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    तिब्बती बौद्ध धर्म की जीवित बुद्धा के पुनर्जन्म की ऐतिहासिक व्यवस्था बनी रहेगी
    2016-08-09 14:13:44 cri

    चीनी बौद्ध धर्म अनुसंधान केंद्र के उच्च पदाधिकारी चाओ वेई ने 2 अगस्त को आयोजित छठी पेइचिंग (इंटरनेशनल) तिब्बती अध्ययन की एक संगोष्ठी में कहा कि तिब्बती बौद्ध धर्म में जीवित बुद्धा के पुनर्जन्म की ऐतिहासिक व्यवस्था कभी नहीं बदली है । यह तिब्बती समाज और तिब्बती बौद्ध धर्म का ऐतिहासिक विकल्प ही है।

    चाओ वेई ने कहा कि तिब्बत चीन का एक शासनिक क्षेत्र है । प्राचीन काल में पिछले राजवंशों की केंद्र सरकारें भी तिब्बती बौद्ध धर्म में जीवित बुद्धा के पुनर्जन्म की व्यवस्था को कायम रखा । पंचन लामा और दलाई लामा सहित सभी बड़े लामाओं की पुनर्जन्म व्यवस्था को ऐतिहासिक नियम के अनुसार लागू किया जाना चाहिए । पुनर्जन्म की व्यवस्था स्थापित होने का 700 साल पुराना इतिहास है । इस ऐतिहासिक व्यवस्था को बनाये रखा जाएगा ।

    छठी पेइचिंग (अन्तरराष्ट्रीय) तिब्बत शास्त्र अनुसंधान संगोष्ठी 4 अगस्त को पेइचिंग स्थित चीनी तिब्बत शास्त्र अनुसंधान केन्द्र में समाप्त हुई। 300 से अधिक चीनी और विदेशी विद्वानों ने संगोष्ठी में भाग लिया। संगोष्ठी में अकादमिक विचार-विमर्श किये जाने के अलावा विभिन्न सांस्कृतिक गतिविधियां भी आयोजित हुईं ।

    संगोष्ठी के दौरान चीनी तिब्बत अनुसंधान केंद्र के तहत तिब्बती संस्कृति संग्रहालय में "तिब्बती बौद्ध धर्म में जीवित बुद्धा के पुनर्जन्म की प्रदर्शनी" भी आयोजित हुई । इस प्रदर्शनी में 300 से अधिक मूल्यवान ऐतिहासिक फोटो, अभिलेख सामग्रियां और 200 से अधिक संग्रह प्रदर्शित की गईं। प्रदर्शनी में जीवित बुद्धा के राजनीतिक, ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि दर्शायी गयी । साथ ही चीन के युवान, मिंग और छिंग राजवंशों तथा आधुनिक काल में जीवित बुद्धा पुनर्जन्म की व्यवस्था के ऐतिहासिक परिवर्तनों के बारे में परिचय भी दिया गया।

    तिब्बती बौद्ध धर्म चीनी बौद्ध धर्म की एक महत्वपूर्ण शाखा है । वर्तमान में चीन में कुल 3000 से अधिक तिब्बती बौद्ध धर्म मंदिर हैं जिनमें 1.3 लाख बौद्ध भिक्षु और मठवासिनी, और 1700 जीवित बुद्धा रहते हैं । तिब्बती बौद्ध धर्म में जीवित बुद्धा की पुनर्जन्म व्यवस्था विश्वव्यापी दायरे में सुप्रसिद्ध है । प्राचीन काल से अब तक चीनी केंद्र सरकारें हमेशा से जीवित बुद्धा के पुनर्जन्म को खास महत्व देती रही हैं । दलाई और पंचन लामाओं के पुनर्जन्म को केंद्र सरकार द्वारा पुष्ट किया जाना होता है ।

    जीवित बुद्धा की पुनर्जन्म व्यवस्था का लम्बा इतिहास है । सातवीं शताब्दी में बौद्ध धर्म तिब्बत में दाखिल हुआ । दसवीं शताब्दी तक बौद्ध धर्म का आकार धीरे-धीरे संपन्न हुआ । सन् 1409 में चोंखापा (Tsongkhapa) ने गेलुग संप्रदाय स्थापित किया और तिब्बत के बौद्ध धर्म में सबसे बड़ा संप्रदाय बन गया । गेलुग संप्रदाय ने अपने धार्मिक स्थान को मजबूत करने के लिए जीवित बुद्धा की पुनर्जन्म व्यवस्था को कायम रखा और संप्रदाय की दो शाखाएं दलाई लामा और पंचन लामा ने पुनर्जन्म के माध्यम से सांप्रदायिक नेता तय करना शुरू किया ।

    चीन के युवान राजवंश से तिब्बती बौद्ध धर्म के महा लामाओं को केंद्र सरकार की तरफ से उपाधि और सील-मुहर सौंपा जाता रहा । 17वीं शताब्दी में छिंग राजवंश ने नियम बनाकर तिब्बती बौद्ध धर्म में जीवित बुद्धा की पुनर्जन्म व्यवस्था को सुव्यवस्थित किया । लामाओं के पुनर्जन्म अवतार का नाम छिंग राजवंश के महाराजा द्वारा समर्पित किये गये एक सोने की बोतल में लॉटरी निकालने के जरिये तय किया जाता था और अंत में निर्वाचित अवतार का नाम छिंग राजवंश के महाराजा द्वारा पुष्ट किया जाता था । इतिहास में दसवें से बारहवें दलाई लामा और आठवें, नौवें और ग्यारहवें पंचन लामा के पुनर्जन्म अवतार का नाम इसी नियम के जरिये तय किया गया ।

    सन 1936 में चीन की गणराज्य सरकार ने कानून पारित कर छिंग राजवंश का प्रबंधन उपाय कायम करने का फैसला किया । चीन लोक गणराज्य की स्थापना के बाद भी लामाओं के पुनर्जन्म व्यवस्था की पुष्टि की । सन 1962 में केंद्र सरकार ने छठें च्यामूयांग जीवित बुद्धा की पुष्टि की और सन 1992 में केंद्र सरकार ने 17वें करमापा लामा की पुष्टि की और सन 1995 में केंद्र सरकार ने सोने की बोतल में लॉटरी निकालने के जरिये ग्यारहवें पंचन लामा की पुष्टि की, यह नये चीन की स्थापना के बाद सोने की बोतल में लॉटरी निकालने के जरिये तय किया गया प्रथम महा लामा है ।

    वर्ष 2007 के जुलाई महीने में चीनी राज्य परिषद ने तिब्बती बौद्ध धर्म के पुनर्जन्म का प्रबंध घोषित किया जिसके अनुसार पुनर्जन्म व्यवस्था का कार्यांवयन करने में देश के एकीकरण, जातीय एकता और समाजिक सामंजस्य की गारंटी की जानी चाहिये । जीवित बुद्धा की पुनर्जन्म व्यवस्था लागू करने में धार्मिक अनुष्ठानों और ऐतिहासिक नियमों का अनुसरण करना चाहिये और सामंती विशेषाधिकारों की बहाली नहीं की जानी चाहिये ।

    ऐतिहासिक रीति-रिवाज, धार्मिक अनुष्ठान, कानूनों और नियमों के मुताबिक तिब्बती बौद्ध धर्म की पुनर्जन्म परंपरा से बौद्ध धर्म का सामान्य व्यवस्था संपन्न हुई है जिसका धार्मिक सूत्रों और विशाल अनुयायियों की तरफ से हार्दिक समर्थन भी प्राप्त हुआ है ।

    ( हूमिन )

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