रेगोंग क्षेत्र चीन के छिंगगाई प्रांत के ह्वांगनान स्टेट की थूंगरेन काउटी में स्थित है जो अपने यहां सुरक्षित अमूर्त सांस्कृतिक विरासत से देश भर में सुप्रसिद्ध है । रेगोंग इस शब्द का मतलब है गोल्डन सपना सच होने का स्थल । छिंगहाई प्रांत में रेगोंग क्षेत्र में सबसे केंद्रित अमूर्त सांस्कृतिक विरासत, सांस्कृतिक संसाधन और विविधता वाले सांस्कृतिक पर्यटन संसाधन मौजूद रहते हैं ।
रेगोंग क्षेत्र में तिब्बती पठार और पीली नदी क्षेत्र का जुड़ाव होता है । रेगोंग की संस्कृति में पशुपालन सभ्यता और कृषि सभ्यता का जुड़ाव भी नज़र में आ रहा है । रेगोंग की संस्कृति में थांगका चित्रकला, पत्थर की नक्काशी, मूर्तिकला, लोक-कला और तिब्बती बौद्ध धर्म कला आदि शामिल हैं । इस के अतिरिक्त रेगोंग क्षेत्र में पहाड़ों, घाटियों, घासमैदान और जंगल से गठित सुन्दर प्राकृतिक वातावरण भी मौजूद है ।
रेगोंग के ब्लू आकाश में सूरज की शानदार रोशनी है । सुगंधित श्वास हवा में चलती रही है । रेगोंग के मनोहर दृश्यों से देश विदेश के अनेक कलाकारों को आकर्षित किया जा रहा है । जांबाला पूर्वी चीन के शांघाई शहर में फोटोग्राफी सिखाने वाला कैमरामैन हैं । जांबाला ने कहा कि वे जभी समय हो तो रेगोंग की तीर्थ यात्रा करने आते हैं । क्योंकि यहां एक किस्म की असाधारण शक्ति खोज सकते हैं जो किसी भी दूसरे यहां से नहीं मिल पाती है ।
जांबाला ने कहा,"मुझे सबसे गहरी छाप लगी है वह है यहां के लोगों का मुस्कान । हम बड़े शहरों में ऐसा मुस्कान नहीं देख पाते हैं । यहां लोगों के चेहरे पर ईमानदार मुस्कान से उन के विशुद्ध दिल भी देख सकते हैं । "
25 साल पहले जांबाला फोटो खींचने के लिए रेगोंग गये । रास्ते पर उन्हों ने एक स्थानीय लामा से संपर्क किया और उन के प्रभाव से बौद्ध धर्म में विश्वास करना शुरू किया । लेकिन उन के ख्याल से रेगोंग चमत्कारी शक्तियों के साथ भूमि ही है । इस भावना का अनुभव यहां आने के बाद ही प्राप्त हो सकता है ।
रेगोंग की संस्कृति में थांगका चित्र का विशेष स्थान प्राप्त है । थांगका चित्र कपड़े या सील्क पर बनायी गयी चित्र है । थांगका का रंग आम तौर पर खनिज पदार्थों से बनाया जाता है और इसी कारण से थांगका चित्र का रंग हजारों वर्षों के लिए सुरक्षित हो सकता है । थांगका चित्र का 1300 साल इतिहास होता है । थांगका चित्र में तिब्बती समाज के सभी पहलुओं का वर्णन किया जाता है । इसलिए इसे तिब्बती जाति का विश्वकोश और देश का मूल्यवान गैर-भौतिक सांस्कृतिक विरासत भी कहा जाता है ।
रेगोंग के चीनी कला व शिल्प मास्टर शिखद्धा ने सात साल की उम्र सी ही थांगका चित्र सीखना शुरू किया था । बीते दर्जनों सालों में उनका थांगका चित्र पर भावना और बढ़ रही है ।
उन्हों ने कहा,"मैं ने सन 1953 से ही थांगका चित्र कला सीखना शुरू किया था । लेकिन हमारे दिल में जो आदर्श चित्र हैं, उसे चित्रित नहीं कर सकते हैं । क्योंकि बुद्धा का दया चेहरा वर्णित करना मुश्किल है । थांगका चित्रकारों के दिल में शांत होना ही पड़ेगा ।"
थांगका के चित्र कला में सख्त नियम है । थांगका के चित्रकारों को अपने काम करने के दौरान अत्यंत सख्त मापदंड का अनुसरण करना पड़ेगा । इसमें आंखें और यहां तक एक पत्ती या एक कपड़े का वर्णन करने में भी पूरे दिन का समय चाहिये ।
थांगका के सिवा रेगोंग क्षेत्र में और दूसरे सांस्कृतिक खजाने मौजूद हैं । और रेगोंग में भिन्न भिन्न संस्कृतियों का मिश्रण भी दिखता है । 19वीं शताब्दी में रेगोंग विभिन्न क्षेत्रों के व्यापारियों का पड़ाव बना । देश के दूसरे क्षेत्रों के हान, ह्वेई, मंगोलिया और सारा आदि जातियों के व्यापारियों ने यहां अपना घर रखा था । इन व्यापारियों के साथ तिब्बती बौद्ध धर्म, हान जातीय बौद्ध धर्म और इस्लाम, ताओ धर्म के मंदिर या मस्जिद आदि भी रेगोंग में रखे हुए नज़र आ रहे थे । पर रेगोंग के नागरिकों ने सभी धर्म का स्वीकार किया । और विभिन्न धर्म के मंदिर आज भी एक दूसरे को उपहार प्रदान करते रहे हैं ।
रेगोंग के एक मुस्लिम दोस्त हान चुन ने कहा कि उनके पूर्वज लोगों ने छींग राजवंश के काल में ही रेगोंग में निवास किया था तब वे रेगोंग में पशुधन उत्पादों की बिक्री करते थे । और उन का घर भी रेगोंग में सबसे पुराने मकानों में से एक है । उन के यार्ड में पत्थर नक्काशी, शिल्प सामग्री और चित्रों की सजावट हो गयी है ।
हान चुन ने कहा,"हमारे परिवार के पाँच भाइयां हैं, हम सबको पत्थर नक्काशी और चित्र कला पसंद है । हमारे परिवार में कई सौ ऐसे संकर्म सुरक्षित हैं । हम अपने घर में कला प्रदर्शनी का आयोजन करते हैं जो रेगोंग कला का प्रदर्शन करने का शोकेस भी माना जा रहा है ।"
रेगोंग एक ऐसा स्थल है जहां विभिन्न क्षेत्रों के व्यापारी, मजदूर, लामा, साधु और मुस्लिम लोग एकजुट होते रहे हैं । अलग अलग धर्म और जीवन शैली होने पर भी वे सौहार्दपूर्वक साथ साथ रहते हैं और एक दूसरे का समादर और मदद करते हैं ।
रेगोंग क्षेत्र के बारे में
रेगोंग क्षेत्र चीन के छिंगगाई प्रांत के ह्वांगनान स्टेट की थूंगरेन काउटी में स्थित है । इस क्षेत्र में से बहती लूंगवू नदी और नदी के तट पर खड़े लूंगवू मंदिर से रेगोंग क्षेत्र को और अधिक सुप्रसिद्ध बनाया है । 144 किलोमीटर लम्बी लूंगवू नदी चीन की मशहूर पीली नदी की शाखा है । लूंगवू नदी बहने का कुल क्षेत्रफल लगभग पाँच हजार वर्ग किलोमीटर विशाल है । इस क्षेत्र में छिंगहाई प्रांत की ज़कू और थूंगरेन दो काउटियां के कुछ क्षेत्र शामिल हैं । इसलिए रेगोंग कोई प्रशासनिक क्षेत्र नहीं है, वह अपने यहां के लूंगवू मंदिर के आसपास में समृद्ध संस्कृति और कला से देशभर में प्रसिद्ध बना हुआ है ।
छिंगहाई जातीय कालेज के प्रोफेसर मा छंग चुन का मानना है कि रेगोंग क्षेत्र का भौगोलिक अवधारणा सन 1953 में रेखांकित थूंगरेन काउटी का क्षेत्रफल है । इस के बाद ज़कू काउटी थूंगरेन काउटी में से निकल गयी । इस का मतलब है रेगोंग क्षेत्र ज़कू और थूंगरेन दो काउटियां के बराबर है । रेगोंग के पूर्व में तिब्बती बौद्ध धर्म के गेलुग संप्रदाय का केंद्र लाब्रांग मंदिर भी स्थित है । दोनों के बीच घनिष्ठ सांस्कृतिक संपर्क मौजूद हैं और आज भी रेगोंग के बहुत से साधु इस मंदिर में बौद्ध धर्म सीख रहे हैं । और रेगोंग क्षेत्र तथा इस के दक्षिण में फैले विशाल कृषि क्षेत्रों से इस की संस्कृति पर भारी प्रभाव पड़ता है ।
रेगोंग संस्कृति में थांगका चित्रकला, मूर्तिकला, त्वईस्यू कला, निर्माण चित्रकला, पत्थर नक्काशी, लकड़ी नक्काशी और कुछ लोक त्योहार आदि सब देशव्यापी मशहूर हैं और वे भी देश विदेश के पर्यटकों को आकर्षित करने के मुख्य तत्व हैं । रेगोंग में सांस्कृतिक संसाधन के संरक्षण और विकास के लिए छिंगहाई प्रांत के ह्वांगनान स्टेट ने राष्ट्रीय स्तरीय रेगोंग सांस्कृतिक और पारिस्थितिक संरक्षण क्षेत्र की स्थापना करने की रूपरेखा तैयार की । योजना में रेगोंग संस्कृति पार्क, कला पार्क, मीडिया एनीमेशन पार्क तथा मंगोलियाई और तिब्बती संस्कृति के घासमैदान पर्यावरण और सांस्कृतिक पार्क आदि का निर्माण भी शामिल है ।
रेगोंग सरकार परंपरागत संस्कृति के संरक्षण और विकास को महत्व देती रही है । इधर के वर्षों में रेगोंग चित्रकारी अकादमी में कुल 320 चित्रकारों का प्रशिक्षण कर चुका है और उन में बहुत से आसपास क्षेत्र के गरीब किसानों व चरवाहों के पुत्र भी हैं । छात्रों को अकादमी में व्यवस्थित, मानकीकृत और सख्त पेंटिंग कौशल प्रशिक्षण किया जा रहा है और साथ ही छात्रों को धार्मिक इतिहास व संस्कृति, थांगका चित्र कला का सार, आचार संहिता आदि कोर्स भी सीखना ही पड़ता है । अकादमी से स्नातक होने के बाद अधिकांश छात्र उच्च गुणवत्ता वाले चित्रकार बने हुए हैं । अभी तक रेगोंग क्षेत्र में कुल 78 सांस्कृतिक कारोबार स्थापित हो चुके हैं जिनमें 16 हजार कर्मचारी कार्यरत हैं और प्रति व्यक्ति के लिए बीस हजार युआन की आय प्राप्त होती है ।
परंपरागत संस्कृति के विकास के लिए ह्वांगनान स्टेट में प्रति वर्ष रेगोंग कला महोत्सव और अंतर्राष्ट्रीय तीरंदाजी टूर्नामेंट आदि समारोह आयोजित होते रहे हैं । देश के बड़े शहर जैसे पेइचिंग, शांघाई और शेनचेन आदि में दो सौ से अधिक रेगोंग कला प्रदर्शनी खिड़की खोली हुई हैं । साथ ही तिब्बती ओपेरा और जातीय गीत-संगीत ग्रुप आदि कलात्मक दलों की स्थापना को भी सरकार की तरफ से सहायता मिल पायी है ।
( हूमिन )