7 जनवरी को चीन की राजधानी पेइचिंग में उद्घाटित तिब्बती थांगका चित्र कला की प्रदर्शनी ने दर्शकों को आकर्षित किया और इस का नागरिकों में खूब स्वागत भी हुआ ।
तिब्बत के चित्र कला अकादमी के उप प्रधान लाबा त्सेरिंग ने मीडिया के साथ किये एक इंटरव्यू में कहा कि प्रदर्शनी में तिब्बती कलाकारों की श्रेष्ठ रचनाएं व चित्रों को शामिल की गई है और उनमें तिब्बत के विभिन्न समुदायों की रचनाएं शामिल हैं और तिब्बत के वरिष्ठ और युवा कलाकारों ने भी अपनी थांगका चित्र लेकर इस प्रदर्शनी में शामिल किया है ।
लाबा त्सेरिंग ने कहा कि इस प्रदर्शनी में थांगका कला की पाँच प्रमुख शाखाओं के कलाकारों ने सब भाग लिया है और यह कहा जाता है कि प्रदर्शनी में जो प्रदर्शित रचनाएं हैं, उनमें तिब्बत में थांगका कला का उच्च स्तर साबित है । और दर्शकों में इन चित्रों का बहुत स्वागत किया गया है ।
उन्हों ने कहा,"हम चीनी राष्ट्रीय कला संग्रहालय की सहायता से यह प्रदर्शनी आयोजित करते हैं । यह पहली बार है कि देश के राष्ट्रीय कला संग्रहालय में थांगका चित्र कला प्रदर्शनी का आयोजन किया गया है । इस के अधीन एक विशेष संगोष्ठी भी आयोजित हुआ और इससे लोगों का ध्यान आकर्षित हुआ ।"
थांगका को तिब्बत में विशेष चित्र कला मानी जाती है । इसे तिब्बती संस्कृति का विश्वकोश और पारंपरिक संस्कृति व कला का मूल्यवान गैर-भौतिक विरासत कहा जाता है । सरकार ने थांगका, तिब्बती ओपेरा और गेसार महाकाव्य आदि पारंपरिक संस्कृति के संरक्षण में भारी निवेश लगाया है ।
पेइचिंग के नागरिकों में बहुत से लोग कला प्रेम होते हैं । इन के लिए तिब्बती थांगका प्रदर्शनी आयोजित करने का समय बहुत कम है । पेइचिंग की निवासी सुश्री वू ने कहा कि यह पहली बार है कि वे नजदीक से थांगका का दर्शन कर पाती हैं जिससे उन्हें गहरी छाप लगी है । उन्होंने कहा,"थांगका देखते समय मेरी आंखों के सामने प्रकाश आया था । थांगका चित्र कलाकारों ने तिब्बती पठार के प्राकृतिक वातावरण में अपना ईमानदार व भक्त रवैया दिखाया है । मैं रचनाओं से उन कलाकारों का उज्जवल भविष्य देख पाती हूं ।"
सछ्वान प्रांतीय विश्वविद्यालय के कला स्कूल के प्रोफेसर गेल्सांग ईशी ने प्रदर्शनी की भुरि भुरि प्रशंसा करते हुए कहा कि इधर के वर्षों में थांगका के प्रति अधिकाधिक लोगों को रुचि पैदा होने लगी है । इस पारंपरिक संस्कृति का उल्लेखनीय विकास किया गया है । उन्हों ने कहा,"थांगका चित्र को तिब्बत की पारंपरिक संस्कृति का लोगो बताया गया है और इस कला का खूब विकास होने लगा है । आज तिब्बत में थांगका चित्र कलाकारों की संख्या बहुत बढ़ गयी है और उन का कलात्मक स्तर भी बहुत बढ़ा है । इधर के वर्षों में थांगका भी दूसरी तिब्बती संस्कृति रचनाओं की तरह विश्व उन्मुख प्रस्तुत की जा रहे हैं । और इस का विश्व के दूसरे यहां भी खूब स्वागत किया जा रहा है ।"
तिब्बत के चित्र कला अकादमी के उप प्रधान लाबा त्सेरिंग ने भी अपने थांगका चित्रों को लेकर इस प्रदर्शनी में शामिल किया । चीनी राष्ट्रीय कला संग्रहालय ने उन की रचना राजा गेसार को खरीद कर संग्रहित किया । उन का ख्याल है कि थांगका चित्र कला के विकास में नवाचार की बड़ी जरूरत है । लाबा त्सेरिंग ने कहा कि तिब्बत में थांगका चित्र धर्म विश्वास और ऐतिहासिक विरासत का जीवित जीवाश्म माना जाता है । उन्हों ने कहा, "आज हम जो थांगका चित्र देख रहे हैं, वे सब बौद्ध धर्म के दिव्य चरित्र या साधुओं व उपासक साधना करने की कहानियों से संबंधित हैं । इन के अतिरिक्त तिब्बत की ऐतिहासिक घटनाओं और जड़ी-बूटियों की जानकारियों का वर्णन भी शामिल हैं । इसलिए थांगका चित्र तिब्बत का विश्वकोष कहा जाता है ।"
लाबा त्सेरिंग ने कहा कि अब देश में बहुत से लोगों ने थांगका चित्र का संग्रहण शुरू किया है । और थांगका चित्र भी कलात्मक वस्तुओं के रूप में बाजार में प्रवेश हो गया है । इसी स्थिति में थांगका की परंपरा का पालन करने की बड़ी आवश्यकता है ।उन्हों ने कहा,"हम हमेशा परंपरा को महत्व देते रहे हैं । क्योंकि परंपरागत आधार पर आगे बढ़ने और कलात्मक प्रगति प्राप्त करने की संभावना है । आज हम सबसे अच्छे काल में गुजर रहे हैं । थांगका चित्र कलाकारों की संख्या निरंतर बढ़ रही है और बाजारों का पैमाना भी विस्तृत होता रहा है । इसी काल में कुछ व्यक्तियों के उभरते रहने के साथ-साथ कुछ और लोग गिर पड़ेंगे ।"
पता चला है कि थांगका चित्र तिब्बत का विशेष कलात्मक रचनाएं हैं । थांगका चित्र बनाने में सिलसिलेवार शिल्प कार्यक्रम का पालन करना है । प्रोफेसर गेल्सांग ईशी ने परिचय देते हुए कहा, "थांगका चित्र कला सीखते समय बुनियादी निर्देशों का पालन करना चाहिये । थांगका चित्रकारों को तिब्बती संस्कृति की जानकारियां प्राप्त है । और थांगका बनाते समय धार्मिक साधना करना ही चाहिये ।"
ईशी ने कहा कि आज के थांगका चित्रकारों को इस बात पर सोच लेना चाहिये कि आधुनिक समाज में पारंपरिक विरासत का कैसा अधिग्रहण किया जाएगा, और ऐतिहासिक परंपरा के आधार पर सृजनात्मक रचनाएँ कैसा बनाया जाएगा । उन्हों ने कहा,"थांगका चित्र बनाते समय नवाचार देने की बड़ी जरूरत है जबकि इसमें कलात्मक नियमों का पालन करना पड़ेगा । तिब्बती थांगका चित्र कला को भी धर्म से धर्मनिरपेक्ष तक विकसित किया जाएगा । यह एक विश्व रुझान है । यह थांगका चित्र कला का सही विकास रास्ता साबित होगा ।"
थांगका के बारे में कुछ विस्तृत जानकारियां
तिब्बती संस्कृति चीनी संस्कृति का अत्यंत महत्वपूर्ण भाग माना जाता है । तिब्बती संस्कृति में थांगका का अहम स्थान भी प्राप्त है । क्योंकि थांगका एक विशेष चित्र है, थांगका चित्र में तिब्बती समाज के सभी पहलुओं का वर्णन किया जाता है । इसलिए इसे तिब्बती जाति का विश्वकोश और देश का मूल्यवान गैर-भौतिक सांस्कृतिक विरासत भी कहलाता है । लंबी ऐतिहासिक प्रक्रिया में देश की दूसरी जातियों के साथ तिब्बती कलाकारों ने थांगका कला को लेकर भारी योगदान पेश किया है ।
थांगका तिब्बती जाति का एक विशेष चित्रकला है जिसमें तिब्बती समाज के सभी पहलुओं का वर्णन किया जाता है । थांगका अधिकाधिक तौर पर लोकप्रिय होने के साथ-साथ बहुत से पर्यटक अपनी ल्हासा यात्रा के दौरान कुछ थांगका खरीदकर वापस लौटने लगे हैं । पर्यटकों की जरूरतों को पूरा करने के लिए कुछ कलाकारों ने थांगका का बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरू किया है । लेकिन गैर-भौतिक सांस्कृतिक विरासत के वारिस की दृष्टि से ऐसा करने से थांगका चित्र की गुणवत्ता को कम किया जाएगा और इस कला के भावी विकास पर प्रभाव पड़ेगा ।
थांगका चित्र कपड़े या सील्क पर बनायी जाती है । थांगका का रंग आम तौर पर खनिज पदार्थों से बनाया जाता है और इसी कारण से थांगका चित्र का रंग हजारों वर्षों के लिए सुरक्षित हो सकता है । थांगका के रंग में सोना, चांदी, मोती, सुलेमानी, कोरल, मरकत और मैलाकाइट आदि खनिज पदार्थों के अलावा केसर, रूबर्ब और इंडिगो आदि पौधा पिगमेंट भी शामिल हैं । थांगका के रंग बनाते समय बौद्ध ग्रंथों में निर्धारित नियमों का कड़ा पालन करना भी चाहिये । एक परंपरागत थांगका चित्र बनाने के लिए कई साल बिताना ही पड़ेगा ।
थांगका चित्र बनाते समय कई चरणों को पूरा करना पड़ता है । कभी कभी एक फूल का रंग बनाने के लिए एक दो दिन का समय लगाना पड़ता है । लेकिन इससे और मुश्किल काम भी है । थांगका चित्र बनाने में जो सबसे मुश्किल काम है वह सकल मोल्डिंग । क्योंकि थांगका चित्र का रूप बनाने के बाद प्रति भाग की सजावट भी शुरू होती है । इस के बाद आंखों और चेहरे की रेखाएं रेखांकित करना है । यह भी अत्यंत मुश्किल है । क्योंकि हम जानते हैं कि आंखें दिल का द्वार कहा जाता है । इसके अतिरिक्त नाक, मुंह, हाथ आदि का रेखांकन करना भी महत्वपूर्ण है ।
इधर के वर्षों में केंद्र और स्वायत्त प्रदेश की सरकारों ने थांगका सहित पारंपरिक संस्कृति के संरक्षण में पूरी शक्ति झोंक दी है और उल्लेखनीय प्रगतियां हासिल हो चुकी हैं ।
( हूमिन )