मशहूर तिब्बती कलाकार निमा-ज्येरेन दक्षिण पश्चिमी चीन के सछ्वान प्रांत की चैन थांग काउटी के एक किसान परिवार में जन्म हुआ । बचपन से ही निमा-ज्येरेन की चित्रकारी प्रतिभा साबित हुई थी । उसकी 14 साल की उम्र में निमा-ज्येरेन की सछ्वान प्रांतीय चित्रकारी कालेज में सीखने के लिए सिफारिश की गयी । यह निमा-ज्येरेन की प्रथम बाहर यात्रा थी , जिससे उन के लिए चित्रकार बनने का रास्ता प्रशस्त हुआ था ।
कई साल बाद निमा-ज्येरेन ने चित्रकारी कालेज में अपना अध्ययन समाप्त किया और चित्रकारी कला में अपना ध्यान केंद्रित किया । अनेक सालों के प्रयास के बाद निमा-ज्येरेन चीन के चोटी वाले चित्रकारों की पंक्तियों में शामिल हुए । सन 1986 में निमा-ज्येरेन को दसवें पंचन लामा की सेवा करने वाले विशेष चित्रकार नियुक्त किये गये , जिसे किसी तिब्बती चित्रकार का सर्वोच्च सम्मान माना जाता है । पंचन लाना ने निमा-ज्येरेन को यह उम्मीद प्रकट की थी कि वे तिब्बती जाति के चित्रकारी कला का जोरों पर विकास कर सकें । पंचन लामा के अनुदेश से निमा-ज्येरेन अपनी रचनाओं की नयी शैली खोजने में संलग्न लगे।
निमा-ज्येरेन का विचार है कि जातीय संस्कृति का विकास करना उन का अनिवार्य कर्तव्य है । उन्हों ने अपनी सभी रचनाओं में परंपरागत संस्कृति का प्रसारण करने के लिए हर संभव की प्रयत्न की है । निमा-ज्येरेन तिब्बती परंपरागत चित्रकला के वारिस बनने में पूरी कोशिश करेंगे क्योंकि यह तिब्बती जाति और हमारे युग की मांग है ।
उन्हों ने कहा,"जातीय संस्कृति का विकास करने से ही इस का संरक्षण किया जा सकेगा । इसमें सिर्फ कानूनों में यह निर्धारित करना काफी नहीं है । जातीय संस्कृति को भी टाइम्स के साथ साथ आगे विकसित करने की बड़ी आवश्यकता है । और जातीय संस्कृति का विकास करने से पूरे देश की संस्कृति का विकास भी संपन्न हो सकेगा । यह बहुत ही महत्वपूर्ण होता है ।"
निमा-ज्येरेन तिब्बती चित्रकारों का श्रेष्ठ और आधुनिक प्रतिनिधि माना जा रहा है । उन की रचनाओं में केवल धार्मिक चित्रकारी नहीं, बल्कि तिब्बती जाति को पूरे देश की विभिन्न जातियों में से एक होने की दृष्टि से वर्णन किया जा रहा है । निमा-ज्येरेन तिब्बती जनता के रंग बिरंगे जीवन का वर्णन करने के जरिये दुनिया को सच और आधुनिक तिब्बत दिखाना चाहते हैं । निमा-ज्येरेन की चित्रकारी रचनाओं में तिब्बती थांगा परंपरा, चीनी परंपरागत कला और आधुनिक पश्चिमी कला के सब तत्व शामिल हैं । इस तरह उन्हें नया थांगा और नया तिब्बती चित्र कला बताया गया है । निमा-ज्येरेन अपनी कौशल को और अधिक छात्रों में प्रसारित करना चाहते हैं । उन्हों ने कहा,"परंपरागत संस्कृति का विकास करने के लिए अब बहुत से अध्यापकों ने छात्रों का प्रशिक्षण शुरू किया है । साथ ही सरकार ने परंपरागत चित्र कला का उत्तराधिकार करवाने में कुछ विशेष संस्थाओं को सौंप दिया है । इस में बहुत उल्लेखनीय प्रगतियां हासिल हो गयी हैं । दूसरी तरफ सरकार ने भी कुछ विशेष प्रतिभाओं का प्रशिक्षण किया है जो विशेष तौर पर जातीय परंपरागत चित्र कला का अध्ययन कर रहे हैं । आज तिब्बत, सछ्वान और छींगहाई जैसे प्रदेशों में बहुत से ऐसे प्रतिभा भी हैं , उन की रचनाओं को देश के सर्वोच्च कला केंद्र में दाखिल कराया गया है । उन में कुछ भी विश्व के चोटी वाले आर्ट गैलरी में प्रदर्शित भी किये जा रहे हैं । इससे यह भी साबित है कि संस्कृति का विकास करने से ही संस्कृति का संरक्षण किया जा सकता है, संस्कृति के विकास के इतिहास में ऐसा तर्क ही चलता है ।"
तिब्बती परंपरागत चित्रकला का विकास करने में केवल पुरानी कौशल सीखना काफी नहीं है , इसमें नवीनीकरण पर भी जोर लगाना ही पड़ेगा । निमा-ज्येरेन परंपरागत चित्रकला के नवीनीकरण पर विशेष ध्यान लगाते हैं । उस ने बचपन से ही तिब्बती चित्रकला का अध्ययन शुरू किया था , परंपरागत तिब्बती चित्र कला के प्रति उन की गहरी भावना है, तिब्बती चित्रकला के विकास के लिए वह आजीवन प्रयास करने को तैयार हैं ।
उन्हों ने कहा,"मैं हमेशा अपनी नयी रचनाओं को विश्व के मंच में दिखाना चाहता हूं । वर्ष 2015 में मैं ने अपनी रचनाओं के साथ इटली में आयोजित एक प्रदर्शनी में भाग लिया । इससे पहले मैं ने विश्व के अनेक देशों में आयोजित चित्रकला प्रदर्शनियों में भी भाग लिया था । मैं ने अपनी रचनाओं के माध्यम से विश्व को यह बता दिया है कि तिब्बती संस्कृति का सिर्फ अच्छी तरह संरक्षण नहीं , इसे विकास के नये स्तर पर भी पहुंचाया जा चुका है । मेरी रचनाओं को विश्व प्रदर्शनी में उच्च मूल्यांकन भी प्राप्त है । विदेशी समीक्षकों का मानना है कि इधर के वर्षों में तिब्बत की प्राचीन चित्रकला का पर्याप्त विकास हो पाया है जो मील का पत्थर वाली उपलब्धि है । यह भी हमारे देश के जातीय संस्कृति के विकास के प्रति की गयी प्रशंसा है । मुझे इससे गौरव महसूस है ।"
निमा-ज्येरेन की रचनाएं अमेरिका, ब्रिटेन , फ्रांस , भारत और जापान जैसे दसेक देशों में प्रदर्शित की गयी थीं । उन की विशेषता पर दूसरे देशों में दर्शकों और विद्वानों को आकर्षित किया गया है । निमा-ज्येरेन की चित्रकला की शैलियों की भुरि भुरि प्रशंसा भी की गयी है ।
निमा-ज्येरेन ने कहा कि किसी जाति की गुणवत्ता इस जाति की कला से दर्शायी जा सकती है । इसलिए हमें आवश्य ही अपनी जातीय विशेषता पर डटा रहना चाहिये । जातीय संस्कृति का संरक्षण भी कड़ाई से करना पड़ेगा । यह खुशीजनक है कि केंद्रीय सरकार के समर्थन से तिब्बती जातीय संस्कृति का अच्छी तरह संरक्षण हो पाया है । इस में बहुत से उदाहरण हैं ।
उन्हों ने कहा,"तिब्बत में थांगा चित्रकला का 1300 साल इतिहास है । थांगा का संरक्षण करने और संबंधित चित्रकारों का प्रशिक्षण करवाने में केंद्रीय सरकार ने बड़ी मात्रा की पूंजी लगायी है । अब तिब्बत में ऐसे बहुत कुछ लोग हैं जो अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के वारिस के रूप में काम करते हैं । तिब्बत के अनेक तीर्थस्थलों में उन के थांगा बेचाते दिख रहे हैं । इस के अलावा तिब्बत के अनेक नगरों में गेसार प्लाज़ा भी निर्मित हैं , जहां तिब्बती जाति के महावीर राजा गेसार की मूर्ती खड़ती हैं । एक और उदाहरण है कि छींगहाई प्रांत के वूथून गांव में तिब्बती जातीय लोक-कला का अड्डा स्थापित हुआ है । इससे तिब्बती जातीय संस्कृति के प्रति केंद्र सरकार का महत्व साबित हो गया है ।"
निमा-ज्येरेन सिर्फ एक मशहूर चित्र कलाकार नहीं , वह बीस सालों के लिए चीनी जन राजनीतिक सलाहकार सम्मेलन में प्रतिनिधि भी बने रहे हैं । राजनीतिक सलाहकार सम्मेलन में उन्हों ने अनेक बार जातीय संस्कृति के संरक्षण के बारे में अपने सुझाव पेश किये हैं ।
उन्हों ने कहा,"मैं ने बीस सालों के लिए जन राजनीतिक सलाहकार सम्मेलन में भाग लिया है । ऐसे सलाहकार सम्मेलनों में भाग लेने से मुझे भी बहुत सी जानकारियां प्राप्त हुई हैं । सम्मेलन में मुझे देश के सबसे श्रेष्ठ कलाकारों के साथ साथ विचार विनिमय करने का मौका मिल पाया । हम सब देश के सांस्कृतिक विकास की दृष्टि से काम करने और हमारे देश को सांस्कृतिक महाशक्ति बनाने के लिए योगदान प्रस्तुत करने का प्रयास करना चाहते हैं ।"
( हूमिन )