हाल में तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की राजधानी ल्हासा में आयोजित तीसरे अंतर्राष्ट्रीय एक्सपो में प्रदर्शित तिब्बती अमूर्त सांस्कृतिक विरासत जैसे थांगका, परंपरागत संगीत उपकरण और हस्तलिपि-विद्या आदि पर पर्यटकों का ध्यान आकर्षित किया गया है । उन में थांगका सबसे लोकप्रिय माना जा रहा है ।
थांगका तिब्बती जाति का एक विशेष चित्रकला है जिसमें तिब्बती समाज के सभी पहलुओं का वर्णन किया जाता है । इसलिए इसे तिब्बती जाति को विश्वकोश और देश का मूल्यवान गैर-भौतिक सांस्कृतिक विरासत भी कहा जाता है । थांगका अधिकाधिक तौर पर लोकप्रिय होने के साथ साथ बहुत से पर्यटक अपनी ल्हासा यात्रा के दौरान कुछ थांगका खरीदकर वापस लौटने लगे हैं । पर्यटकों की जरूरतों को पूरा करने के लिए कुछ कलाकारों ने थांगका का बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरू किया है । लेकिन गैर-भौतिक सांस्कृतिक विरासत के वारिस की आंखों में ऐसा उत्पादन करने से थांगका चित्र की गुणवत्ता को कम किया जाएगा और इस कला के भावी विकास पर प्रभाव पड़ेगा ।
ल्हासा शहर का दौरा करते हुए पर्यटकों ने कहा,"हमें थांगका बहुत पसंद होता है । क्योंकि थांगका चित्र का लम्बा इतिहास प्राप्त है और इसमें विशेष तिब्बती संस्कृति का प्रदर्शन होता है । इसलिए हमें रुचि हुई है ।"
थांगका चित्र कपड़े या सील्क पर बनायी गयी चित्र है । थांगका का रंग आम तौर पर खनिज पदार्थों से बनाया जाता है और इसी कारण से थांगका चित्र का रंग हजारों वर्षों के लिए सुरक्षित हो सकता है ।
ल्हासा में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय एक्सपो में हजारों तिब्बती हस्तशिल्प वस्तुएं प्रदर्शित हुईं , पर उन में थांगका हमेशा आकर्षण का केंद्र रहा । थांगका कलाकारों का कहना है कि थांगका चित्र बनाते समय कई चरणों को पूरा करना पड़ता है । कभी कभी एक फूल का रंग बनाने के लिए एक दो दिन का समय लगाना पड़ता है । लेकिन इससे और भी मुश्किल काम किया जाना पड़ता है । तिब्बत में गैर-भौतिक सांस्कृतिक विरासत के वारिस पेम्बा वांगतु ने कहा,"एक थांगका चित्र बनाने में जो सबसे मुश्किल काम है वह सकल मोल्डिंग । क्योंकि एक थांगका चित्र का रूप बनाने के बाद हरेक भाग की सजावट शुरू हो सकती है । इस के बाद आंखें और चेहरे की रेखाएं रेखांकित करना है । यह भी अत्यंत मुश्किल है । क्योंकि हम जानते हैं कि आंखें दिल का द्वार कहा जाता है । इसके अतिरिक्त नाक, मुंह, हाथ आदि का रेखांकन करना भी महत्वपूर्ण है ।"
पेम्बा वांगतु तिब्बत विश्वविद्यालय के कला स्कूल के एसोसिएट प्रोफेसर हैं । उन्हों ने नौ साल की उम्र से ही थांगका सीखना शुरू किया था । उन्हों ने वर्ष 2005 में थांगका को गैर-भौतिक सांस्कृतिक विरासत में शामिल करवाने के काम में भी शामिल किया । गैर-भौतिक सांस्कृतिक विरासत में शामिल होने के बाद थांगका चित्र भी दिन ब दिन मशहूर बनता जा रहा है । बहुत से युवकों ने थांगका चित्र बनाने के कार्यक्रम में भाग लिया है ।
पेम्बा वांगतु ने कहा,"सरकार और विभिन्न पक्षों के समर्थन और प्रयासों से युवा कलाकारों का प्रदर्शन भी अद्भुत होता जा रहा है । युवाओं में इस कला का भविष्य होता है । उनकी उपलब्धियों से मुझे भी बहुत खुशी हुई है । क्योंकि उन का कला देखकर मुझे प्रेरित किया जा रहा है ।"
आजकल देश विदेश के पर्यटकों में थांगका चित्र बहुत लोकप्रिय होता है । इसतरह थांगका का दाम भी बहुत उन्नत होने लगा है । कुछ थांगका का दाम पहले से दस और यहां तक सौ गुना अधिक रहा है । लेकिन पेम्बा वांगतु का मानना है कि यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है । उन्हों ने कहा,"कलाकार जब कला सीखते रहे थे तब उन्हों ने बहुत भुगतान किया था । इसलिए कलाकारों को भी लागत का हिसाब करना है । इसलिए कलाकारों के श्रम की लागत अपने चित्रों के दाम पर प्रदर्शित की जानी चाहिये ।"
बाजार में बड़ी जरूरतों को पूरा करने के लिए कुछ व्यवसायियों ने थांगका चित्रों का बैच उत्पादन करना चाहा । पेम्बा वांगतु ने इस बात की समीक्षा करते हुए कहा कि ऐसा करने से थांगका की गुणवत्ता घटित हो जाएगी और इससे थांगका चित्र कला के भविष्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ सकेगा ।
उन्हों ने कहा,"थांगका चित्र मोटर गाड़ी नहीं , पर कलाकृति है । इस का बैच उत्पादन करना सही नहीं है । अगर हम कारखाने में थांगका का उत्पादन करें तो इस की कलात्मक गुणवत्ता को दूर किया जाएगा । इसलिए मेरा ख्याल है कि हमें कला सृजन के तरीके से थांगका चित्र बनाना चाहिये । कलाकारों की रचनाएं अगर बढ़िया है , तो इस का दाम उन्नत होना भी स्वभाव है । अगर थांगका चित्र का बैच उत्पादन किया जाए तो इस कला के विकास पर कुप्रभाव पड़ेगा ।"
( हूमिन )