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    ई जाति के मशाल उत्सव
    2017-01-03 11:08:34 cri

    चीनी पंचांग के अनुसार साल के हर छठे माह में ई जाति के लोग अपना सब से बड़ा त्यौहार --मशाल उत्सव मनाते हैं , इस वर्ष का मशाल उत्सव 27 जुलाई होगा। मशाल उत्सव के दिन ई जाति के सभी लोग सुन्दर जातीय पोशाक पहने जलती हुई मशाल उठाते हुए खूब उमंग के साथ नाचते गाते रहे और पूरे साल की खुशियां मनाते रहे ।

    दक्षिण पश्चिम चीन के सछ्वान प्रांत का ल्यांग शान ई जातीय स्वायत्त प्रिफेक्चर देश का एक ऐसा क्षेत्र हैं , जहां सब से अधिक संख्या में ई जाति के लोग रहते हैं। वर्तमान में ल्यांग शान प्रिफेक्चर में कोई 15 लाख ई जाति के लोग रहते हैं , बेशक कि वहां मशाल उत्सव भी दूसरे स्थानों से अधिक धुमधाम तथा बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है । ल्यांग शान में इसी कारण भी सब से ज्यादा धुमधाम से मशाल उत्सव मनाया जाता है , चूंकि मशाल उत्सव की उत्पत्ति भी यहां हुई है ।

    ई जाति का मशाल उत्सव चीनी पंचांग के अनुसार साल के हर छठे महीने में होता है , लेकिन इस त्यौहार के आगमन के स्वागत में ई जाति के लोग छठे महीने से पहले ही तैयारी शुरू कर देते हैं । वे बकरी और सुअर को और ध्यान से पालने लगे , ताकि त्यौहार के दिन उसे वध कर अच्छे गोश्त का भोजन बनाया जा सकता है , घर घर में अच्छे से अच्छे आटा से चान पा नामक पलावा तैयार किया जाता है ।

    त्यौहार के दौरान ई जाति की युवतियां बड़ी खुश और उत्साहित दिखाई पड़ती है , त्यौहार से बहुत पहले ही वे त्यौहार में पहनने वाले वेशभूषण बनाना शुरू कर देती है , वे सब से अच्छा कपड़ा चुनती है , मन लगा कर वस्त्रों की कतराई सीलाई करती हैं और अपनी मनपसंद रंग ढंग का पहनावा तैयार करती हैं , वे अपने नए कपड़ों पर रंगबिरंगे आभूषण भी लगाती हैं । दरअसल ई जाति की युवतियां मशाल उत्सव के समारोह में जहां अपनी खूबसूरती और शिल्पकौशल प्रदर्शित करती हैं ,वहां अपने प्रेयसी युवकों को अपना सौंदर्य भी दिखाना चाहती हैं ।

    आम तौर पर ई जाति के युवक युवती को चीजें खरीद कर भेंट करते हैं , लेकिन मशाल उत्सव के दौरान ई जाति की युवती असामान्य साहस का परिचय कर अपने मनपसंद युवक को मदिरा पेश करती है । वे इस साहसिक पेशकश से लोगों को यह एलान करती है कि यह युवक मुझे पसंद आया है , अगर कोई दूसरी युवती यह नहीं मानती , तो सामने आकर प्रतिस्पर्धा करे । यदि युवक को भी वही युवती पसंद है , तो वह उसे एकांत स्थान ले कर बताता है कि वह केवल उस का मदिरा पीता है।

    मशाल उत्सव के दौरान ई जाति की युवतियां सब से सुन्दर दिखतीं है , जातीय विशेष रंगढंग के पोशाक में सुसज्जित हुई युवतियां हाथों में पीले रंग की छाता लिए किसी खुले विशाल मैदान में इक्टठे हो जाती हैं और वहां कतारों में बंटे मन खोल कर नाचती गाती है । ई जाति के लोगों की नजर में ऐसी युवती सब से खूबसूरत होती है , जिस का शरीर लम्बा छरहरा हो , त्वच सावंला स्वस्थ , आंखें बड़ी बड़ी , नाक ऊंची तथा बड़ी सुशील और विनयी होती हो । मशाल उत्सव में गांव गांव में सुन्दरी चुनी जाती है , सुन्दरी चुनाव का काम गांव के वृद्ध लोग करते हैं ,प्रायः गर्मागर्म बहस के बाद गांव की सुन्दरी चुनी गई , तो वह तुरंत स्थानीय लोगों के पसंद और आदर की पात्र बन गई । बेशक , वह सुन्दरी युवकों की चाहत लड़की भी बन जाती है ।

    मशाल उत्सव के दौरान कुश्ती का मैच भी एक उत्साहजनक मामला है । कुश्ती में युवा आम तौर पर नीले व सफेद दोनों रंगों का दुशाल पहने , कमर में रंगीन कमरबंद बंधे और सिर पर लाल झालर वाली बांस की टोपी पहन कर खेल मैदान में इक्टठे होते हैं । वे जोड़े जोड़े में लड़ते हैं, इस प्रकार के मैच में बहादुरी , ताकत के साथ बुद्घिमता की भी जरूरत है । कुश्ती में चैम्पियन चुने जाते हैं। सुन्दरी चुनाव में सौंदर्य का प्रदर्शन होता है , तो कुश्ती में शक्ति की अभिव्यक्ति होती है ।

    प्राचीन कथा के अनुसार स्वर्ग लोक के देवता ने जग लोक में लगान की वसूली के लिए अपना आदमी भेजा , लेकिन वह ई जाति के वीर युद्धा ये-ती के साथ हुए कुश्ती में मारा गया , देवता बहुत क्रोधित हुआ , उस ने देवी कीटों को ई जाति की खड़ी फसलों को बर्बाद करने भेजा , बुद्धमान ये ती के आह्वान में आ कर ई जाति के सभी लोगों ने मशाल जला कर देवी कीटों को मारना शुरू किया , कुछ दिन रात के घोर संघर्ष के बाद सभी कीट मकोड़े नष्ट किए गए और फसलों की रक्षा की गई । तभी से ई जाति में मशाल उत्सव मनाने की प्रथा प्रचलित होने लगी । ई जाति के लोग अपने इस त्यौहार को बड़ा महत्व देते हैं, जब त्यौहार शुरू हुआ , तो चाहे वे घर से कितने दूर रहे , जरूर घर वापस लौट आएंगे ।

    पेइचिंग में कार्यरतई जाति के विद्वान श्री फुछीतालिन के अनुसार ई जाति अग्नि की पूजा करते हैं और अग्नि की शक्ति में गाढ़ा आस्था रखते हैं । इस तरह सदियों के उत्सव विकास के परिणामस्वरूप अब ई जाति के मशाल उत्सव के विषय बहुत प्रचूर हो गए है । वे कहते है कि अग्नि एक ऐसी रोशनी होती है , जिस का स्वागत ई जाति सदियों से करती आई है , अग्नि उज्जला और भविष्य का प्रतीक है । ई जाति के मशाल उत्सव में परम्परागत पूर्वज पूजा के अलावा शानदार फसलों की कामना और सुरक्षा की प्रार्थना भी शामिल है ,त्यौहार के दौरान बैल से लड़ने की गतिविधि , घुड़सवारी की दौड़ , गीतों की प्रतियोगिता , तीरंदाजी , कुश्ती तथा मुर्गों की लड़ाई आदि भी होती है । कुछ स्थानों में अब व्यापारिक मेला भी लगने लगा है , त्यौहार कई दिन तक चलता है और बहुत गर्मागर्म होता है ।

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