंपनी गुंडम फैक्ट्री डॉट नेट ने बताया कि दुनियाभर से जानकारी इकट्ठा कर इसका निर्माण कराया गया है। फिलहाल ये रोबोट टेस्टिंग मोड में चल रहा है। लेकिन यह बात अभी तक नहीं पता चल पाया है कि तैयार होने के बाद कंपनी इससे किस तरह से काम लेगी।

नीलमः एक और जानकारी। आज के समय में हर क्षेत्र में तकनीक काफी उन्नत हो गई है। खासकर कृषि के क्षेत्र में तो तरह-तरह की तकनीकें अपनाई जा रही हैं, ताकि खेती को आसान भी बनाया जा सके और ज्यादा से ज्यादा अनाज की पैदावार हो। वैसे अगर आप सोच रहे होंगे कि खेती तो जमीन पर ही संभव है, तो शायद आपको पता नहीं है कि एक देश ऐसा है, जहां दीवारों पर भी खेती की जाती है। यहां धान और गेहूं के साथ-साथ सब्जियां भी दीवारों पर ही उगाई जाती हैं। यह तकनीक अब धीरे-धीरे दुनियाभर में लोकप्रिय हो रही है। इस तकनीक को वर्टिकल फार्मिंग यानी 'दीवार पर खेती करना' कहा जाता है।

वर्टिकल फार्मिंग यानी दीवार पर खेती करने वाले देश का नाम इस्रायल है। दरअसल, इस्रायल और अन्य कई देशों में खेती लायक जमीन की काफी कमी है और इसी समस्या से निजात पाने के लिए वहां लोगों ने वर्टिकल फार्मिंग को अपना लिया है।

इजरायल की कंपनी ग्रीनवॉल के संस्थापक पायोनिर गाइ बारनेस के मुताबिक, उनकी कंपनी के साथ गूगल और फेसबुक जैसी बड़ी कंपनियां भी जुड़ी हैं, जिनके सहयोग से इस्रायल में कई दीवारों पर वर्टिकल फार्मिंग तकनीक से खेती की जा रही है।

वर्टिकल फार्मिंग के तहत पौधों को गमलों में छोटे-छोटे यूनिट्स में लगाया जाता है और साथ ही यह सुनिश्चित किया जाता है कि पौधे गमलों से गिरें न। इन गमलों में सिंचाई के लिए भी विशेष प्रबंध किया जाता है। हालांकि अनाज उगाने के लिए यूनिट्स को कुछ समय के लिए दीवार से निकाल लिया जाता है और फिर बाद में उन्हें वापस दीवार में लगा दिया जाता है।

अनिलः यहां बता दें कि इस्रायल के अलावा वर्टिकल फार्मिंग यानी दीवार पर खेती की तकनीक अमेरिका, यूरोप और चीन में भी तेजी से फैल रही है। ऐसी खेती का सबसे बड़ा फायदा ये है कि दीवार पर पौधे होने से घर के तापमान में बढ़ोतरी नहीं होती और यह आसपास के वातावरण में भी नमी बनाए रखता है। इसके अलावा इससे ध्वनि प्रदूषण का असर भी कम ही होता है।

नीलमः भारतीय रेल एशिया का दूसरा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क और एकल सरकारी स्वामित्व वाला विश्व का चौथा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है। आपने भी रेल से जरूर सफर किया होगा, लेकिन क्या आपने कभी इस बात पर गौर किया है कि ट्रेन के अलग-अलग कोचों पर अलग रंगों की धारियां बनी होती हैं।

भारतीय रेलवे में बहुत सारी चीजों को समझने के लिए एक खास तरह के सिंबल का इस्तेमाल किया जाता है, जैसे ट्रैक के किनारे बने सिंबल, ट्रैक पर बने सिंबल। इस सिंबल का प्रयोग इसलिए किया जाता है ताकि हर एक व्यक्ति को उस चीज के बारे में बताने की जरुरत ना पड़े। इसी बात को ध्यान में रखकर ट्रेन के कोच पर भी एक विशेष प्रकार के सिंबल को इस्तेमाल में लाया जाता है।

आपने देखा होगा कि नीले रंग के ICF कोच के आखिरी खिड़की के ऊपर सफेद या पीले रंग की धारियां बनाई जाती हैं, जो कोच के प्रकार को दर्शाने के लिए उपयोग किए जाते हैं। सफेद रंग की धारियां जनरल कोच को इंगित करती हैं। वहीं पीले रंग की धारियां विकलांग और बीमार लोगों के कोच पर इस्तेमाल की जाती हैं। भारतीय रेलवे महिलाओं के लिए भी कोच आरक्षित करता है। इन कोचों पर ग्रे रंग पर हरे रंग की धारियां बनाई जाती हैं। वहीं फर्स्ट क्लास के कोचों के लिए ग्रे रंग पर लाल रंग की धारियां बनाई जाती हैं।

अनिलः वैसे आपने देखा होगा कि ज्यादातर ट्रेनों को डिब्बों का रंग नीला होता है। दरअसल, इन डिब्बों का मतलब होता है कि ये आईसीएफ कोच हैं। यानी कि इनकी रफ्तार 70 से 140 किलोमीटर प्रति घंटे तक होती है। ऐसे डिब्बे मेल एक्सप्रेस या सुपरफास्ट ट्रेनों में लगाए जाते हैं। वहीं आईसीएफ वातानुकूलित (एसी) ट्रेनों में लाल रंग वाले डिब्बों का इस्तेमाल किया जाता है, जैसे कि राजधानी एक्सप्रेस।

इसके साथ ही हमारे श्रोता सुरेश अग्रवाल ने कोरोना के बारे में कुछ दिलचस्प लाइनें भेजी हैं।

*कोरोना काल में ससुराल यात्रा*

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कोरोना काल में जब पहुंच गया *ससुराल !*

बहुत ही अजीब सा था वहां का हाल !!

घर की घंटी बजाते ही *सास* दौड़ी आई !

देख *जमाई* को आज, मज़बूरी में मुस्काई !!

बोली थोड़ी देर गेट पर आप ठहर जाओ !

वाश-बेसिन पर *सैनिटाइजर* से हाथ धो आओ !!

पढ़े-लिखे हो चेहरे पर *मास्क* नहीं लगाया ?

घर पर ही रहना था किसी ने नहीं समझाया ??

खैर आ ही गए हो तो दरवाजे पर जूते दो उतार !

पैर धोकर आ जाओ चाय रखी है तैयार !!

मन मे उठा *क्रोध* पर कुछ कह नहीं पाया !

लगा जैसे *जमाई* नही, कोई *राक्षस ससुराल* आया !!

इज्जत तो सारी आज *कोरोना* ने हर ली !बाकी की कसर *सासू माँ* ने पूरी कर ली !!

फिर बेआबरू हो कदम *साली* की ओर बढ़ाया ! वहां से भी नकारात्मक सा उत्तर आया !!

वो बोली *सामाजिक दूरी* को समझ नहीं पाये ?हमारे इतनी पास क्यूँ

*जीजाजी* चले आये ??दूर से ही करती हूँ आज आपको नमस्ते !*छोटे साले* ने भी दूर से हाथ हिलाया, हंसते-हंसते !! फिर *सालाहिली जी* की मधुर आवाज़ दी सुनाई !*क्वॉरन्टीन* करना रे, बाहर से आया है *जमाई* !!चाय हाथ में थी, पर नहीं जा रही थी गटकी !चाय ख़त्म होते ही , लगाना चाह रहा था घुड़की !!जो काम सरकार*लॉकडाउन* में नहीं कर पाई !ससुराल* वालों ने एक ही दिन में थी समझाई!

वाह वाह..मज़ा आ गया सुनकर। सुरेश जी बहुत-बहुत शुक्रिया।

अब बारी है श्रोताओं के पत्रों की।

पहला पत्र हमें भेजा है, खुर्जा यूपी से तिलक राज अरोड़ा ने। लिखते हैं, कार्यक्रम प्रस्तुत कर्ता अनिल पांडेय जी और नीलम जी, प्यार भरा नमस्कार।

टी टाइम कार्यक्रम सुनकर दिल खुशी से झूम जाता है। इस कार्यक्रम में बहुत ही अच्छी जानकारियां सुनवायी जाती हैं। पिछला प्रोग्राम सुना और बेहद पसंद आया। कार्यक्रम में पेड़ों के निचले हिस्से पर जड़ों के ऊपर सफेद और लाल रंग का जो पेंट किया जाता है इसके जो वैज्ञानिक कारण बताए गए बहुत ही महत्वपूर्ण लगे। हम तो अब तक यही समझ रहे थे कि यह पेड़ वन विभाग की संपत्ति है। इसके वैज्ञानिक कारण भी हैं यह हम ने कार्यक्रम से पहली बार जाना।

वहीं स्विट्जरलैंड के शहर ज्यूरिख में चॉकलेट से एक म्यूजियम बनाए जाने वाली जानकारी तारीफ योग्य है।

सुरेश अग्रवाल जी द्वारा प्रेषित संत राम दास जी पर केंद्रित प्रेरक कथा मन को छू गयीं।आइलैंड के सुनसान टापू पर भी जानकारी बेहतरीन लगी।

कार्यक्रम में हिंदी गीत भी सुना और पसंद आया।

कार्यक्रम में श्रोताओं के पत्र प्रंशसा योग्य कहे जाएंगे।

कार्यक्रम में जोक्स सुनकर बहुत आनंद आया।

बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपका शुक्रिया।

तिलकराज जी पत्र भेजने और तारीफ करने के लिए आपका धन्यवाद।

अब बारी है अगले पत्र की। जिसे भेजा है, खंडवा मध्य प्रदेश से दुर्गेश नागनपुरे ने। लिखते हैं, नमस्कार। मुझे हमेशा की तरह पिछला कार्यक्रम भी अच्छा लगा।

इस दिन के टी टाइम प्रोग्राम में आपके द्वारा पेड़ों को पेंट करने के बारे में दी जाने वाली जानकारी हमें बहुत ही प्रेरणादायक लगी ।साथ ही चाकलेट म्यूजियम के बारे में दी गई जानकारी भी काफी पसंद आई ।

वहीं हमारे सी . आर . आई . हिन्दी सेवा के वरिष्ठ श्रोता सुरेश अग्रवाल जी द्वारा दिल को छू लेने वाली स्टोरी भी बहुत शिक्षाप्रद लगी । इसके अलावा कार्यक्रम मे हिन्दी गीत, मजेदार चुटकुले और श्रोताओं की टिप्पणी बहुत ही मनभावन लगी ।

आगे लिखते हैं कि मैं पिछले शनिवार को हमारे मध्यप्रदेश राज्य के बैतूल जिले मे प्रकृति का मनोरम दृश्य देखने गया था । वहां पर मैंने बहुत ही ऊंची पहाड़ी पर बसे श्री श्री 1008 मठारदेव बाबा जी के दर्शन किये और साथ ही इस क्षेत्र मे स्थित भूपाली महादेव मंदिर के प्राकृतिक सौंदर्य के भी दर्शन किए । इन दोनों ही धार्मिक स्थलों के दर्शन कर मुझे बहुत ही अच्छा लगा । आप सभी श्रोता बंधु एक बार इन दोनों ही धार्मिक स्थलों के दर्शन अवश्य करें। धन्यवाद।

दुर्गेश जी बहुत ही अच्छी बात। शुक्रिया।

दोस्तो, लीजिए पेश करते हैं प्रोग्राम का आखिरी खत। जिसे भेजा है हमारे पुराने और वरिष्ठ श्रोता सुरेश अग्रवाल जी ने। लिखते हैं 24 सितम्बर को प्रसारित साप्ताहिक "टी टाइम" का भी हमने पूरा लुत्फ़ उठाया। सड़क के किनारे लगे पेड़ों के तने पर किये जाने वाले सफ़ेद और लाल रंग के पेंट के उद्देश्य पर सूचनाप्रद जानकारी देने का शुक्रिया। अब तक तो हमें इतना ही ज्ञात था कि यह पेंट इसलिये किया जाता है कि -वो पेड़ वन विभाग की नज़र में हैं और उनकी कटाई नहीं की जा सकती है।

जबकि स्विट्ज़रलैंड के शहर ज्यूरिख स्थित लिंट होम ऑफ चॉकलेट नामक अनोखे चॉकलेट म्यूजियम के बारे में सुन कर तो मुँह में पानी आ गया। कभी मौक़ा मिला तो उसका दीदार अवश्य करेंगे।

जानकारियों के क्रम में आपने मुझ द्वारा प्रेषित समर्थ गुरू रामदास के जीवन पर आधारित प्रेरक कहानी को कार्यक्रम का हिस्सा बनाया, इसके लिये आपका आभारी हूँ।

आयरलैंड के 'ग्रेट ब्लास्केट आइलैंड' नामक सूनसान टापू के केयर टेकर की नौकरी हेतु आये पचास हज़ार आवेदनों में से एनी बर्नी और इयोन बॉयल को चुने जाने का किस्सा काफी दिलचस्प लगा।

कार्यक्रम में श्रोता-मित्रों की राय के साथ-साथ आज पेश तीनों जोक्स भी उम्दा लगे। अच्छी प्रस्तुति के लिये धन्यवाद स्वीकार करें।

सुरेश जी पत्र भेजने के लिए शुक्रिया।

अब बारी है जोक्स यानी हंसगुल्लों की।

पहला जोक

मायके से पप्पू की पत्नी का फोन आया और बोली,

.“क्या तुम मुझे याद करते हो...?”

.पप्पू - पगली अगर कुछ याद करना इतना आसान होता,

तो दसवीं में टॉप ना कर जाता...?

दूसरा जोक

पप्पू फ्लाइट में पायलट का हेडफोन छीन रहा था...

.पायलट - ये क्या कर रहे हो...?

.पप्पू - अच्छा जी, टिकट हम लें और

गाने तुम सुनो, चलो निकालो हेडफोन...!!!

तीसरा जोक

पप्पू - बेटा दो बिस्तर क्यों लगाए...?

.बेटा - घर पर दो मेहमान आने वाले हैं...

.पप्पू - कौन - कौन...?

.बेटा - मम्मी के भाई और मेरे मामा...

.पप्पू - फिर एक और लगा, मेरा साला भी आ रहा है...!!

रेडियो प्रोग्राम