एक पट्टी एकमार्गः मौका या चुनौती?
एक पट्टी एक मार्ग पहल की प्रस्तुति के बाद भारत के विभिन्न तबकों में संदेह, चेतावनी, विवाद की आवाज़ सुनायी जाती हैं। विद्वानों ने अर्थव्यवस्था, रणनीति और सुरक्षा जैसे दृष्टिकोणों से इसका व्याख्यान किया। जबकि भारत सरकार की प्रतिक्रिया से देखा जाए तो सरकार के विचार विद्वानों से मिलते जुलते हैं।
भारतीय विश्व मामला कमेटी के अनुसंधानकर्ता राहुल मिश्रा के अनुसार रेशम मार्ग आर्थिक पट्टी और समुद्री रेशम मार्ग के अस्तित्व का भिन्न भिन्न सामरिक मकसद हैं। रेशम मार्ग आर्थिक पट्टी यूरोप व एशिया के थलीय देशों, मध्यम एशिया और पश्चिम एशिया के आपसी संपर्क और बुनियादी संरचनाओं के निर्माण पर ज़्यादा ध्यान देती है, जबकि समुद्री रेशम मार्ग के निर्माण से अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में चीन और महत्वपूर्ण भूमिका अदा करना चाहता है।
एशिया इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक और ब्रिक्स देशों के विकास बैंक जैसे मुद्दों पर भारत चीन के पहल का सक्रिय समर्थन करता है, लेकिन एक पट्टी एक मार्ग पहल के प्रति वह चिंतित है। राहुल मिश्रा का मानना है कि एक पट्टी एक मार्ग पहल ने भारत को गहरे संकट का अहसास दिया है। यह एहसास मुख्यतः चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे से आया है। यदि भारत आर्थिक कारणों से सीमा विवाद को ताक पर रखकर चीनी आर्थिक विकास के साथ गतिविधि भी करता, लेकिन एक बार पाकिस्तान के मुद्दे की चर्चा किए जाने पर, सब चिंताजनक हो गये हैं।
ऐतिहासिक तथ्यों से साबित हुआ है कि विनिर्माण उद्योग एक बड़े देश के पुनरुत्थान का आधार है। लेकिन वित्तीय संकट के बाद विनिर्माण उद्योग फिर एक बार विभिन्न देशों की प्रतिस्पर्द्धा का केंद्र बन चुका है।
कुछ विकसित यूरोपीय देशों और अमेरिका ने पुनः औद्योगिकीकरण और विनिर्माण की वापसी की रणनीति लागू की। वैश्विक विनिर्माण उद्योग नये तौर की क्रांति का सामना कर रहा है। चीन का परम्परागत विनिर्माण उद्योग कम लागत वाले विकास फार्मूले से ज्ञान, बौद्धिक पूंजी और नवाचार वाले विकास फार्मूलन में परिवर्तित कर रहा है। इस से अपेक्षाकृत नीचे औद्योगिकीकरण स्तर होने वाले विकासशील देशों के लिए विकास की संभावना दी गयी है।