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    तिब्बत मामलों के विशेषज्ञ ल्याओ तुंग फ़ैन की स्मृति में
    2017-02-20 14:31:05 cri

    ल्याओ तुंग फ़ैन    

    श्री ल्याओ तुंग फ़ैन चीन में तिब्बत मामलों के संदर्भ में सर्वमान्य विशेषज्ञ हैं । इस वर्ष 11 फरवरी को लंबे समय तक बीमारी से ग्रस्त होने के बाद श्री ल्याओ तुंग फ़ैन चले गये । उन के निधन की खबर मिलने के बाद चीन में तिब्बत का अनुसंधान कर रहे विद्वानों और विशेषज्ञों ने श्री ल्याओ तुंग फ़ैन को शोक प्रकट किया और उन की स्मृति में आलेख प्रकाशित किये ।

    ल्याओ तुंग फ़ैन सन 1938 के जनवरी में पूर्वी चीन के हूनान प्रांत के एक गांव में जन्म हुआ था । वर्ष 1961 में पेइचिंग विश्वविद्यालय में स्नातक होने के बाद वे तिब्बत में काम करने के लिए ल्हासा गये थे । तिब्बत में 24 साल काम करने के दौरान उन्हों ने तिब्बत के अनेक शहरों, ग्रामीण क्षेत्रों और मंदिरों का दौरा किया और तिब्बत के इतिहास, धर्म, रीति-रिवाज़ तथा लोक कला का अनुसंधान किया । ल्याओ तुंग फ़ैन तिब्बती लोगों के साथ अत्यंत गहरी दोस्ती बनाए और उन की तरफ से बड़ी मात्रा के लोक-गीत, लोक-साहित्य, लोक कहावत और लोक संस्कृतियों का संग्रह किया था । यह उल्लेखनीय है कि ल्याओ तुंग फ़ैन अपने तिब्बती दोस्तों के साथ-साथ दीर्घकाल तक रहते थे और धाराप्रवाह तिब्बती भाषा भी सीखी थी । उन्हों ने तिब्बत के लोक कलाकारों का संगठन कर राजधानी पेइचिंग में प्रदर्शन भी करवाया था । उन्हों ने अपने प्रयासों से तिब्बत में सांस्कृतिक विरासत के विकास के लिए सकारात्मक योगदान पेश किया था ।

    सन 1985 में ल्याओ तुंग फ़ैन पेइचिंग में स्थित चीनी लोक कला अनुसंधानशाले का प्रधान बना और पाँच साल बाद यानी सन 1990 में उन्हें पत्रिका "चीनी तिब्बत" का प्रकाशक और मुख्य संपादक नियुक्त किया गया । ल्याओ तुंग फ़ैन ने अपने तिब्बती अध्ययन के बारे में "तिब्बती लोक कथाएँ " सहित कोई चालीस किताबें प्रकाशित की हैं और चीनी मुख्य भूमि के सिवा हांगकांग व थाइवान आदि में उन की किताबों का प्रकाशन भी किया गया है । उन की किताबें "तिब्बत में मिथक और किंवदंती" और "तिब्बती कस्टम्स" आदि को भी अनेक बार राष्ट्रीय पुरस्कार अर्पित किये गये हैं । उन के निधन की खबर मिलने के बाद बहुत से अनुसंधानकर्ता दु: ख में गिर गये । उन्हों ने कहा कि ल्याओ के निधन से तिब्बती लोक कला के अनुसंधान के क्षेत्र में भारी नुकसान हुआ है ।

    तिब्बत और तिब्बती संस्कृति के प्रति ल्याओ तुंग फ़ैन की गहरे प्यार की भावना मौजूद रही थी । सन 1977 से 2011 तक उन्हों ने कुल चालीस से अधिक किताबें प्रकाशित कीं और उनमें "ल्हासा के उपाख्यान" आदि पुस्तकों का देश विदेश में व्यापक प्रभाव पड़ा है । उन की पुस्तकें तिब्बती मामले के शोधकर्ताओं के लिए महत्वपूर्ण उद्धरण सामग्रियां मानी जाती हैं । इस के सिवा ल्याओ तुंग फ़ैन ने तिब्बती नृत्य, नाट्य और संगीत से संबंधित कुल सौ से अधिक कार्यक्रम बनाने में भी भाग लिया था । ये कार्यक्रम आज भी तिब्बत में परिचालित किये जा रहे हैं ।

    सन 1999 में रिटायर्ड होने के बाद ल्याओ तुंग फ़ैन ने घर में अपनी सबसे महत्वपूर्ण रचना " तिब्बती लोक संस्कृति सीरीज " लिखना शुरू किया । उन्हों ने तिब्बत में 24 साल काम करते समय प्राप्त सभी जानकारियां और भावनाएं इसमें डाल दी हैं । सन 2008 में प्रकाशित बीस लाख शब्दों के इस सीरीज में तिब्बत के इतिहास, लोक कला, कथाएं और कहानियां आदि सब प्रदर्शित की जा रही हैं । ल्याओ तुंग फ़ैन की महत्वपूर्ण रचनाएं उन के तिब्बत में दीर्घकालीन जीवन से आधारित हैं ।

    अपने तिब्बती दोस्तों के साथ

    सन 1961 में पेइचिंग विश्वविद्यालय से स्नातक होने के बाद ल्याओ तुंग फ़ैन ने तिब्बत में काम करना शुरू किया । तब उन्हें ल्हासा शहर में एक नृत्य दल स्थापित करने का आदेश दिया गया । लेकिन इस टीम के सदस्यों में बहुत से लोग अशिक्षित रहे और उन्हें प्राप्त सब्सिडी भी लिमिटेड हुए । ल्याओ तुंग फ़ैन ने अपने सदस्यों को चीनी भाषा सिखायी और उन से तिब्बती भाषा सीखी । अधिक आय प्राप्त करने के लिए वे साथ साथ अस्पताल में काम करने जाते थे । ल्याओ तुंग फ़ैन की कोशिशों से इस नृत्य दल ने उल्लेखनीय प्रगतियां हासिल कीं । तिब्बत में दीर्घकाल तक रहने में ल्याओ तुंग फ़ैन ने धाराप्रवाह तिब्बती भाषा बोलने में अभ्यस्त किया । तिब्बती भाषा बोलते समय वे कभी कभी प्राचीन शब्दों और मुहावरे आदि का इस्तेमाल भी कर सकते थे । जब राजनेता तिब्बत का दौरा करते थे तब ल्याओ तुंग फ़ैन अनुवादक का काम भी कर चुके थे ।

    लोग यह पूछते थे कि ल्याओ तुंग फ़ैन तिब्बती संस्कृति के अनुसंधान में क्यों इतनी शानदार उपलब्धियां प्राप्त कर सकते थे?कारण यह था कि वे हमेशा गहरी भावना के साथ अपने तिब्बती दोस्तों के साथ जीते रहे थे और उन्हों ने अपनी जान भी इस पठार पर डाल दी थी ।

    सन 1982 में ल्याओ तुंग फ़ैन मेटोक काउंटी में रहने वाले मेम्बा और लोबा जातियों के लोक कला, कथा, रीति-रिवाज और लोक-साहित्य का ग्रहण करने जाते थे । लेकिन उबड़ खाबड़ पहाड़ी मार्गों पर ल्याओ तुंग फ़ैन कई बार जान खोने के खतरे में बाल-बाल बच गये थे । अंततः ल्याओ ने कड़ी मेहनत के माध्यम से दर्जनों लोक कथाओं और तीन हजार लोक गीतों का ग्रहण करने में सफल किया ।

    ल्याओ तुंग फ़ैन की और कुछ कहानियां हैं । सन 1960 के दशक में उन्हों ने अपने टीम सदस्यों के साथ दमशूंग काउटी में प्रदर्शन किया था । मकान न मिलने के कारण उन्हें रात को टेंट में रहना पड़ा था । लेकिन उसी रात को भारी बर्फ पड़ने से तम्बू कुचल हुआ । ल्याओ तुंग फ़ैन तम्बू में से भाग निकले थे और अपने सहपाठियों को जगा दिया । तिब्बत में लोक कला की सामग्रियों का ग्रहण करते समय ल्याओ तुंग फ़ैन कई बार खतरे में से बच गये थे ।

    ल्याओ तुंग फ़ैन तिब्बत से प्यार करते थे और तिब्बती लोग उनसे भी प्यार करते थे । जब वे तिब्बत में पुनः गये थे तब तिब्बती दोस्तों ने उन का हार्दिक स्वागत किया । तिब्बती दोस्त जब पेइचिंग में आये थे तब वे सब ल्याओ को देखने जाते थे और कुछ लोग ल्याओ के घर में ही रहते रहे । ल्याओ तुंग फ़ैन ने ल्हासा में काम करते समय अपने तिब्बती सहपाठियों के साथ मजबूत दोस्ती बनायी थी । बाद में जब देश में रुपांतर शुरू होने लगा, उन के टीम के सदस्य सब प्रभावशाली आदमी बन गये थे । उन में कुछ लोग परिवहन चलाना शुरू करते थे, कुछ लोग खेत को अनुबंधित करते थे और कुछ लोग अपने बच्चों को विदेशों में सिखाने भेजते थे । ल्याओ तुंग फ़ैन को दोस्तों की उपलब्धियों से खुशी हुई थी । उन्हों ने अपने दोस्तों की सफलता के लिए भी भरसक कोशिश की थी । ल्याओ के जवाब में दोस्तों ने भी उन्हें सबसे हार्दिक और गर्म हंसती दिखाई थी । बुहत से स्थानीय लोगों के घर में ल्याओ तुंग फ़ैन के फोटो लगाये हुए थे । जब ल्याओ तंग फ़ैन लोक कला की सामग्री तलाशने के लिए गाव में गये थे तब गांववासी त्योहार मनाने के जैसे उन का स्वागत करते थे ।

    पुस्तक विमोचन समारोह में

    सन 1979 से ल्याओ तंग फ़ैन ने दूसरे काम को छोड़कर तिब्बती लोक कला और साहित्य का विशेष तौर पर अनुसंधान करना शुरू किया था । तिब्बती दोस्तों की मदद से ल्याओ तंग फ़ैन तिब्बत, मम्बा और लोबा आदि जातियों की दस लाख शब्दों की लोक कथाएं और कई हजार लोक गीत इकट्ठे कर चुके थे । इन पुस्तकों का एक एक प्रकाशन किया गया है । और उनमें बहुत सी रचनाओं को राष्ट्रीय पुरस्कार भी अर्पित किये गये हैं ।

    ल्याओ तंग फ़ैन ने यह बताया था कि तिब्बती लोक कला पहाड़ों में छिपा हुआ खजाना ही है । खजाना तलाशने का रास्ता लम्बा और मुश्किल है, खोजकर्ता ने जब साहसी के साथ खजाने का पता लगाया था, तब उसके दिल में खुशी से फूला न समाएगा ।

     

    "ल्हासा के उपाख्यान" के पीछे की कहानी

    "ल्हासा के उपाख्यान" श्री ल्याओ तंग फ़ैन का एक महत्वपूर्ण पुस्तक है जिसमें तिब्बत की राजधानी ल्हासा इस सांस्कृतिक शहर के इतिहास और विकास का रिकॉर्ड किया गया है । ल्याओ तंग फ़ैन ने यह किताब लिखने में कुल 40 साल का समय लगाया था ।

    ल्हाया यह पुराना शहर 1400 साल पुराना होता है । बौद्ध धर्म के प्रसार से ल्हासा शहर एक तीर्थ स्थल बना था और वहां धार्मिक व्यक्ति, साधु और रॉयल परिवार इकट्ठे हुए थे । ल्याओ तंग फ़ैन ने इस शहर के इतिहास का रिकार्ड करने के लिए असंख्य व्यक्तियों से इंटरव्यू कर लिया था । ऐतिहासिक तथ्यों की पुष्टि करने के लिए उन्हों ने शहर के अनेक स्थलों का दौरा भी किया था ।

    लेखक ल्याओ तंग फ़ैन ने तिब्बत में बहुत से दोस्त बनाये थे । उन के दोस्तों में लोक कलाकार, सांस्कृतिक अफसर, कुलीन परिवार के वंशज जैसे हर तरह आदमी शामिल थे । ल्याओ तंग फ़ैन ने इन व्यक्तियों से इतिहास की मूल्यवान सामग्रियां प्राप्त की थीं और इन सामग्रियों का अपने लेखन में इस्तेमाल किया था । "ल्हासा के उपाख्यान" भी उन की कोशिशों का परिणाम माना जा सकता है । तिब्बत की यात्रा करने वाले पर्यटक गाइड बुक के रूप में यह किताब पढ़ने योग्य हैं । क्योंकि इस किताब में जो लिखे हुए हैं, वे ल्याओ तंग फ़ैन के चालीस सालों के जांच व अनुसंधान काम का परिणाम है ।

    ( हूमिन )

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