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लोहे के डंडे को सुई का रूप 铁杵磨针
"लोहे के डंडे को सुई का रूप"कहानी को चीनी भाषा में"थ्ये छू मो छंग चन"(tiě chǔ mó chéng zhēn) कहा जाता है। इसमें"थ्ये छू"लोहे का डंडा है, जबकि "मो"एक क्रिया शब्द और अर्थ है पीसना,"छंग"का अर्थ है बन होना और"चन"का अर्थ तो हो सुई।
कहते हैं कि चीन के थांग राजवंश (618-907) के महान कवि ली पाई को बचपन में पढ़ाई करना पसंद नहीं था। वह अक्सर स्कूल से भाग जाता था। एक दिन एक पाठ का आधा भाग भी नहीं पढ़ पाया था कि उसका मन पढ़ाई से उचाट हो गया। वह सोचता था कि इतनी मोटी पुस्तक पढ़ने में बेवजह समय बर्बाद होता है, पढ़ाई छोड़कर वह बाहर खेलने चला गया।
ली पाई बड़ी खुशी में कूदते हुए आगे बढ़ रहा था। अचानक कान में छा-छा-छा की आवाज सुनाई पड़ी। उसने चारों ओर नज़र दौड़ाई और देखा, सड़क किनारे बैठी एक बूढ़ी औरत पत्थर पर एक लोहे के डंडे को रगड़ते हुए उसे पतला बनाने की कोशिश कर रही थी। ली पाई को बड़ा ताज्जुब हुआ और वह पास बैठ कर महिला की मेहनते के बारे में सोचने लगा।
बूढ़ी औरत का ध्यान लोहे का डंडा रगड़ने में लगा था, और उसने ली पाई पर ध्यान नहीं दिया। थोड़ी देर में ली पाई की जिज्ञासा और बढ़ी। उसने पूछा:" दादी मां, तुम यह क्या कर रही हो?"
"मैं इस लोहे के डंडे को सुई का रूप दे रही हूं।"बूढ़ी औरत ने जवाब दिया।
"सुई बना रही हो!"ली पाई का कौतुहल और बढ़ा, "आखिर इस मोटे डंडे को भला सुई कैसे बनाया जा सकता है?"
बूढ़ी औरत ने तभी सिर उठा कर कहा:"बेटा, लोहे का डंडा कितना भी मोटा क्यों न हो, पर मैं रोज़ उसे रगड़ कर पतला बनाने की कोशिश करती रहूंगी, एक न एक दिन वह सुई बन जाएगा।"
वृद्धा का तर्क सुनने के बाद ली पाई का दिमाग खुल गया। उसने मन ही मन में सोचा कि दादी मां की बात बिलकुल ठीक है। जब हम लगातार कोशिश करते रहेंगे, तो काम कितना भी कठिन क्यों न हो, उसे अच्छी तरह पूरा किया जा सकता है। वह इसी क्षण घर लौटा, और ज़मीन पर पड़ी पुस्तक उठाकर लगन से पढ़ने लगा। वर्षों की कड़ी मेहनत के बाद ली पाई चीन का महान कवि बन गया।
"लोहे के डंडे को सुई का रूप" चीनी छात्रों को मेहनत से अध्ययन करने के लिए प्रेरित करने वाली लोकप्रिय कहानी है। हां, चीन के प्राचीन महा कवि ली पाई एक प्रतिभाशाली व्यक्ति थे, लेकिन उनकी महान सफलता कड़ी मेहनत पर आधारित थी। इसलिए वह छात्रों के लिए एक आदर्श मिसाल हैं।