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    मध्य प्रदेश में कुपोषण का काल- तीसरा भाग
    2017-05-05 18:29:13 cri

    पिछले दिनों आयकर विभाग ने प्रदेश में पोषण आहार वितरित करने वाली कम्पनियों के ठिकानों और मध्यप्रदेश सरकार के कुछ आला अफसरों के यहां छापे मार कर गड़बडियां पकड़ी थीं। आयकर विभाग ने काले धन को सफेद बनाने के लिए कई फर्जी कम्पनी बनाये जाने का अंदेशा जताया। इतना सब होने के बावजूद प्रदेश सरकार द्वारा आयकर विभाग से कोई जानकारी नहीं मांगी गई जबकि छापे में मिले दस्तावेज अफसरों और कम्पनियों पर कार्यवाही का आधार बन सकते हैं।

    "कैग" ने भी मध्यप्रदेश में पोषण आहार में हो रही गड़बड़ियों को लेकर कई बार आपत्ति दर्ज की। पिछले 12 सालों में कैग द्वारा कम से कम 3 बार पोषण आहार आपूर्ति में व्यापक भ्रष्टाचार होने की बात सामने रखी गई लेकिन सरकार द्वारा उसे हर बार नकार दिया गया। कैग ने अपनी रिपोर्टों में 32 फीसदी बच्चों तक पोषण आहार ना पहुंचने, आगंनवाड़ी केन्द्रों में बड़ी संख्या में दर्ज बच्चों के फर्जी होने और पोषण आहार की गुणवत्ता खराब होने जैसी गंभीर कमियों को उजागर किया।

    इस व्यवस्था में भ्रष्टाचार बेनकाब होने के बाद पिछले 6 सितंबर को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा पोषण आहार का काम कम्पनियों की बजाय स्वयं सहायता समूहों को दिये जाने की घोषणा की गई जिसके बाद महिला एवं बाल विकास मंत्री अर्चना चिटनिस ने 15 दिनों में नई व्यवस्था तैयार करने के निर्देश दिए थे लेकिन प्रदेश के अफसरशाही ने नई व्यवस्था जानने और समझने के नाम पर उच्च स्तरीय कमेटी बनाकर इस मामले को एक महीने एक उलझाये रखा। 8 अक्टूबर को हुई कमेटी की तीसरी बैठक में 12 साल से चली आ रही पोषण आहार के ठेकेदारी वाली केंद्रीय व्यवस्था को बंद करने का फैसला कर लिया।

    इन सबके बीच यह सवाल उठाना लाजिमी है कि मध्यप्रदेश सरकार ने पोषण आहार व्यवस्था में गलती मानकर इसे बदलने का ऐलान तो कर दिया लेकिन इसके लिए दोषी अफसरों और कम्पनियों पर कोई कार्यवाही नहीं की गई और ना ही भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच की गई। जानकार इसे एक तरह से पुरानी गड़बड़ियों पर पर्दा डालने की कवायद मान रहे हैं। मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्य सचिव निर्मला बुच का कहना है कि ''सरकार को पोषण आहार में भ्रष्टाचार की जांच के लिए अलग से ऐसी कमेटी बनानी चाहिए जिसमें महिला और बाल विकास व स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी ना हों, तभी बच्चों का निवाला खाने वालों का नाम सामने आ सकेगा और पता चल सकेगा कि गड़बड़ी कहां हुई और किसने की''।

    कुपोषण अपने आप में कोई बीमारी नहीं हैं, यह एक लक्षण है। दरअसल बीमारी तो उस व्यवस्था में है जिसके तहत रहने वाले नागरिकों को कुपोषण का शिकार होना पड़ता है। कुपोषण की जड़ें गरीबी, बीमारी, भूखमरी और जीवन की बुनियादी जरूरतों की अभाव में है। अभाव और भुखमरी की मार सबसे ज्यादा बच्चों और गर्भवती महिलाओं पर पड़ती है। आवश्यक भोजन नहीं मिलने की वजह से बड़ों का शरीर तो फिर भी कम प्रभावित होता है लेकिन बच्चों पर इसका असर तुरंत पड़ता है, जिसका असर लम्बे समय तक रहता है। गर्भवती महिलाओं को जरुरी पोषण नहीं मिल पाने के कारण उनके बच्चे तय मानक से कम वजन के होते ही है, जन्म के बाद अभाव और गरीबी उन्हें भरपेट भोजन भी नसीब नहीं होने देती। नतीजा कुपोषण होता है जिसकी मार या तो दुखद रुप से जान ले लेती है या इसका असर जिंदगीभर दिखता है।

    इतनी बुनियादी और व्यवस्थागत समस्या के लिए हमारी सरकारें बहुत ही सीमित उपाय कर रही हैं और उसमें भी भ्रष्टाचार, धांधली और अव्यवस्था हावी है। समेकित बाल विकास सेवा (आईसीडीएस) एक कार्यक्रम है जिसके सहारे कुपोषण जैसी गहरी समस्या से लड़ने का दावा किया जा रहा है। यह 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की शुरूआती देखभाल और विकास को लेकर देश का एक प्रमुख कार्यक्रम है जिसके द्वारा बच्चों को पूरक पोषाहार, स्वास्थ्य सुविधा और स्कूल पूर्व शिक्षा जैसी सुविधायें एकीकृत रूप से पहुंचायी जाती हैं। इस योजना के तहत आंगनवाड़ी केन्द्रों द्वारा दिए जाने वाले पोषण आहार पर प्रतिदिन एक बच्चे के लिए 6 रुपये खर्च किए जाते है जिसमें 2 रुपये नाश्ते और 4 रुपये भोजन का खर्च शामिल है।

    जाहिर है कुपोषण दूर करने की हमारी पूरी बहस आंगनवाड़ी सेवाओं तक ही सीमित है जबकि इसके मूल में गरीबी, आजीविका के साधन, वर्ग और जाति के आधार पर विभाजन आदि प्रमुख कारण हैं। यही वजह है कि हमारी सरकारें पिछले दस सालों में कुपोषण दूर करने का कोई टिकाऊ मॉडल खड़ा नहीं कर पायी हैं। शायद कुपोषण के मूल कारणों के समाधान में किसी की रुचि नहीं है।

    कुपोषण के मामले पर एक बार फिर घिरने के बाद अब मध्यप्रदेश सरकार कुपोषण पर श्वेतपत्र लाने जा रही है। विपक्ष का कहना है कि 'यह काले कारनामों पर पर्दा डालने का प्रयास हैं'। उम्मीद है मध्यप्रदेश सरकार कुपोषण को लेकर इतनी भीषण त्रासदी के लिए जिम्मेदारी निभाएगी और पुरानी चूकों को स्वीकार करेगी। इसके अलावा आईसीडीएस सेवाओं की पहुंच सभी बच्चों को सुनिश्चित करते हुए अपने श्वेतपत्र में कुपोषण के मुख्य कारणों को ध्यान में रखते हुए आजीविका, खाद्य सुरक्षा, रोजगार और सामाजिक सुरक्षा जैसे उपायों पर भी ध्यान देगी।

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