17 सितंबर 2020
अनिलः सबसे पहले यह जानकारी। भारत में इंटरनेट भले ही सस्ती दरों पर उपलब्ध है, लेकिन स्पीड के मामले में यह बहुत पीछे है। मोबाइल एनालिटिक्स कंपनी ओपनसिग्नल ने दुनियाभर के देशों में इंटरनेट स्पीड की तुलना की, जिसमें भारत को टॉप 10 की लिस्ट में कहीं भी जगह नहीं मिली। इसके साथ ही सस्ते दर पर इंटरनेट मुहैया कराने में भी भारत बहुत पीछे है। बता दें कि यूरोप में एक ऐसा देश है, जहां पूरे देश को तेज इंटरनेट मिलता है। दरअसल, यूरोप के एस्टोनिया में इंटरनेट मुफ्त में मिलता है और यहां हर सुविधा ऑनलाइन है। टैक्स रिटर्न भरने से लेकर कार पार्किंग की पेमेंट और डॉग बोर्डिंग का शुल्क यहां के नागरिक ऑनलाइन भुगतान करते हैं। मुफ्त इंटरनेट के लिए यह देश दुनियाभर में मशहूर है। हालांकि, इंटरनेट के अलावा भी और कई बाते हैं, जो इस देश को खास बनाती हैं।
एस्टोनिया एक छोटा देश है और यहां की मुद्रा यूरो है। रूस से अलग होने के बाद इस देश में काफी तेजी से आर्थिक सुधार हुए। आज इस देश को यूरोपियन यूनियन के उन देशों में गिना जाता है, जहां आर्थिक विकास की दर सबसे ज्यादा है। साल 2000 में ही यहां सभी स्कूल-कॉलेजों में इंटरनेट फ्री हो चुका था। इस देश के सरकार का लक्ष्य है कि साल के अंत तक हर नागरिक फ्री नेट का इस्तेमाल सीख सके।
एस्टोनिया में इंटरनेट के साथ-साथ पब्लिक ट्रांसपोर्ट भी मुफ्त है। पब्लिक ट्रांसपोर्ट को मुफ्त करने के लिए पहले यहां जनमत संग्रह हुआ और भारी संख्या में समर्थन मिलने पर बस और ट्राम फ्री हो गए।
एस्टोनिया में इंटरनेट भले ही मुफ्त हो, लेकिन साइबर क्राइम बिल्कुल ना के बराबर है। एस्टोनियन सरकार समय-समय पर इंटरनेट के सही इस्तेमाल के लिए कैंपेन चलाती रहती है। यहां घरेलू और फॉरेन गैंबलिंग साइट को स्पेशल लाइसेंस की जरूरत होती है। बिना लाइसेंस वाले वेबसाइट बैन कर दिए जाते हैं।
नीलमः दुनिया में ऐसे कई अजीबोगरीब रेस्टोरेंट हैं, जिनके बारे में आपने जरूर सुना होगा। कहीं जेल की तरह बने रेस्टोरेंट में लोग खाना खाते हैं तो कहीं पेड़ों पर और यहां तक कि पानी के अंदर भी रेस्टोरेंट बनाया गया है। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे अजीबोगरीब रेस्टोरेंट के बारे में बताएंगे, जहां बोल कर नहीं बल्कि इशारों से ही खाने का ऑर्डर दिया जाता है।
दरअसल, यह अजीबोगरीब रेस्टोरेंट चीन के कंवांगचो में स्थित है, जिसे साइलेंट कैफे नाम दिया गया है। दुनिया की मशहूर फूड चेन कंपनी स्टारबक्स इस रेस्टोरेंट को संचालित करती है। इस रेस्टोरेंट की खास बात ये है कि यहां आने वाले ग्राहकों को बिना बोले अपना ऑर्डर देना पड़ता है। आपको जो भी मंगाना हो, अपने हाथ के इशारे से मेन्यू कार्ड के नंबर को बता दें, ऑर्डर आपके पास आ जाएगा।
यहां ऐसी भी सुविधा दी गई है कि अगर कोई ऐसी बात ग्राहक कर्मचारियों को नहीं समझा पाते हैं, तो उसे एक नोटपैड पर लिखकर दे सकते हैं। इस रेस्टोरेंट में ग्राहक और कर्मचारियों के बीच डिजिटल संचार की भी व्यवस्था की गई है। इतना ही नहीं रेस्टोरेंट की दीवारों पर सांकेतिक भाषा के चिन्ह और सूचक यानी इंडिकेटर बनाए गए हैं ताकि उनके मतलब को आसानी से समझा जा सके। दरअसल, इस रेस्टोरेंट को खोलने का लक्ष्य ग्राहकों को ना सुन पाने वाले लोगों की भाषा समझने के लिए प्रेरित करना है।
बता दें कि स्टारबक्स ने अपने इस रेस्टोरेंट में ऐसी व्यवस्था की है, जिससे सुन सकने में असमर्थ लोगों को भविष्य में अधिक से अधिक काम मिल सके। इस रेस्टोरेंट में ऐसे कई कर्मचारी काम करते हैं, जो सुन नहीं सकते हैं। स्टारबक्स कंपनी पहले भी दुनिया में इस तरह के रेस्टोरेंट खोल चुकी है। मलेशिया और अमेरिका के वाशिंगटन डीसी में भी साइलेंट कैफे मौजूद है और इन रेस्टोरेंटों में भी इशारे से ही ऑर्डर दिया जाता है।
अनिलः एक और जानकारी। होटल में खाना खाते समय अक्सर लोग ये बात सोचते हैं कि सलाद तो फ्री में मिल ही जाएगा। लेकिन इन दिनों सलाद की वैल्यू बढ़ती ही जा रही है। सेहत के लिए सलाद बहुत ही लाभदायक है। कई लोग अलग-अलग किस्म के सलाद को अपने डाइट में शामिल करते हैं। बता दें कि पुणे की रहने वाली एक महिला ने सलाद से ही एक बेहतरीन बिजनेस खड़ा कर लिया है। सलाद का स्वाद लोगों तक पहुंचाने के साथ ही उन्होंने यह बता दिया कि सलाद के बिजनेस से कितना पैसा कमाया जा सकता है।
दरअसल, पुणे की रहने वाली मेघा बाफना ने साल 2017 में अपने इस बिजनेस की शुरूआत की। वो अपने घर पर ही सलाद बनाकर सोशल मीडिया के माध्यम से दूसरों के साथ शेयर कर देती। ऐसे में उन्हें धीरे-धीरे ऑर्डर मिलना शुरू हो गया। मेघा को पहले दिन ही उनके दोस्तों ने 5 ऑर्डर दिए। मेघा का बनाया हुआ सलाद को लोग काफी पसंद करने लगें। ऑर्डर के बढ़ने के साथ ही व्यापार भी लगातार बढ़ता गया।
आज के समय में मेघा एक बिजनेस वुमेन हैं। उन्होंने इस बिजनेस को महज 3,000 हजार रुपये में शुरू किया था। लेकिन आज के समय में वो करीब 22 लाख रुपये तक की कमाई कर चुकी हैं। मेघा रोजाना सुबह साढ़े चार बजे जगकर सलाद के पैकेट तैयार करने में जुट जाती। सब्जियां लेकर आती, मसाले तैयार करती। हरेक काम उन्होंने खुद ही किया। कई बार घाटा लगने के बाद भी उन्होंने इस काम को नहीं छोड़ा।
मेघा का बिजनेस अब पूरी तरह से व्यवस्थित है। लॉकडाउन के पहले तक उनके पास करीब 200 रेगुलर कस्टमर्स थे। उनकी महीने की बचत 75 हजार से 1 लाख रुपये तक है। बीते चार वर्षों में वो करीब 22 लाख रुपए कमा चुकी हैं।
सलाद से ही एक अच्छा बिजनेस खड़ा कर चुकी मेघा इस बात की मिसाल हैं कि हिम्मत करने वालों की कभी हार नहीं होती है। बिजनेस में घाटा होने के बावजूद भी उन्होंने इस काम को नहीं छोड़ा।
नीलमः शुक्र ग्रह पर जीवन की संभावना सौरमंडल के दूसरे किसी भी ग्रह से कम समझी जाती है। काफी लंबे समय से वैज्ञानिकों का भी एकमत रहा है कि शुक्र ग्रह पर जीवन के अनुकूल नहीं बल्कि बहुत ज्यादा विपरीत परिस्थितियां हैं। बाइबिल में तो इस ग्रह को नरक कहा गया है। शुक्र ग्रह बहुत ही गर्म है। लेकिन हाल ही में हुए एक शोध में इस बात की संभावना जताई गई है कि शुक्र ग्रह पर एक जगह सूक्ष्म जीवन हो सकता है।
वैज्ञानिकों को शुक्र ग्रह के वायुमंडल में फॉस्फीन गैस मिली है, जो वहां जीवन होने का संकेत दे रही है। धरती पर इस गैस का संबंध जीवन से है। इस गैस को माइक्रो बैक्टीरिया ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में उत्सर्जित करते हैं। वैसे तो फॉस्फीन को कारखानों में भी बनाया जा सकता है, लेकिन शुक्र ग्रह पर यह संभव नहीं है।
दरअसल, नेचर एस्ट्रोनॉमी नाम के जर्नल में प्रकाशित एक शोध में शुक्र ग्रह पर मिले फॉस्फीन गैस के बारे में विस्तार से बताया गया है। इसके लिए कार्डिफ यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जेन ग्रीव्स और उनके साथियों ने हवाई के मौना केआ ऑब्जरवेटरी में जेम्स क्लर्क मैक्सवेल टेलीस्कोप और चिली में स्थित अटाकामा लार्ज मिलिमीटर ऐरी टेलिस्कोप की मदद से शुक्र ग्रह पर नजर रखी। इस दौरान वैज्ञानिकों को फॉस्फीन के स्पेक्ट्रल सिग्नेचर का पता लगा। ऐेसे में वैज्ञानिकों ने संभावना जताई है कि शुक्र ग्रह के बादलों में यह गैस बहुत बड़ी मात्रा में है। लेकिन तमाम अनुकूल बातों के साथ ही कुछ गंभीर समस्याएं भी हैं।
शुक्र ग्रह पर केवल सांस लेने योग्य हवा तो है ही नहीं बल्कि वहां के वातावरण में सल्फ्यूरिक ऐसिड के वाष्प हैं। इस ग्रह पर घने बादलों में 75-95% सल्फ्यूरिक एसिड है, जो जीवन के लिए एकदम घातक है। इतना ही नहीं शुक्र ग्रह की सतह पर वायुमंडलीय दाब बहुत ही ज्यादा है, जिसके वजह से लगता है कि हम पानी के कई किलोमीटर नीचे दबे हैं।
अनिलः इसी के साथ खत्म होता है, आज के प्रोग्राम में जानकारी देने का सिलसिला।
अब पेश करते हैं आज के प्रोग्राम के खत। पहला खत भेजा है केसिंगा उड़ीसा से सुरेश अग्रवाल ने। लिखते हैं, हर बार की तरह दिनांक 10 सितम्बर का साप्ताहिक "टी टाइम" भी ध्यानपूर्वक सुना, जो कि अपने आप में तमाम महत्वपूर्ण जानकारियां समेटे हुये था।
ब्लू व्हेल का एक सदी में कैमरे में महज़ तीन बार क़ैद हो पाना, यह जानकारी वास्तव में आश्चर्यजनक लगी। इस मामले में ऑस्ट्रेलियायी फोटोग्राफर हंपबैक को क़िस्मत का धनी ही कहा जायेगा कि उसके कैमरे में ब्लू व्हेल की इतनी दुर्लभ तस्वीरें क़ैद हुईं।
चीन के छोंगछिंग शहर स्थित लेहे लेदु वाइल्डलाइफ जू में सुरक्षा कारणों के चलते पर्यटकों को पिंजरे में क़ैद करने की मज़बूरी से यह साबित होता है कि वहां के वन्य-प्राणी कितनी स्वच्छंदता से चिड़ियाघर में विचरण करते हैं।
वहीं समुद्री शैवाल एवं उससे जुड़े उद्योग सम्बन्धी जानकारी भी काफी सूचनाप्रद लगी। यह जानकारी वास्तव में अनूठी एवं महत्वपूर्ण कही जायेगी।
नीलमः सुरेश आगे लिखते हैं कि जानकारियों के क्रम में अमेरिका के कोलंबस एलीमेंट्री स्कूल एवं वहाँ मेक्सिको के प्योर्तो पालोमस से पढ़ने आने वाले विद्यार्थियों के लिये वीज़ा की अनिवार्यता का तकनीकी पहलू भी अत्यंत महत्वपूर्ण लगा। वैसे ऐसी बातों का समाधान देश चाहें, तो आसानी से हो सकता है, परन्तु इसके लिये खुली सोच का होना ज़रूरी है।
कार्यक्रम में मेरे पत्र एवं जोक्स को सराहे जाने हेतु भाई दुर्गेश नागनपुरे का तहेदिल से शुक्रिया। वास्तव में, श्रोता-मित्रों की बेशक़ीमती राय ही वह आईना है, जो कि कार्यक्रम का असली प्रतिबिम्ब दिखाता है। धन्यवाद फिर एक बेहतरीन प्रस्तुति के लिये।
अनिलः अब अगले पत्र की बारी है। यह पत्र हमें भेजा है खंड्वा मध्य प्रदेश से दुर्गेश नागनपुरे ने। लिखते हैं, आदरणीय अनिल भैया और बहन नीलम जी नमस्कार और शुभ संध्या ।
हमें दिनांक 10 सितम्बर दिन गुरुवार का टी टाइम कार्यक्रम बहुत ही कर्णप्रिय लगा। कार्यक्रम में आपके द्वारा सर्वप्रथम ब्लू व्हेल मछली के बारे में बताया गया, जो कि हमें बहुत अच्छा लगा। साथ ही क्रमश : चीन में स्थित लेहे लेदु वाइल्डलाइफ जू के बारे में दी गई जानकारी भी बहुत ही रोचक थी। समुद्री शैवाल और अमेरिका के स्कूली बच्चो के बारे में आपने बहुत ही विस्तार से बताया, इसके लिए हम आपका दिल से शुक्रिया अदा करते हैं।
साथ ही कार्यक्रम में हिन्दी गीत और मेरे द्वारा प्रेषित मजेदार जोक्स सुनकर हम फैमिली के सभी सदस्य बहुत हंसे । धन्यवाद
दुर्गेश जी पत्र भेजने के लिए शुक्रिया।
नीलमः अब बारी है आज के प्रोग्राम के अंतिम पत्र की। जिसे भेजा है खुर्जा उत्तर प्रदेश से तिलक राज अरोड़ा ने। लिखते हैं टी टाइम कार्यक्रम पेश करने वालों को हमारा प्यार भरा नमस्कार। कार्यक्रम टी टाइम 10 सितंबर को सुनकर दिल खुशी से झूम उठा। कार्यक्रम बेहद पसंद आया। कार्यक्रम में सिडनी के समुंदर तट पर ब्लू व्हेल मछली का फोटोग्राफर हंप बैक द्वारा फोटो खींचने वाली जानकारी सुनकर बहुत ही आशर्चयजनक लगी।
चीन के शहर छीग छिप में जानवरों की जगह इंसानो को पिजरे में बंद करना और जानवरों को खुले में छोड़ने वाली जानकारी की जितनी भी प्रंशसा की जाए उतनी ही कम है। जिंदगी में कभी चीन जाने का मौका मिला तो इस चिड़िया घर को जरूर देखने जाएंगे।वहीं समुद्री शैवाल पर जानकारी प्रंशसा योग्य कही जाएगी।
अमेरिका के कोलंबस शहर में ऐलीमेट्री स्कूल में बच्चों को अपने साथ पासपोर्ट भी रखना होता है वाली जानकारी नंबर वन लगी। साथ ही कार्यक्रम में श्रोताओं के पत्र अति सुंदर लगे। जबकि कार्यक्रम में जोक्स ने भरपूर आनंद दिया।
बेहतरीन कार्यक्रम टी टाइम सुंदर आवाज और बेहतरीन प्रस्तुति में सुनवाने के लिये आप का बहुत बहुत शुक्रिया।
टी टाइम के अगले अंक की इंतजार में। अरोड़ा जी पत्र भेजने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया और तारीफ के लिए धन्यवाद।
अनिलः इसी के साथ ही प्रोग्राम में श्रोताओं की टिप्पणी संपन्न होती है। अब बारी है जोक्स की।
पहला जोक
एक आदमी ने कंडक्टर से पूछा
आप कितने घंटे बस में रहते हो ...???
कंडक्टर : 24 घंटे
आदमी हैरान ....वो कैसे ..?????
कंडक्टर : 8 घंटे सिटी बस में और बाकी के 16 घंटे बीबी के बस में ।
दूसरा जोक
पत्नी : पूजा किया कीजिये
पति : क्यों ...????
पत्नी : बलाएं टल जाती हैं ..!!!!!!
पति : तुम्हारे पिता ने तो खूब की होगी
तभी तो उनकी टल गयी और मेरे पल्ले आ पड़ गयी ।
तीसरा जोक
पति : हमें तो अपनों ने लूटा ......
गैरों में कहाँ दम था, मेरी कश्ती ही वहां डूबी
जहाँ पानी कम था ...!!!!!
पत्नी : तुम तो थे ही गधे
तुम्हारी अक्ल में कहाँ दम था
वहां किश्ती लेकर ही क्यों गए,......
जहाँ पानी कम था...!!!!!!!!