कहा जाता है कि"फ़ू"को उलटा करके चिपकाने की प्रथा छिंग राजवंश के राजकुमार कुंग छिंग के महल से आयी थी। एक साल के वसंतोत्सव की पूर्वबेला में राजकुमार महल के प्रबंधक ने अपने स्वामी की खुशामद करने के लिए पहले की ही तरह अनेक"फ़ू"लिखकर नौकरों को गोदामों व द्वारों पर चिपकाने की आज्ञा दी। लेकिन एक नौकर ने अनपढ़ होने की वजह से द्वार पर"फ़ू"शब्द को उलटा लगाया।
इसे देखकर राजकुमार कुंग छिंग की पत्नी को बड़ा गुस्सा आया। राजकुमार महल के वह प्रबंधक बहुत चतुर और वाक्यपटु थे और जमीन पर दंडवत् कर कहा,"आप का दास मैं सुनता हूं कि राजकुमार और आप दीर्घायु भी हैं और सौभाग्य भी। आज फ़ू वाकई आ पहुंचा है। यह बिलकुल खुशहाली व सौभाग्य का संकेत है।"
यह सुनकर राजकुमार की पत्नी ने मन ही मन सोचा कि इस दास की बातें सचमुच ठीक है, हमारे महल के सामने गुजरने वाले सब लोग यदि कहते हैं कि कुंग वांग महल में"फ़ू दाओ ला"( अर्थात"फ़ू"पहुंच गया है)। शुभ बातें हज़ारों बार कहने से घर में जरूर सोने व चांदी के ढेर लगेंगे। खुशी के मारे राजकुमार की पत्नी ने प्रबंधक और उलटा"फ़ू"लगाने वाले नौकर को भारी इनाम दिया।
इस के बाद"फ़ू"को उलटा देकर लगाने की प्रथा पदाधिकारियों के घरों से आम जनता के घरों में आ पहुंची। सभी लोगों को यह सुनना पसंद है कि राहचर या शरारत बच्चे"फ़ू दाओ ला""फ़ू दाओ ला"कहते हुए अपने द्वार के सामने गुजरते हैं।