विजय ठाकुर (Vijay Thakur) एक 75 वर्षीय टैक्सी ड्राइवर हैं। उन्होंने अपनी कहानी सुनायी। एक दिन तड़के तीन बजे मेरी गर्भवती पत्नी को अचानक दर्द महसूस हुआ, लेकिन कोई भी टैक्सी हमें अस्पताल ले जाने को तैयार नहीं हुई। उस समय मैं एक इंजीनियर था। हर महीने 65000 रूपये(करीब 1000 अमेरिकी डॉलर) कमा सकता था। लेकिन टैक्सी न ले पाने से मुझे लगा कि हर समस्या का समाधान पैसे से नहीं किया जा सकता है। उस दिन मेरी पत्नी को गर्भपात हो गया। यह घटना मेरे जीवन में एक मोड़ है। इसके बाद मैं अपनी नौकरी छोड़कर एक टैक्सी ड्राइवर बना और आधी रात को अस्पताल जाने वाले लोगों को मुफ्त आपात राहत सेवा देता हूं। टैक्सी चलाने से हर महीने मैं केवल 10 हजार रूपये कमा सकता हूं, फिर भी मुझे इससे बहुत सुख मिलता है।इस साल मेरी उम्र 75 साल हो चुकी है। मैंने कई सौ लोगों को अस्पताल पहुंचाया है।
उसकी कहानी के आधार पर डिजाइनर ने टैक्सी में सुपर हीरो और विजय के पात्र शामिल किये। विजय की एक बेटी है, जिसका नाम खुशी है। इसलिए डिजाइनर ने टैक्सी को खुशी की एम्ब्यूलंस नाम दिया।
"टैक्सी फैब्रिक"आशा करता है कि भारत के डिजाइनर अपनी मेहनत से विविध कहानियों को लोगों से जोड़ेंगे। करीब छह महीनों में मुम्बई में कम से कम 1.2 हजार लोग इन डिजाइनरों का काम देख सकते हैं।
"टैक्सी फैब्रिक"के साथ सहयोग करने वाले टैक्सी ड्राइवर भी इनका स्वागत करते हैं। विशेष डिजाइन से उनके ग्राहक भी संतुष्ट हैं।कुछ टैक्सी ड्राइवरों ने "टैक्सी फैब्रिक" से उनकी टैक्सियों के लिए कुछ निजी डिजाइन करने का अनुरोध भी किया।
डिजाइनरों के लिए यह भी अच्छी बात है क्योंकि वे टैक्सियों से ग्राहकों को अपने काम को दिखा सकते हैं। यदि ग्राहकों को उनके डिजाइन पसंद आएं, तो वे टैक्सी पर संपर्क नंबर आदि के जरिए डिजाइनरों से संपर्क कर सकते हैं।