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    भारत को अपनी कूटनीति पर फिर विचार करना चाहिए
    2017-03-12 19:55:32 cri
    ज़ी न्यूज़ की वेबसाइट के अनुसार कुछ भारतीय और अमेरिकी विद्वानों का मानना है कि भारत-अमेरिका-जापान के आपसी सहयोग से चीन के हिन्द महासागर और प्रशांत क्षेत्र में बढ़ते कदमों को रोका जा सकता है। ये बातें वॉशिंगटन में कही गई थीं जहां अमेरिकी संस्थान हडसन इंस्टीट्यूट और भारतीय संस्थान विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन के तत्वावधान के तहत कही गई थीं।

    दोनों थिंक टैंक के विचारों में दोनों ही सरकारों की साझेदारी में इस तरह के वक्तव्य का सीधा अर्थ ये निकलता है कि अमेरिकी और भारतीय सरकारों की राजनयीक नीतियां क्या हैं।

    मई 2015 में जबसे भारत में भाजपा की सरकार बनी है तभी से उसके अमेरिकी सरकार के साथ सुरक्षा सहयोग अभूतपूर्व रूप से प्रगाढ़ हुए हैं। विशेषतौर पर भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अमेरिका में किये गए कई दौरों के बाद अमेरिका और भारत के बीच विशेष सैन्य और रणीतिक सहयोग को नई ऊंचाई मिली है। ऐसा लगता है कि भारत अमेरिका का एक सक्रिय सहयोगी बनने की जुगत में लगा हुआ है। वहीं दूसरी तरफ़ भारत अपनी पुरानी समस्याओं से घिरा है और बेल्ट और रोड के लागू होने से नई चुनौतियों का सामना करने की कोशिश कर रहा है, इस वजह से भारत और चीन में कई मुद्दों पर असहमति बनने से दोनों देशों के संबंधों के खराब होने का खतरा भी है।

    वर्ष 2017 की फरवरी में चीन और भारत ने एक रणनीतिक संवाद का आयोजन किया। दोनों ही देश अपने संबंधों को और खराब होने से बचाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन हाल के हडसन संस्थान में आयोजित हडसन-विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन के सम्मेलन से ये ज़ाहिर होता है कि कई भारतीय अमेरिका और जापान से सहयोग कर चीन पर कुछ मुद्दों पर समझौते का दबाव डालना चाहते हैं।

    हालांकि ऐसी कोशिश उन्हें वो नतीजे नहीं देने वाली जिसकी वो उम्मीद लगाए बैठे हैं। अगर भारत अमेरिका के साथ अपने बेहतर होते राजनयीक संबंधों के दम पर चीन पर किसी भी तरह का दबाव डालने की कोशिश करेगा तो उससे भारत और चीन के संबंध और खराब होंगे। चीन वैश्विक स्तर पर सिद्धांतों को मानने वाला देश है और वो किसी भी ऐसे गठजोड़ से डरने वाला नहीं है। ये बात दुनिया वर्ष 1949 से ही जानती है। वर्ष 1950-53 में अमेरिका के विरुद्ध हुए कोरियाई युद्ध के दौरान और सोवियत संघ के साथ अपने संबंधों के दौरान भी चीन ने अपने सिद्धांतों का बखूबी पालन किया था।

    भारत की इस समय की गतिविधियां पूरे एशिया को एक जियोपॉलिटिकल जाल में फँसा सकती है। कुछ विशेषज्ञों की राय में पूरे क्षेत्र में इससे शीत युद्ध शुरु हो सकता है। जहां एक तरफ़ भारत पाक रिश्ते बदतर होते जा रहे हैं वहीं रूस पाकिस्तान और चीन रूस संबंधों में काफी गर्माहट आ रही है। कुछ जानकार ये भी कहते देखे जा सकते हैं कि इस पूरे क्षेत्र में दो विरोधी गुट उभरते जा रहे हैं जिसमें एक चीन-रूस-पाकिस्तान है तो दूसरा गुट भारत-अमेरिका-जापान हैं, भारत की वर्तमान राजनयिक गतिविधि इसे सच्चाई में बदल सकती है।

    ये बात कहना एकदम आधारहीन है कि अमेरिका-भारत-जापान का गठजोड़ क्षेत्र से चीन के दबाव को कम करने में सहायक होगा। दक्षिणी चीन सागर और पूर्वी चीन सागर में चीन के अधिकार न्यायसंगत और वाजिब हैं। हालांकि दक्षिणी चीन सागर का मुद्दा जुलाई 2016 में गरमाया था उस समय भी अधिक से अधिक देशों ने चीन का साथ दिया है। दूसरी तरफ़ चीन ने हमेशा खुले समुद्र नीति और क्षेत्रीय संतुलन का पालन किया है। साथ ही चीन पूरे एशिया प्रशांत क्षेत्र में सामूहिक सुरक्षा की बात करता है जिसमें किसी भी देश का स्वागत है।

    समय के साथ साथ भारत और चीन के आपसी संबंधों में परिपक्वता आई है, वर्तमान में आई परेशानियों के लिये नई दिल्ली को भारत-चीन संबंधों के इतिहास को खंगालना चाहिए, और अपने राजनयिक दिशा में आगे बढ़ने से पहले दो बार विचार करना चाहिए।

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