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    033 आंखों देखा है सच
    2017-06-20 19:47:04 cri

    जंगली बतख का दुखत अन्त 不辨真假

    दूसरी कहानी का शीर्षक है:"जंगली बतख का दुखत अन्त"। इसे चीनी भाषा में"पू प्यान चन च्या"(bù biàn zhēn jiǎ) कहा जाता है। इसमें"पू"का अर्थ है नहीं, और"प्यान"का अर्थ है पहचानन. जबकि"चन"का अर्थ है सच और"च्या"का अर्थ है झूठा।

    बहुत पहले की बात है, चीन में मछलियां पालने वाला एक बुजुर्ग रहता था। उसके घर के सामने तालाब में तमाम मछली के बच्चे थे और हर साल बड़ी मात्रा में मछलियां पकड़ी जा सकती थी। बुजुर्ग की जीविका इसी मछली पालन पर चलती थी और दिन भी काफ़ी अच्छे कटते थे।

    एक दिन, बुजुर्ग ने पाया कि उसके तालाब के किनारे पर एक छोटी मछली मरी पड़ी है, तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि आखिरकार यह कैसे हो गया। इसका पता लगाने का उसने निश्चय किया।

    दूसरी सुबह, बुजुर्ग अपने मकान के सामने रखे लकड़ियों के ढेर के पीछे छिप कर तालाब पर नज़र रखे रहा, लेकिन कुछ पता नहीं चला, उसके बाद दोपहर का खाना खाकर भी वह लकड़ियों के ढेर के पीछे से तालाब पर नज़र रखता रहा।

    तभी एक जंगली बतख कहीं से उड़कर तालाब के किनारे उतरी और चारों ओर देखने के बाद, फिर पानी में डुबकी लगाकर एक छोटी मछली को पकड़कर खा गयी। जब वह दूसरी मछली पकड़ने ही वाली थी, तो बुजुर्ग आगे बढ़कर ऊंची आवाज में चिल्लाया:"है !---- "

    आवाज़ सुन कर जंगली बतख वहां से भाग गयी।

    बुजुर्ग ने मन ही मन सोचा:"यह कोई अच्छा तरीका नहीं है, मैं रोज़ इस तरह बतख को नहीं भगा सकता। कोई और तरीका सोचना होगा।"

    देर तक सोचने के बाद बुजुर्ग को एक अच्छा तरीका सूझा। उसने धान के सूखी घास से एक मनुष्य का पुतला बनाया और उसके सिर पर घास की टोपी लगाकर तालाब के किनारे रख दिया।

    अगले दिन दोपहर के वक्त बुजुर्ग फिर तालाब के किनारे आकर छुप गया, वह देखना चाहता था कि पुतला काम आता है या नहीं। ऐन वक्त पर जंगली बतख फिर से वहां पहुंच गयी। जैसे ही वह पानी में डुबकी लगाने को थी, तभी उसने देखा कि तालाब के किनारे कोई व्यक्ति खड़ा है। वह डर के मारे से वहां से उड़कर दूर चली गयी।

    अपनी सफलता पर बुजुर्ग को बड़ी खुशी हुई। उसने अपने आप से कहा:"यह अच्छा तरीका है। आगे मुझे फिर से रोज़ तालाब के किनारे पहरा देने की ज़रूरत नहीं होगी।"

    बुजुर्ग बड़ा निश्चिंत होकर दूसरे काम में लग गया और उसका ध्यान फिर तालाब पर नहीं गया।

    लेकिन जंगली बतख फिर आयी। शुरु-शुरु में उसे सीधे तालाब के पास आने का साहस नहीं था। वह पुतले के सिर के ऊपर उड़ते हुए मंडरा रही थी और गौर कर रही थी कि वह पुतला हरकत में आएगा। कई बार ऐसा करने के बाद बतख को पता लग गया कि वह पुतला कुछ नहीं कर सकता। और वह निश्चिंत होकर मछली मारने में लग गयी।

    कुछ दिनों के बाद, बुजुर्ग फिर तालाब में पहुंचा और उसे पता चला कि जंगली बतख पहले की ही तरह मछली पकड़ रही है, तो उसने खुद पुतले के रूप में तालाब के पास खड़ा होने का फैसला किया। वह घास की टोपी पहने वहीं खड़ा रहा और ज़रा भी नहीं हिला। जंगली बतख फिर से वहां आ धमकी, वह इतना निश्चिंत थी कि असली बुजुर्ग को पुतला समझकर उसकी टोपी पर उतर कर खड़ी हो गई। बेशक जंगली बतख बुजुर्ग के हाथ में पड़ गयी और मारी गयी।

    श्रोता दोस्तो, अभी आपने जो कहानी सुनी, उसका नाम था"जंगली बतख का दुखत अन्त"। चीनी भाषा में इसे"पू प्यान चन च्या"(bù biàn zhēn jiǎ) कहा जाता है। असली और नकली पुतले को न पहचानने की वजह से बतख को अपनी जान गंवानी पड़ी।

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