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    तिब्बती"शुन नृत्य"का संरक्षण
    2017-01-23 14:11:36 cri

     

    तिब्बत के नृत्य कला में"शुन नृत्य"विशेष परंपरागत नृत्य कला माना जा रहा है ।"शुन नृत्य"में कथा का वर्णन करने, गाना गाने और नृत्य नाचने के कई अंक शिरकत हैं । यह नृत्य आम तौर पर तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के ज़ान्दा काउंटी और मैजूकूंगर काउंटी में चलता रहता है । वर्ष 2008 के जून में चीनी राज्य परिषद ने इसे राष्ट्रीय अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की नामसूची में शामिल करा दिया है ।

    तिब्बत के दूसरे जातीय नृत्य कला की तुलना में"शुन नृत्य"की अपनी विशेष शैली सुरक्षित है ।"शुन नृत्य"प्राचीन काल में तिब्बत के गू-ग राजवंश के समय जन्म हुआ था । अभी तक वह एक हजार साल पुराना है । ऐतिहासिक रिकॉर्ड के अनुसार वर्ष 1042 में ही गू-ग राजा के समारोह में"शुन नृत्य"दिखाया गया था । गू-ग राजवंश के खंडहर की भित्ति-चित्र पर आज भी दिखता है कि दस नृत्य लड़कियां"शुन नृत्य"का प्रदर्शन कर रही थीं ।

    वास्तव में"शुन नृत्य"कोर्ट का नृत्य था, इस का मतलब है कि"शुन नृत्य" लोक नृत्य नहीं था और आम लोग यह नृत्य नहीं कर सकते थे । ऐसा नियम भी था कि राज्य के नर्तकी सिर्फ विशेष पोशाक पहनकर नियमित समय पर यह नृत्य कर सकती थी । लेकिन आज"शुन नृत्य"त्योहार के समारोह में आम लोगों के लिए खुशियां दिलाने का कला बना है ।

    ज़ान्दा काउंटी का दौरा कर रही अनुसंधानकर्ता, पेइचिंग के केन्द्रीय जातीय विश्वविद्यालय की डाक्टर रेन युवन पीन ने कहा,"मैं पेइचिंग के जातीय विश्वविद्यालय में पीएचडी पढ़ रही हूं । दो साल पहले मैं ने यहां आयोजित एक संस्कृति संगोष्ठी में"शुन नृत्य"का प्रदर्शन देखा था । मुझे इस के प्रति बड़ी रुचि होती है । मैं तीसरी बार यहां आ चुकी हूं ।"

    "शुन नृत्य"के शब्द में"शुन"का मतलब है नृत्य ।"शुन नृत्य"प्राचीन काल में तिब्बत के पश्चिमी भाग के नागरी क्षेत्र में जन्म हुआ था, इस का कम से कम एक हजार साल पुराना है । लोक नृत्य होने के बजाये"शुन नृत्य"का प्रदर्शन आम तौर पर राजवंश के भवनों में किया जाता था । और"शुन नृत्य"के गाने और नाचने में सख्त नियम निभाना पड़ता था ।

    गू-ग राजवंश के खंडहर के गाइड बासांग त्सेरेन ने कहा कि आज हम गू-ग राजवंश के खंडहर के भित्ति-चित्रों पर प्राचीन काल का"शुन नृत्य"देख पाते हैं ।

    उन्हों ने कहा, " गू-ग राजवंश के खंडहर में एक लाल भवन है जिस पर"शुन नृत्य"के भित्ति-चित्रों की दिखाई पड़ती है । वह शायद धार्मिक नृत्य था क्योंकि आम तौर पर धार्मिक समारोह में ऐसा नृत्य प्रदर्शित किया जा रहा था । कुछ किताबों की मुताबिक"शुन नृत्य"तिब्बत के आदिम धर्म"बोन"(Bon) में से आता था । बाद में वह आम लोगों के भीतर फैलाया गया था ।"शुन नृत्य"का आज भी प्रदर्शन किया जा रहा है और ऐसे नृत्य कला के उत्तराधिकारी भी तय किये गये हैं ।"

    84 वर्षीया बुढ़िया ज़ू-गा"शुन नृत्य"के उत्तराधिकारियों में से एक हैं । उन्हों ने कहा कि वो अपनी बीस साल की उम्र से"शुन नृत्य"सीखना शुरू करती थीं । लेकिन उस समय उन्हें विवश होकर यह नृत्य सीखना पड़ा था ।

    उन्हों ने कहा,"उस समय भूमिदास के हरेक परिवार में से कम से कम एक लड़की को राजा के महल में"शुन नृत्य"सीखने देना पड़ता था ।"शुन नृत्य"केवल ऐसी निर्वाचित लड़कियों द्वारा नाचना पड़ता था ।"शुन नृत्य"सीखना आसान था पर मुझे बड़ी चिन्ता हुई थी । क्योंकि इन निर्वाचित लड़कियों को अगर"शुन नृत्य"सीखने में असमर्थ रहो , तो उन्हें राजा के तहत पदाधिकारियों की उपपत्नी बनायी जाती थी ।"  

    ज़ू-गा ने अपने आपबीती की याद करते हुए कहा कि वर्ष 1959 के जनवादी रुपांतर होने से पहले उन्हें विवश होकर राजा की सेवा की तरह"शुन नृत्य"सीखना पड़ता था । जनवादी रुपांतर होने के बाद ही"शुन नृत्य"करने का सकारात्मक अर्थ प्राप्त होने लगा । वर्ष 2008 में"शुन नृत्य"को देश के गैर-भौतिक सांस्कृतिक विरासत की नामसूची में शामिल कराया गया और बुढ़िया ज़ू-गा भी"शुन नृत्य"की राष्ट्र स्तरीय उत्तराधिकारी बनी । ज़ू-गा ने अपनी उन्नत उम्र के बावजूद नौ महिला प्रशिक्षुओं का प्रशिक्षण शुरू किया ।

    उन्हों कहा,"सरकार की मदद में मैं ने नौ महिला प्रशिक्षुओं का प्रशिक्षण शुरू किया । काम तो मुश्किल है और सर्दियों के दिनों में मौसम भी अच्छा नहीं । पर किसी भी कठिनाइयों में मैं अपना पाठ्यक्रम जारी रखूंगी ।"

    परंपरागत"शुन नृत्य"कुल 13 अंकों से गठित होना चाहिये था । समय बीतने के साथ साथ ज़ू-गा की स्मरण-शक्ति भी इतनी तेज़ नहीं रही है । पर उन्हों ने फिर भी जी-जान से अपनी महिला प्रशिक्षुओं के प्रशिक्षण में जोर लगाया है ।

    उन्हों ने कहा,"मैं पूरे 13 अंकों का"शुन नृत्य"नाचने में समर्थ रही थी और उन में नौ अंकों की मैं आज भी बहुत स्पष्ट रूप से याद कर सकती हूं ।"शुन नृत्य"की अपनी ऐतिहासिक कहानी है । इसलिए मैं ने"शुन नृत्य"के राग में कोई परिवर्तन नहीं दिलाया और मैं ने परंपरागत"शुन नृत्य"ज्यों का त्यों अपने महिला प्रशिक्षुओं को सिखा दिया है ।"

    थोलिंग मठ पुराने समय में"शुन नृत्य"का प्रदर्शन करने का स्थल रहा था । आज यहां भी ज़ू-गा की महिला प्रशिक्षुओं के लिए"शुन नृत्य" नाचने का मंच बना है । 35 वर्षीया यांग-कीन ज़ू-गा की नौ महिला प्रशिक्षुओं में से एक है और उन्हों ने निरंतर दस वर्षों के लिए ज़ू-गा से"शुन नृत्य"सीख लिया है । वे हमेशा भिन्न भिन्न काउटियों में आयोजित नृत्य प्रतियोगिताओं में भाग लेती रही हैं । उन्हों ने कहा कि वे"शुन नृत्य"के सुंदर गीतों से प्रेरित होकर इस नृत्य कला में लगी हुई हैं ।

    उन्हों ने कहा, " शुन नृत्य के गीति काव्य आम तौर पर मंदिर, जीवित बुद्धा और लामा आदि धार्मिक तत्वों से आधारित हैं । या तो हमारे क्षेत्र, माता पिता और आसपास के पर्यावरण आदि मुद्दों से संबंधित हैं । शुन नृत्य जीवन के सभी पहलुओं का वर्णन किया जाता था । पर भिन्न भिन्न मुद्दों पर शुन नृत्व गाने का ढ़ंग भी अलग है ।"

    अब"शुन नृत्य"सीखने वाले छात्रों का अभाव नहीं हो गया है , लेकिन बुढ़िया ज़ू-गा के दिल में फिर भी चिन्ता बढ़ती है । क्योंकि आधुनिक काल में अधिकांश लोगों को तेज़ गीत-संगीत और नृत्य पसंद होने लगा है । पर"शुन नृत्य"का जो लय है वह धीमा होता है । ज़ू-गा की चिन्ता यही है कि आधुनिक जीवन में लगे हुए जवानों को"शुन नृत्य"जैसे परंपरागत नृत्य के प्रति काफी रुचि नहीं हो सकेगी ।

    वर्ष 2011 में तिब्बत प्रदेश की ज़ान्दा काउंटी में देश का एक मात्र ही शुन नृत्य मंडल यानी ज़ान्दा लोक कला मंडल स्थापित किया गया जो विशेष तौर पर हजार वर्ष पुराने"शुन नृत्य"का विरासत के रूप में ग्रहण करता है ।

    ज़ान्दा काउंटी के लोक कला मंडल के रिहर्सल हॉल में "शुन नृत्य"का प्रदर्शन दिख रहा है । मंडल के सदस्यों ने स्थानीय संस्कृति व कला महोत्सव में हिस्सा लेने के लिए पूरी तरह से तैयार किया है । कलाकारों ने"शुन नृत्य"के परंपरागत कला में कुछ आधुनिक तत्व भी शामिल करा दिया है । हॉल में बुढ़िया ज़ू-गा भी कुर्सी पर बैठकर अपनी छात्रों का गाइडिंग कर रही हैं । ज़ान्दा लोक कला मंडल की प्रधान ग-सांग यू-चेन ने कहा कि ज़ू-गा ने अभी अस्पताल में ऑपरेशन लिया, वो मंच में खुद ही प्रदर्शन करने में असमर्थ हैं, लेकिन उन का दिल हमेशा से मंच पर रहता है ।

    ग-सांग यू-चेन ने कहा,"जभी हम"शुन नृत्य"का अभ्यास करते हैं तब ज़ू-गा जी भी अकसर हमें राय देने के लिए आती रहती हैं । हम"शुन नृत्य"की वेशभूषा में पहनकर प्रदर्शन करते हैं और ज़ू-गा जी हमें पूरे नाटक की टीका-टिप्पणी करती हैं ।"

    यह पूछे जाने पर कि इतना काम कर क्या थकावट लगती है , तब ज़ू-गा जी ने खुशी से दूसरे को बता दिया,"मुझे बचपन से ही गायन व नृत्य पसंद हुई थी । मेरे लिये यह बहुत आराम से चलता है । आज का समाज बहुत अच्छा है । हर जगह युवा लोग गाते नाचते दिखाई देते हैं । यह देखकर मुझे बहुत खुशी है ।"

    ज़ान्दा काउंटी के थोलिंग मठ के पास ज़ू-गा जी अपनी छात्रों के साथ साथ"शुन नृत्य"का पुरानी धुन में गायन करती रहती हैं । इस सुन्दर दृश्य ने प्राचीन काल की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्मृति को उजागर किया है ।

    ( हूमिन )

      

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