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    चाम्पालिन मठ में भिक्षुओं का जीवन
    2014-09-12 17:58:41 cri

    तिब्बत के पूर्व भाग में स्थित सबसे बड़े मठ के नाम से मशहूर चाम्पालिन मठ तिब्बती बौद्ध धर्म के गेलुग संप्रदाय का मठ है, जिसकी स्थापना 1437 में हुई और आज से 570 से अधिक वर्ष पुराना इतिहास है। मठ में मुख्य तौर पर तिब्बती बौद्ध धर्म के मुख्य बुद्ध यानी चाम्पा बुद्ध की पूजा की जाती है।

    पहले चाम्पालिन मठ से संन्यास लेने वाले भिक्षुओं का जीवन श्रद्धालुओं के दान पर निर्भर रहता था। लेकिन इधर के सालों में मठ में 1200 से अधिक भिक्षु सामाजिक नागरिकता की हैसियत से न सिर्फ़ चुनाव अधिकार, बल्कि चिकित्सा बीमा, न्यूनतम जीवन बीमा और पेंशन बीमा जैसे सामाजिक बीमाओं का इस्तेमाल भी करते हैं।

    चाम्पालिन मठ तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के छांगतु प्रिफैक्चर में स्थित है, जहां कुल 518 मठ हैं। इसी प्रिफैक्चर में भिक्षुओं की संख्या 12 हज़ार से अधिक है। स्थानीय नागरिक तिब्बती बौद्ध धर्म में विश्वास करते हैं। श्रद्धालु मठ में भिक्षु बनने के लिए अपने बच्चे को भेजना अपना उत्तरदायित्तव मानते हैं। परंपरा के मुताबिक घर से विदा होकर मठ में संन्यासी जीवन बिताने वाले इन लोगों का अपने गांव के साथ संबंध टूट गया है। छांगतु प्रिफैक्चर के जातीय धार्मिक ब्यूरो के प्रधान योंग शङ ने कहा:

    "लोग संन्यास लेकर घर से मठ के लिए रवाना हुए, तो गांव से उनका नाम रद्द कर दिया जाता है। इस तरह ये भिक्षु विशेष नागरिक बन गए हैं। वो हमारे चीन लोक गणराज्य के नागरिक है, लेकिन उन्हें सामान्य नागरिकों का दर्जा नहीं मिल पाता, साथ ही उनके पास चुनाव का अधिकार भी नहीं है। गांव में दर्ज की गई सूची में भी उनका नाम नहीं होता, चिकित्सा बीमा और न्यूनतम जीवन बीमा से जुड़े पंजीकण में उनका नाम भी नहीं होता।"

    प्रधान योंग शङ के अनुसार, इधर के दो सालों में तिब्बत स्वायत्त प्रदेश ने इस नियम में सुधार किया है। अब मठ में रहने वाले भिक्षु स्थानीय निवासी का दर्जा पा सकते हैं। इसके बाद वे न्यूनतम जीवन बीमा और चिकित्सा बीमा जैसे सामाजिक प्रतिभूति गारंटी का उपभोग कर सकते हैं।

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