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    04 बाघ पर विजय
    2016-11-28 16:06:56 cri

    अवश्यक चैतावनी से बेखबर 曲突徙薪

    "अवश्यक चैतावनी से बेखबर"शीर्षक नीति कथा भी प्राचीन काल में काफ़ी मशहूर थी। इसे चीनी भाषा में"छ्यु थू शी शिन"(qū tū xǐ xīn) कहा जाता है। इस में"छ्यु"का मतलब है"मोड़ना", जबकि"थू"का अर्थ है"चिमनी","शी"का अर्थ"स्थानांतरण करना"और"शिन"का अर्थ"घास लकड़ी का ढेर"है।

    किसी घर में एक चिमनी बनायी गई, लेकिन वह चिमनी इतनी सीधी बनायी गई थी कि जब कभी भट्टी में आग जल रहा था, तो उसकी चिनकारियां चिमनी से बाहर निकलती थी। और तो उस चिमनी के पास घास लकड़ी का एक बड़ा ढेर भी था। घर में आए एक मेहमान ने घर के मालिक को चैतावनी देते हुए कहा:"यह बहुत खतरानाक है, इस प्रकार की चिमनी से आग लग सकती है। आप को चिमनी का रूपांतरण करना चाहिए, उसमें एक मोड़ बनाना चाहिए, साथ ही चिमनी के पास के घास-लकड़ी के ढेर को भी वहां से हटाया जाना चाहिए। घास लकड़ी को दूर रखे जाने पर आगजनी से बच सकेगा।"

    लेकिन मालिक ने महज"हां, हुं"करके बात को टाला, मेहमान का एक शब्द भी उसके कान में नहीं प्रवेश कर गया।

    कुछ दिन के बाद इस घर में आग लगी, कारण यह था कि सीधी चिमनी से आग की चिनगारी निकली और वह पास लगे घास पर गिरी और आग जल्दी ही पकड़ कर फैल गई। राहत की बात यह थी कि उस के पड़ोसी समय पर आ पहुंचे और सभी लोगों ने मिल कर आग को बुझाने का घोर प्रयत्न किया, आग बुझ गई और घर को भी ज्यादा गंभीर नुकसान नहीं पहुंचा।

    दूसरे दिन, घर के मालिक ने आग बुझाने में मदद देने आए पड़ोसी लोगों को शुक्रिया अदा करने के लिए एक शानदार दावत दी। उसने पड़ोसी के उन लोगों को सम्मान देने के ख्याल से उन्हें आदरनीय मेहमान की सीटों पर बिठाया, जिस किसी ने आग बुझाने में ज्यादा काम किया था, उसे सब से सम्मानजनक जगह पर बिठाया, अन्य लोगों को भी उनके योगदान के मुताबिक क्रमशः बिठाए गए। लेकिन जिस मेहमान ने सबसे पहले उसे चिमनी की समस्या की चैतावनी दी थी, घर के मालिक ने उसे दावत में आमंत्रित करने की सोच भी नहीं की।

    "अवश्यक चैतावनी से बेखबर"यानी"छ्यु थू शी शिन"(qū tū xǐ xīn) नाम की नीति कथा से हमें यह सीख देती है कि असल में जिस मेहमान ने घर के मालिक को आग लगने से बचने की चैतावनी दी थी, उसका योगदान सब से बड़ा था, अगर घर के मालिक ने उसका सुझाव माना, तो आग लगने का सवाल ही नहीं उठता। लेकिन खेद की बात है कि घर का मालिक इस सच्चाई को नहीं समझता था। हां, जिन लोगों ने आग बुझाने में मदद दी थी, उन्हें भी धन्यावाद देने की आवश्यकता थी। सब से दुख की बात यह थी कि घर का मालिक आगजनी से पहले मेहमान की चैतावनी नहीं मानी, तो न मानी, किन्तु घटना के बाद भी उसे यह समझ नहीं आयी कि मेहमान की चैतावनी का कितना मूल्य होता है।


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