Web  hindi.cri.cn
सफ़ेद घोड़े का स्मारक
2016-09-25 19:18:02 cri

तुन्ह्वांग शहर के बाहर तीन किलोमीटर की दूरी पर एक शांत से गांव में सफ़ेद घोड़े का स्मारक बना है। इस जगह पर शायद ही कोई पर्यटक आते हों, इसे एक बौद्ध भिक्षु कुमारजीव ने अपने घोड़े तियानलियु की याद में बनवाया था। इस स्मारक का निर्माण 384 इस्वी में हुआ था। कूचा शहर से तुनह्वांग लौटते समय तियानलियु नाम के इस घोड़े ने यहां पर दम तोड़ दिया था। कुमारजीव ढेर सारी बौद्ध पांडुलिपियां इस घोड़े की पीठ पर लादकर लाया था।

हालांकि समय समय पर इस स्मारक का पुर्नरुद्धार करवाया जाता रहा है, पहला ज्ञात पुर्नरुद्धार वर्ष 1821 में दूसरा 1851 में और उसके बाद 1992 में चीन सरकार ने इसका पुर्नरुद्धार करवाया था।

स्थापत्य कला की दृष्टि से देखा जाए तो ये स्मारक बहुत खूबसूरत बना हुआ है। करीब चालीस फीट ऊंचा और 23 फीट परिधि में बना ये स्मारक नौ स्तरों में बना है और हर स्तर एक दूसरे से अलग हैं। इस स्मारक की बाहरी परत कच्ची ईंटों से बनी हुई हैं। स्मारक को मज़बूती देने के लिये इन ईंटों को मिट्टी, चूने और घासफूस के मिश्रण से बनाया गया था। इसके निचले स्तर को देखने से लगता है कि ये लकड़ी की आठ मोटी तीलियों से बना एक पहिया है। वहीं दूसरे से चौथे स्तर को ऐसे चौकोर आकार में बनाया गया है जिसके कोने चारों दिशाओं से मुड़े हुए हैं। पांचवा स्तर कमल के फूल के आकार में बना है, छठां स्तर उल्टे कटोरे के आकार का है वहीं सातवां स्तर पहिये के आकार में बना है। आठवां स्तर षठकोण है जिसके अंत में हवा से बजने वाली धातु की घंटियां लगी हैं जो हवा के चलते समय यहां से गुज़रने वालों के कानों में मीठा संगीत सुनाती हैं। नौंवे स्तर पर धातु का एक त्रिशूल बना है।¬¬¬¬

कुमारजीव एक बौद्ध भिक्षु था जो भारत से वज्रछेदिकाप्रज्ञापरमिता सूत्र चीन लेकर आया था। कुमारजीव की माता कूचा की राजकुमारी थी और उनके पिता एक कश्मीरी ब्राह्मण थे। कुमारजीव भारत लौटते समय तुनह्वांग में लोगों को बौद्ध पांडुलिपियों को पढ़ाने के लिये रुके थे जिस दौरान उनके घोड़े की मृत्यु हो गई। अपने वफ़ादार घोड़े की मृत्यु से कुमारजीव बहुत दुखी हुए उन्होंने इसी जगह पर बौद्ध रीति से अपने घोड़े का अंतिम संस्कार किया, ये अंतिम संस्कार नौ दिनों तक चला बाद में यहां पर कुमारजीव ने अपने घोड़े की याद में स्मारक बनवा दिया।

कुमारजीव द्वारा भारत से लाई गई बौद्ध पांडुलिपि वज्रछेदिकाप्रज्ञापरमिता सूत्र का पहला चीनी भाषा में अनुवाद 402 ईस्वी में हुआ था, जिसकी एक प्रतिलिपि मोगाओ बौद्ध गुफ़ाओं में सुरक्षित रखी हैं।

पंकज श्रीवास्तव

आप  की  राय  लिखें
© China Radio International.CRI. All Rights Reserved.
16A Shijingshan Road, Beijing, China. 100040