चीन भारत रणनीतिक बातचीत 22 फरवरी को पेइचिंग में आयोजित हुई। उसी दिन चले 7 घंटों तक चली वार्ता में चीनी उप विदेश मंत्री चांग ये श्वे और भारतीय विदेश सचिव एस. जयशंकर के प्रतिनिधित्व वाले चीनी और भारतीय पक्ष ने गहन रूप से विचारों का आदान प्रदान किया और व्यापक आम सहमतियां बनाईं। दोनों पक्ष मतभेदों और संवेदनशील मुद्दों के अच्छी तरह निपटारे पर सहमत हुए।
हाल ही में भारतीय मीडिया ने अपेक्षा की कि परमाणु सप्लाई देशों के समूह में भारत की भागीदारी और आतंक विरोधी मुद्दे पर मौजूदा वार्ता सम्मेलन में प्रगति हासिल की जाएगी। इसकी चर्चा में विश्लेषकों ने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि रणनीतिक बातचीत चीन और भारत के बीच महत्वपूर्ण संपर्क व्यवस्था है, जो गहन रूप से आदान प्रदान करने, मतभेद को कम करने और सहयोग को आगे बढ़ाने का अहम मंच है। लेकिन चीन भारत के बीच मौजूद मतभेदों का हल एक ही बार की रणनीतिक बातचीत में होना संभव नहीं है, इसके लिये दोनों ही पक्षों को निरंतर प्रयासरत रहने की ज़रूरत है।
चीन में भारत मामलों के विशेषज्ञ लोंग शिंगछुन ने कहा कि भारत के पास इससे पूर्व मौजूदा वार्ता सम्मेलन में चीन के साथ एनएसजी में भाग लेने में प्रगति हासिल करने की अपेक्षा थी। लेकिन यह चीन के लिए एक सैद्धांतिक मुद्दा है। चीन के विचार में एनएसजी में भारत की भागीदारी के लिए सर्वप्रथम प्रक्रियात्मक मामलों का समाधान किया जाना जरूरी है। क्योंकि भारत ने इसमें भाग लेने की शर्तों को पूरा नहीं किया है। वह"परमाणु हथियार अप्रसार संधि"यानी एनपीटी पर हस्ताक्षरित देश नहीं है, बल्कि भारत ने"सर्वांगीण परमाणु परीक्षा प्रतिबंध संधि"यानी सीएनटीबीटी प्रभावी होने के बाद परमाणु शक्ति प्राप्त की है। इस तरह एनएसजी में भारत की भागीदारी के लिये एनएसजी के नियमों में संशोधन करने से संबंधित सवाल मौजूद हैं।
चीनी विदेश मंत्रालय ने इसके पूर्व कहा था कि गैर-एनपीटी हस्तक्षरित देश के एनएसजी में भाग लेने पर चीन का पक्ष है कि ग्रुप के भीतर इसपर पूर्ण रूप से विचार विमर्श किया जाए, ताकि आम सहमति बनाकर सलाह मशविरे के माध्यम से निर्णय लिया जा सके। एनपीटी अंतरराष्ट्रीय प्रसार-विरोधी प्रणाली का राजनीतिक और कानूनी आधार है। चीन का यह रुख सभी गैर-एनपीटी हस्ताक्षरित देशों के लिए अनुकूल है। यह किसी भी खास गैर-एनपीटी हस्ताक्षरित देश के खिलाफ़ नहीं है। वास्तव में न केवल चीन, बल्कि इस ग्रुप के कई देशों का समान रुख है।
खुली रिपोर्ट के मुताबिक, न्यूजीलैंड, आयरलैंड, तुर्की, दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रिया ने क्रमशः एनएसजी में भारत की भागीदारी का विरोध किया। विरोधी-स्वर में माना गया कि भारत की भागीदारी से अंतरराष्ट्रीय समुदाय के प्रसार विरोधी प्रयास कम होंगे।
वहीं उत्तर-पूर्वी चीन के ची लिन प्रांत के ची लिन विश्वविद्यालय के सार्वजनिक कूटनीति कॉलेज के उप प्रोफेसर वांग वनछी ने कहा कि भारत मौजूदा रणनीतिक बातचीत से वास्तविक प्रगित हासिल करना चाहता था। लेकिन भारत को बहुमुखी तौर पर कानून की वैधता, सबूतों की पूर्णता और लाभ की अनुकूलता पर सोच विचार करना चाहिए। इस तरह वह चीन के साथ हुई वार्ता में प्रगति हासिल कर सकेगा।
भारत ने सशस्त्र संगठन"जैश ए-मोहम्मद"के सरगना मौलना मसूद अज़हर को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की प्रतिबंध सूची में शामिल करने का आवेदन किया। चीन ने इसे ताख पर रख दिया। मसूद मुद्दा 1267वीं समिति से संबंधित है, जो सुरक्षा परिषद के अधीन अल कायदा और तालिबान से संबंधित संगठनों पर प्रतिबंध लगाने की खास समिति है। लम्बे समय से चीन वस्तुगत, निष्पक्ष और पेशेवर भावना के साथ सक्रिय और रचनात्मक रुख अपनाते हुए 1267वीं समिति में संबंधित मुद्दे के विचार विमर्श में भाग लेता रहा है। भारत द्वारा प्रस्तुत मसूद के प्रतिबंध सूची में शामिल करवाने के प्रस्ताव का चीन ने विरोध किया। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता कंङ श्वांग ने गत 5 जनवरी को कहा था कि इस मुद्दे पर चीन का एकमात्र मापदंड है, वो है सही सबूत का आधार।
चीन में भारत मामलों के विशेषज्ञ लोंग शिंगछुन के विचार में पाकिस्तान के भीतर मसूद को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी सूची में शामिल करवाने के मुद्दे पर भारत और पाकिस्तान को कारगर संपर्क करना चाहिए। वर्तमान में चीन ने इस लिए विरोध किया कि इस मामले से जुड़े सही सबूत नहीं मिले।
लोंग शिंगछुन ने यह भी कहा कि इन महत्वपूर्ण मुद्दों के समाधान किये जाने के पूर्व चीन और भारत के बीच रणनीतिक बातचीत करना बहुत महत्वपूर्ण है। इस तरीके से दोनों पक्ष ग़लतफ़हमी और ग़लत-फैसले करने से बच सकेंगे।
(श्याओ थांग)