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पहले अलुननछुन जाति के लोग पीढ़ी दर पीढ़ी जंगल में शिकारी जीवन व्यतीत करते थे। लेकिन वर्तमान आधूनिक काल में उनका जीवन तरीके में बड़ा बदलाव आया है। आज, शिकारियों की संतान एक नए तरीके से पूर्वजों के जीवन-चिह्न को सुरक्षित करते हुए अपनी जाति की परंपरा और संस्कृति को विरासत में ग्रहण करते हुए उसका विकास करती है।
बीसेक अलुनछुन पुरुष छोटे हिरन के चमड़े से बने वस्त्र पहनते हुए मंच पर गाते हुए नाच रहे हैं। नृत्य का तरीका बहुत सरल होता है। नाच-गान से वे अपनी जीवन की खुशियां व्यक्त करते हैं। इस नृत्य का परिचय देते हुए क्वान योंगकांग नाम के एक अलुनछुन पुरुष ने कहा:"'भालू से लड़ना'अलुनछुन जाति के प्रतिनिधित्व वाला गान-नृत्य है, जिसमें शिकारियों द्वारा शिकार किये जाने के बाद घर वापिस लौटने के माहौल का वर्णन किया जाता है। संपूर्ण कबीलाई लोग खुशियां मना रहे हैं। लोग आग का घेरा बनाकर'भालू से लड़ने'वाला नृत्य कर रहे हैं।"
क्वान योंगकांग एक मध्यम आयु के अलुनछुन पुरुष है, जो मोरिकन लोक कला मंडली के अध्यक्ष हैं। अलुनछन जाति की भाषा में"मोरिकन"का मतलब"अच्छा शिकारी"या"बहादुर"होता है। मंच पर"भालू से लड़ने"के नृतक पेशेवर नतृक नहीं हैं। वे सब अलुनछुन जातीय स्वायत्त जिले के कुली कस्बे में अलुनछुन गांव के गांववासी हैं।
"मरिकन लोक कला मंडली"की स्थापना वर्ष 2013 में हुई। उस समय अलुनछुन जातीय स्वायत्त जिले का कुली कस्बा अपनी स्थापना की जयंती की खुशियां मना रहा था। कस्बाई सरकार ने कुछ युवाओं के एक अभिनय दल का गठन किया। प्रदर्शन के बाद इन युवा लोगों के पास अभिनय दल जारी करने की इच्छा रही। कस्बाई सरकार के समर्थन में"मरिकन लोक कला मंडली"की स्थापना औपचारिक तौर पर हुई।
शुरु में मंडली को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा था। इन युवा लोगों के पास घुमंतू जीवन का कोई अनुभव नहीं था। उन्हें अलुनछुन भाषा निपुण नहीं रही। यहां तक कि कुछ सदस्यों को अलुनछुन भाषा बोलने भी नहीं आती और साथ ही जातीय परंपरा के प्रति ज्यादा जानकारी भी नहीं थी। इस तरह कला मंडली ने स्वायत्त जिले के संस्कृति भवन से उन्हें गाना, नृत्य और जातीय परंपरा सिखाने के लिए शिक्षक बुलाया।
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