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    ल्हासा में अध्यापिका वांग पियान की कहानी
    2015-07-17 20:19:44 cri

    तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की राजधानी ल्हासा में एक ऐसी युवती रहती है, जो प्रसिद्ध छिंगह्वा विश्वविद्यालय से स्नातक होने के बाद तिब्बत में लोगों की मदद के लिए अध्यापिका बनने जाती है।

    इस 23 वर्षीय लड़की का नाम है वांग पियान। एक साल पहले वह छिंगह्वा विश्वविद्यालय से ग्रेजुएट होने के बाद ल्हासा गई। छिंगह्वा विश्वविद्यालय चीन में पहली श्रेणी वाली यूनिवर्सिटी है, जहां पढ़ने वाले विद्यार्थी आम तौर पर देश भर के विभिन्न स्थलों से आए सबसे श्रेष्ठ छात्र-छात्राएं होते हैं। इस यूनिवर्सिटी से पढ़ाई के बाद अधिकांश छात्रों को अच्छी नौकरी मिल जाती है।

    लेकिन वर्ष 2014 में छिंगह्वा विश्वविद्यालय के चीनी भाषा विभाग से स्नातक होकर वांग पियान तिब्बत की सहायता के लिए ल्हासा स्थित पायी स्कूल में अध्यापन के लिए पहुंची। यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट हुए छात्र आम तौर पर पेइचिंग, शांगहाई और क्वांगचो जैसे बडे़ शहरों में रोज़गार चुनते हैं। लेकिन वांग पियान ने अलग विकल्प चुना। समुद्र सतह से 4 हज़ार मीटर से अधिक ऊंचाई पर स्थित तिब्बत आने की चर्चा करते हुए वांग पियान ने कहा:

    "मेरा एक सपना देश में अविकसित क्षेत्र की सहायता करना था। विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान मैं कभी कभार इस प्रकार के दल में भाग लेती थी। सप्ताहांत में मैं कभी-कभी पेइचिंग के नजदीक स्थित हेपेई प्रांत के ग्रामीण प्राइमरी स्कूल जाती थी। लेकिन यूनिवर्सिटी में मैं कला मंडली की सदस्य थी। इस तरह सप्ताहांत में मेरे पास ज्यादा समय नहीं होता था। ऐसे में टीचिंग के लिए कभी कभार ग्रामीण क्षेत्र जाना मुश्किल होता था। मैं सोचती थी कि एक बार सही मायने में मैं सिर्फ लोगों की मदद के लिए पढ़ाऊंगी। तिब्बत आने की यह मेरी पहली वजह है। दूसरी वजह यह है कि मुझे तिब्बती बौद्ध धर्म के प्रति रूचि है। लगता है कि तिब्बत एक बहुत रहस्यमय स्थल है। यहां के प्राकृतिक दृश्य भी बहुत सुन्दर हैं। मेरा मानना है कि जिन्दगी में तिब्बत जरुर आना चाहिए।"

    शिक्षक प्रमाण पत्र हासिल करने, शैक्षणिक मनोविज्ञान का अध्ययन करने, पेइचिंग के मिडिल स्कूलों और हाई स्कूलों में अनुभव लेने और छिंगह्वा विश्वविद्यालय के अधीन मिडिल स्कूल में अभ्यास करने के बाद वांग पियान अपना सपना साकार करने के लिए तिब्बत आई। लेकिन यहां आने की शुरुआत में उसे बड़ी मुश्किलें पेश आईं। इसमें पठार में कठोर स्थिति और ठंडा मौसम सहना, ऑक्सीजन की कमी, रात भर नींद न आना, परिजनों और मित्रों से दूर होना, अकेलापन, बीमारी से पीड़ित होना...... एक ही साल में वांग पियान को इन तमाम मुश्किलों से दो-चार होना पड़ा। लेकिन उसे पछतावा नहीं होता। इसकी चर्चा करते हुए उन्होंने कहा:

    "मैं भीतरी इलाके में प्रगतिशील शैक्षिक संसाधन, गुणवत्ता से जुड़ी शिक्षा के प्रति मेरी समझ जैसी चीजों को तिब्बत लाना चाहती हूँ। क्योंकि यहां इनकी आवश्यकता है।"

    यह वांग पियान की अभिलाषा ही नहीं, तिब्बत में आगे बढ़ने का स्तंभ भी है। ल्हासा में पायी स्कूल में आने के शुरू में वांग पियान मिडिल स्कूल के पहले और दूसरे ग्रेड की सात कक्षाओं में इतिहास और प्राइमरी स्कूल में नृत्य क्लास को पढ़ाती थी। हर सप्ताह उसे 24 कक्षाएं देनी थी। शिक्षा कार्य बहुत भारी था। उसके अधिकतर छात्र-छात्राएं तिब्बती बच्चे हैं। वह उनके साथ अच्छी तरह रहती है। अपनी श्रेष्ठ कार्य क्षमता दिखाकर पायी स्कूल ने वांग पियान को प्राइमरी स्कूल में पांचवें ग्रेड की मुख्य शिक्षक के तौर पर नियुक्त किया। वांग ने कहा कि मुख्य शिक्षक को अधिक जिम्मेदारी लेनी होती है। जिसे 24 घंटे छात्र-छात्राओं पर ध्यान देना जरूरी है। लेकिन इस प्रकार के कार्य से वांग पियान ने अधिक अनुभव प्राप्त किया। उन्होंने कहा:

    "यहां आकर मैं कई छात्रों को पढ़ाती हूँ। प्राइमरी स्कूल के पहले से छठे ग्रेड और मिडिल स्कूल में पहले और दूसरे ग्रेड तक मैं इन बच्चों से परिचित हूँ। रोज़ उन्हें स्कूल आते-जाते देखना बहुत अच्छा लगता है। छात्र मुझ से नमस्ते कहते हैं और मैं भी उनसे नमस्ते कहती हूँ। बहुत अच्छा अनुभव है। तिब्बत की सहायता के लिए शिक्षक बनने के बाद मैं शिक्षा कार्य नहीं करूंगी। ये विद्यार्थी तो मेरी जिन्दगी में एकमात्र छात्र-छात्राएं हैं। उनके साथ रहने के दौरान मुझे शिक्षक बनने की खुशी महसूस होती है। एक बार नृत्य क्लास में मैं एक लड़की से मिली, उसने बिना कुछ कहे मुझे गले लगाया। उस समय मेरे मन में पूरी तरह शिक्षक बनने की खुशियां भरी हुई थी। मुझे लगता है कि युवावस्था में अधिक अनुभव प्राप्त करना अच्छी बात है।"

    वांग पियान ने कहा कि आजकल छात्रों के अभिभावक ज्यादा तौर पर अपने-अपने काम में व्यस्त होते हैं। उनके पास अपने बच्चों पर अधिक ध्यान देने का समय नहीं है। इस तरह अपने छात्रों और छात्राओं का वांग पियान ज्यादा ख्याल रखती हैं। शिक्षा देने के एक साल बाद उनके पास अपना अनुभव है। वांग पियान ने कहा:

    "छात्रों-छात्राओं के साथ रहने के दौरान मैं खुद को एक शिक्षक नहीं मानती हूँ। बातचीत करते समय विद्यार्थी अधिक तौर पर चुपचाप रहते हैं। मैं उनकी दृष्टि से सोचती हूँ। मैं बार-बार उनसे पूछती हूँ कि उनके विचार क्या है?क्यों इस तरह सोचते हैं?फिर मैं उनकी दृष्टि का प्रयोग कर उन तक अपनी बात पहुंचाती हूं। विद्यार्थी इसे आसानी से स्वीकार करते हैं।"

    तिब्बत में प्राकृतिक दृश्य बहुत सुन्दर हैं। नीला आसमान, सफेद बादल, साफ पानी और स्वच्छ हवा। यहां काम करने से वांग पियान की मनोदशा अच्छी रहती है। माता-पिता की इकलौती लड़की के रूप में वांग पियान को जीवन में कभी बड़ी मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ा। उसने कहा कि युवावस्था में अधिक अनुभव हासिल करने की कोशिश करनी चाहिए। इससे जिन्दगी में विविधता आएगी। तिब्बत की मदद के लिए शिक्षा देने यहां आने के बाद उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। यह उनके जीवन का एक अविस्मरणीय अनुभव है, जो उन्हें हमेशा याद रहेगा।

    (श्याओ थांग)

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