दामान गांव के गांववासी
तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के शिकाज़े प्रिफेक्चर की ची लोंग कांउटी में नेपाली मूल के तन्तान रहते हैं, जो दामान लोग कहलाते हैं। कहा जाता है कि दामान लोग 18वीं सदी के अंत में छिंग राजवंश में गोरखा लोगों(तत्कालीन नेपाली लोगों का नाम) के आक्रमण का विरोध करते समय तिब्बत में छोड़े गए व्यक्ति हैं। वे लगभग 6 या 7 पीढ़ियों से यहां रह रहे हैं। ऐतिहासिक कारणों से इन लोगों के पास कोई देशीय नागरिकता नहीं है। वे सेवा करने और लोहार का काम करते हैं। इस तरह उनके जीवन की गारंटी नहीं मिल पाती। मई 2003 में दामान लोगों ने औपचारिक तौर पर चीनी नागरिकता हासिल की और चीनी नागरिक बन गए। 12 साल बीत चुके हैं, इस दौरान उनके जीवन में क्या बदलाव आया है ?
चीलोंग कांउटी के चीलोंग कस्बे के उत्तर पूर्वी भाग से 5 किमी. दूर पर्वत के ढलान पर कुछ घरों वाला गांव स्थित है। यह गांव सड़क के नजदीक बसा है और यहां का प्राकृतिक दृश्य बहुत सुन्दर है। यह चीन में दामान लोगों का एकमात्र जन्म स्थान है। चीलोंग कस्बे के प्रधान वेई छ्वानफ़ू ने दामान लोगों के इतिहास का परिचय देते हुए कहा:
"हमारे गांव का नाम है दामान गांव। कहते हैं कि 18वीं सदी के अंत में छिंग राजवंश के दौरान गोरखा लोगों के आक्रमण विरोधी युद्ध में ये दामान लोग यहीं रह गए। उनके पूर्वज मंगोलियन, मान जाति और अलुनछुन जाति के थे। चीलोंग में ऊंचे-ऊंचे पर्वत और घने-घने जंगल हैं। तत्कालीन छिंग राजवंश के जनरल फ़ूखांगआन के नेनृत्व में सेना ने जीत हासिल की। कुछ कमज़ोर व बीमार गोरखा और कुछ रास्ता भटक गए गोरखा यहीं पर रहने लगे। वे गोरखा सेना के साथ घर वापस नहीं लौटे। बाद में उनके और नेपालियों के बीच शादी हुई और अब तक 6 या 7 पीढ़ियों से रह रहे हैं। अब इस गांव में कुल 49 परिवारों के 178 लोग रहते हैं।"
चीलोंग कस्बे के प्रधान वेई छ्वानफ़ू के मुताबिक पहले दामान लोग चीन-नेपाल सीमा क्षेत्र में आवारा घूमते थे। वे श्रम करके, लोहार का काम करके और स्थानीय लोगों के लिए भारी चीज़ों को पीठ पर लादकर ले जाते थे। दामन लोगों का स्थान नीचा था। आम तौर पर वे या तो गौशालय में रहते थे, या जंगलों के घने स्थलों में तंबू गाढ़कर रहते थे। कोई भी उनकी देखभाल नहीं करता था और उन्हें खाने पीने की समस्या का सामना करना पड़ता था। यहां तक कि दामान लोगों के बच्चों के पास शिक्षा पाने का अधिकार भी नहीं था। मई 2003 में दामान लोगों को चीनी नागरिकता हासिल हुई और वे चीनी नागरिक बन गए। तभी से दामान लोग न्यूनतम जीवन गारंटी राशि, सीमावर्ती निवासियों के भत्ते और अनिवार्य शिक्षा जैसे अधिकारों का उपभोग करने लगे। पिछले 11 सालों में चीन ने दामान लोगों के रहने के लिए 70 लाख युआन का अनुदान दिया और उन्हें जमीन और गाय जैसे उत्पादन के संसाधन मुहैया कराए। आज के जीवन की चर्चा में दामान गांव की 33 वर्षीय गांव वासी दावा ने भोव विभोर होकर कहा:
" उस समय हमारे पास चीनी नागरिकाता नहीं थी, इस तरह हम स्कूल में दाखिला नहीं ले पाते थे। इस तरह आज तक मैं भी निरक्षर हूँ। वर्तमान में हमारे यहां भारी परिवर्तन आया है। पुराने जमाने में खाने की चीज़ भी नहीं थी। लेकिन आज हम जो भी खाना चाहें, खा सकते हैं। पहले हमें किसी मकान में किराए पर रहना पड़ता था, लेकिन आज हमारे पास खुद के कई मकान उपलब्ध हैं। याद है पुराने समय में हम काफी गरीबी में रहते थे। अब हमारे पास अपना घर है और हम अच्छा जीवन बिताते हैं । मुझे आशा है कि मेरे तीनों बच्चे स्कूल में अच्छी तरह पढ़ेंगे और भविष्य में वे विश्वविद्यालय में दाखिला ले सकेंगे। फिर अच्छी नौकरी प्राप्त करेंगे।"