डेंग युज्वान को विश्वविद्यालय और घर से आये हुए करीब एक साल का समय हो चुका है, लेकिन उसने कभी भी अपने परिजनों से पैसे नहीं मांगे। एक बार उसे पेइचिंग जाकर भाषण देना था। ल्हासा से पेइचिंग जाने की रेलगाड़ी लानचो से होकर गुज़रती है। लानचो स्टेशन पर रेलगाड़ी सिर्फ 10 मिनट के लिए ही रूकती है। उसके माता-पिता ने स्टेशन जाकर उससे मुलाकात की। उसने उन पलों को याद करते हुए कहा कि उनके रोने से पहले ही वह रेलगाड़ी पर चढ़ गई थी।
एक साल पहले थ्येनजिन से 60 से अधिक छात्र स्वयंसेवक तिब्बत आए, जिनमें 40 से अधिक छांगतु प्रिफैक्चर गए, 10 से अधिक ल्हासा गए। डेंग युज्वान ने खुद से आली प्रिफैक्चर जाने का आवेदन किया और सुचारु रूप से मंजूरी हासिल की। उसने कहा:"आली प्रिफैक्चर आने का एकमात्र कारण था कि मैं यहां आना चाहती थी। स्वयंसेवक प्रशिक्षण मैनुअल पढ़ने के बाद मुझे पता चला कि आली प्रिफैक्चर में जनसंख्या बहुत कम है, सिर्फ 90 हज़ार लोग वहां रहते हैं। मुझे लगा ऐसा स्थल सबसे मुश्किल है। एक कहावत है कि मूल्यवान पहाड़ पर चढ़ने के बाद खाली हाथ वापस नहीं आना चाहिए। मुझे लगा कि मैं जरूर कुछ कर सकती हूं। यहां आने के बाद मुझे पछतावा नहीं हुआ। लेकिन मैं कभी नहीं सोच सकी कि चीन में अभी भी ऐसा गरीब स्थान है। जैसे रंगीन फिल्म देखते देखते एक दम मोनोक्रोम फिल्म बनी, मनोवैज्ञानिक अंतर बहुत बड़ा था। मैंने मनोवैज्ञानिक तैयारी की थी, लेकिन यहां आने के बाद मुझे हैरानी हुई। यहां काम करने का वातावरण कल्पना से कहीं अधिक अच्छा है, कंप्यूटर और डेस्क है। मैंने सोचा था कि यहां रहने का मकान ऐसा होगा कि बाहर भारी बारिश हो रही होगी, तो मकान के अंदर पानी टपक रहा होगा।"