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    तिब्बत में नेपाली मूल के दामान लोगों का जीवन
    2015-01-19 13:19:55 cri

    दामान गांव का दृश्य

    दामान गांव में प्यारे बच्चे

    दामान गांव बहुत शांत है। गांव में कुछ छोटे बच्चे हमारे संवाददाता को देखकर उत्सुक होते हैं। संवाददाता ने बच्चे के साथ बात की।

    संवाददाता:तुम्हारा नाम क्या है?

    बालक: मेरा नाम पनबा है।

    संवाददाता:उम्र कितनी है?

    बालक: 14 साल ।

    संवाददाता:स्कूल में कितने ग्रेड में पढ़ रहे हो?

    बालक: प्राइमरी स्कूल में छह ग्रेड में।

    संवाददाता: क्या, तुम्हें स्कूल जाना पसंद है?

    बालक: जी हां। स्कूल में हमें चीनी भाषा, तिब्बती भाषा, अंग्रेजी और गणित आदि विषय पढ़ाए जाते हैं।

    संवाददाता:क्या तुम्हे पढ़ाई मुश्किल लगती है?

    बालक: हां। बहुत मुश्किल है।

    संवाददाता:तुम्हें कौन सा विषय सबसे अधिक पसंद है ?

    बालक: मुझे चीनी भाषा की क्लास सबसे अच्छी लगती है।

    संवाददाता:क्यों?क्या तुम्हें लगता है कि चीनी भाषा सीखने योग्य है?

    बालक: हां। इसे सीखने से बहुत ज्यादा फायदा होगा।

    44 वर्षीय लो सांग दामान गांव के मुखिया हैं। उनके माता पिता नेपाल से सीमा पार करके यहां आए थे। लेकिन लो सांग का जन्म होने के बाद ही चीलोंग कस्बे में रहने लगे। उन्होंने कहा कि पहले दामान लोगों के पास कोई नागरिकता नहीं थी। लेकिन आज वे लोग खुशहाल जीवन बिता रहे हैं। दामान गांव के मुखिया लो सांग ने कहा:

    "यहां आने के बाद हमारी हैसियत में परिवर्तन आया है। बच्चे स्कूल में दाखिला ले सकते हैं और देश ने हमें रिहायशी मकान उपलब्ध कराया है। न्यूनतम जीवन बीमा और गरीबी उन्मूलन परियोजना में हमें प्राथमिकता दी जाती है। अब हमारा जीवन बहुत सुखमय है। आशा है कि भविष्य में हम खुद पर निर्भर होकर और बेहतर जीवन बिताएंगे। कई दुकानें खोल कर पारिवारिक आय और जीवन स्तर बेहतर करेंगे।"

    दामान गांव के मुखिया लो सांग ने कहा कि दामान लोगों के लोकगीतों की धुन पूर्वजों द्वारा विरासत में लेते हुए आज तक सुरक्षित हैं, लेकिन गीतों के बोल ताज़ा हैं। जिनके प्रमुख विषयों में चीन सरकार और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का आभार व्यक्त किया जाता है। सरकार और पार्टी के समर्थन से उनके जीवन में जमीन आसमान सा परिवर्तन आया है।

    दामान गांव में हमारे संवाददाता ने देखा कि दामान लोगों के घर में चाहे मकान हो, या परिवार में अलमारियों और पलंगों समेत फर्नीचर क्यों नहीं, चाहे टीवी हो, या खाना पकाने वाले इलेक्ट्रेनिक उपकरण, यह सब चीज़ें सरकार ने उन्हें निशुल्क प्रदान की हैं। दस साल पहले के जीवन की तुलना में आज दामान लोगों का जीवन बिल्कुल अलग हो गया है। समृद्ध न होने के बावजूद देश और सरकार के समर्थन से दामान लोग अपने हाथों से अपने खुशहाल जीवन का निर्माण कर रहे हैं।


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