मुखौटा तिब्बती भाषा में"बा"कहा जाता है, जिसका प्रयोग मुख्य तौर पर तिब्बती बौद्ध धर्म के धार्मिक नृत्य, तिब्बती ओपेरा और विभिन्न प्रकार के लोक कलात्मक अभिनय में किया जाता है। कई हज़ार वर्षों में रंगबिरंगे और तरह-तरह के मुखौटे तिब्बती संस्कृति का अहम अंग बन गए हैं। लम्बे समय के विकास के चलते धार्मिक जगत से पैदा हुआ मुखौटा कला व्यापक तौर पर कलात्मक दुनिया में प्रवेश कर चुका है।
मित्रों, अभी आपने जो आवाज़ सुनी, वह तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के शिकाज़े प्रिफैक्चर स्थित जाशलुम्बु मठ में छ्यांगमू नृत्य की प्रदर्शनी के दौरान बजाई गई धुन है। छ्यांगमू नृत्य एक तरह का धार्मिक डांस है, जो मुख्य तौर पर भिक्षु सामूहिक तौर पर नाचते हैं। नाचते वक्त भिक्षु विभिन्न तरह का मुखौटा पहनते हैं। तिब्बती पंचांग के अनुसार हर वर्ष के आठवें महीने में छ्यांगमू उत्सव मनाया जाता है। इस त्योहार का दूसरा नाम है"वज्र नृत्य उत्सव"। जाशलुम्बु मठ में छ्यांगमू नृत्य प्रदर्शन से जुड़े भिक्षु लोसांग याफेई ने जानकारी देते हुए कहा:
"छ्यांगमू एक पवित्र और भव्य धार्मिक पूजा रस्म है, जिसे तिब्बती बौद्ध धर्म के तंत्र संप्रदाय में सबसे जटिल और महत्वपूर्ण धार्मिक गतिविधि माना जाता है। छ्यांगमू नृत्य देखने योग्य है और मुझे इस तरह का नृत्य बहुत पसंद है।"
छ्यांगमू नृत्य के दौरान भिक्षु अलग-अलग तरह के मुखौटे पहनते हैं। आम तौर पर तिब्बत में मुखौटे धार्मिक और लोक दुनिया दो भागों में बंटे हुए हैं। इस्वी 7वीं से 9वीं सदी तक तत्कालीन तिब्बत यानी थूपो वंश में स्थानीय आदिम बोन धर्म बहुत लोकप्रिय था। बोन धर्म की पूजा रस्म में जो नृत्य किया जाता था, उसमें जानवरों की नकल करते हुए अभिनय का भाग था। तभी से मुखौटे का इस्तेमाल शुरू हुआ।
बाद में तिब्बती बौद्ध धर्म के विकास के चलते मठों में मुखौटे पहनने वाले धार्मिक डांस शुरू हुआ, यह है छ्यांगमू नृत्य। तिब्बती बौद्ध धर्म के भिक्षु छ्यांगमू नृत्य के दौरान मुखौटे, वस्त्र और बौद्ध धार्मिक पात्र के माध्यम से देव-देवता का अभिनय करते हैं। नृत्य का लक्ष्य दैत्यों और पिशाचों को दूर कर शांति और सुख की प्रार्थना करना है।