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खिसक रहे हैं भारत के सभी ग्लेशियर
2016-08-25 18:19:11 cri

जलवायु परिवर्तन की वजह से बढ़ते तापमान से भारत के लगभग ग्लेशियर धीरे-धीरे खिसक रहे हैं। ये ग्लेशियर प्रतिवर्ष कुछ मीटर से लगभग 15-20 मीटर नीचे जा रहे हैं। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है, अगर यही क्रम जारी रहा तो भविष्य में मानव को इसकी बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ सकती है।

इसके साथ ही जलवायु परिवर्तन, खाद्य सुरक्षा और शहरीकरण और नदियों में बढ़ते प्रदूषण की समस्या भी आज दुनिया भर के लोगों के लिए चुनौती बनी हुई है। इन्हीं चिंताओं और मुद्दों पर चर्चा करने के लिए भारत सहित विश्व भर के भूगोलवेत्ता बीजिंग में जमा हुए। पांच दिनों तक चली 33वीं अंतर्राष्ट्रीय भूगोल कांग्रेस में वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए सहयोग बढ़ाने पर भी ज़ोर दिया गया।

भूगोलवेत्ताओं ने बार-बार हो रही प्राकृतिक आपदाओं के लिए प्रकृति के साथ की जा रही छेड़छाड़ को जिम्मेदार ठहराया। दिल्ली विश्वविद्लाय में असिसटेंट प्रोफेसर पंकज कुमार ने सीआरआई के साथ बातचीत में कहा, जलवायु परिवर्तन की वजह से बढ़ते तापमान से भारत के लगभग ग्लेशियर धीरे-धीरे खिसक रहे हैं। ये ग्लेशियर प्रतिवर्ष कुछ मीटर से लगभग 15-20 मीटर नीचे जा रहे हैं। और बर्फ पिघलने वाली जगह पर झील बन जाती है, भूकंप और हिमस्खलन आदि के वक्त वह झील फट जाती है। जिससे नदियों में बाढ़ आती है, लेकिन वहां से बहुत नीचे बसे लोगों को इस बात की भनक भी नहीं होती है कि उन पर इतना बड़ा खतरा मंडरा रहा है। इसके लिए संबंधित एजेंसियों को आपस में समन्वय बढ़ाना होगा, ताकि कम से कम नुकसान हो।

वहीं अंतर्राष्ट्रीय भूगोल कांग्रेस के उपाध्यक्ष प्रोफेसर आर.बी.सिंह ने कहा, हमें नई तकनीक के इस्तेमाल पर विशेष ध्यान देना चाहिए। वहीं मौसम की भविष्यवाणी और आपदा प्रबंधन को भी उन्नत बनाना होगा, ताकि लोगों को समय पर सूचना मिल सके। और जान-माल का कम से कम नुकसान हो।

उन्होंने कहा कि भारत में मौसम की सटीक और समय रहते भविष्यवाणी के लिए पूरे देश में एक बड़ा नेटवर्क स्थापित करना होगा। आम लोगों को इसका लाभ दिलाने के लिए छोटे स्तर पर भी अच्छी तकनीक से वेदर स्टेशन बनाने की जरूरत है।

वहीं दिल्ली स्कूल ऑफ इकॉनमिक्स के प्रोफेसर बी.डब्ल्यू पांडेय ने कहा, हिमालय से निकलने वाली नदियों पर एशिया के कई देशों के लोगों का जीवन निर्भर है। विश्व की लगभग आधी जनसंख्या हिमालय से निकली हुई नदियों के सहारे बसी हुई है। हालांकि हिमालय के संरक्षण ने भारत सरकार ने कई कदम उठाए हैं, लेकिन उक्त कदमों को उचित ढंग से कार्यान्वयित करने की आवश्यकता है।

वहीं इंदिरा गांधी मीरपुर यूनिवर्सिटी के रंधीर सांगवान ने बढ़ते शहरीकरण को बड़ी चुनौती बताते हुए कहा कि इसे रोकने लिए छोटे शहरों और गांवों में रोजगार के अवसर पैदा करने होंगे। नदियों के प्रदूषण पर काम कर रहे विश्वराज शर्मा ने मृतपाय गंगा और यमुना की स्थिति पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि यमुना में हो रहे प्रदूषण के लिए 80 फीसदी से अधिक दिल्ली ज़िम्मेदार है।

यहां बता दें कि बीजिंग के कनवेंशन सेंटर में 'शेपिंग अवर हॉरमोनियस वर्ल्ड्स' थीम पर पांच दिवसीय 33वीं अंतर्राष्ट्रीय भूगोल कांग्रेस का आयोजन किया गया। अब दुनिया भर के भूगोलवेत्ता चार साल बाद तुर्की के इस्तांबुल में मिलेंगे।

अनिल आज़ाद पांडेय

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