छिंगहाई तिब्बत पठार पर स्थित तिब्बत की यात्रा करना मिस्र के विद्वान अहमद ज़ारिफ़ दैफ़ मोहम्मद का सपना है। एक दुभाषिये के रूप में, तिब्बत के प्रति बड़ी रूचि की वजह से कुछ दिन पहले जारिफ़ ने अरबी भाषा में"तीसरा ध्रवु"का अनुवाद किया था, जिसमें छिंगहाई तिब्बत पठार में मानव और प्रकृति के बीच सामंजस्यपूर्ण सहअस्तित्व का वर्णन किया गया है। इस पुस्तक का प्रकाशन जुलाई में औपचारिक तौर पर किया जाएगा।
अहमद ज़ारिफ़ दैफ़ मोहम्मद का चीनी नाम चिन हाओथ्येन है। 7 से 8 जुलाई तक तिब्बत विकास मंच का आयोजन ल्हासा में किया गया है। चिन हाओथ्येन एक विद्वान के रूप में इसमें भाग लेने आए हैं। मंच के उद्घाटन से पहले उन्होंने ल्हासा और लोका प्रिफेक्चर स्थित कुछ मठों, किसानों के घरों, उद्योगों और स्कूलों का दौरा किया। यह चिन हाओथ्येन की पहली तिब्बत यात्रा है। उन्होंने अपनी आंखों देखी तिब्बत को अतीत में किताबों में वर्णित तिब्बत की तुलना की। चिन हाओथ्येन ने कहा:"मुझे लगता है कि ये बहुत रहस्यमय है और यहां का धार्मिक वातावरण बहुत धनी है। इस प्रकार का अनुभव किताब से हमें नहीं मिल पाता। तिब्बती लोग बहुत सीधेसादे और ईमानदार हैं।"
वास्तव में"तीसरा ध्रुव"तिब्बत की कहानी पर बना टीवी वृत्तचित्र है। चिन हाओथ्येन ने इसके आधार पर इसे एक पुस्तक का रूप दिया है। उन्होंने जानकारी देते हुए कहा कि किताब में मानव और प्रकृति के बीच अटूट संबंधों वाली दो कहानियों से उनपर बहुत छाप पड़ी है। चिन हाओथ्येन ने कहा:"एक गांव में जंगली बंदरों द्वारा हमला किये जाने पर गांववासियों ने गांव को छोड़ कर दूसरे स्थल की शरण ली। उन्होंने बंदरों के साथ कोई लड़ाई या संघर्ष नहीं किया और इस प्रकार का शांतिपूर्ण और प्रत्यक्ष तरीका अपनाया। यह एक कहानी है। दूसरी कहानी एक चरवाहे और तिब्बती कुत्ते की है। उनके बीच के रिश्ते कुत्ते और मालिक वाले नहीं थे। दोनों पक्ष एक दूसरे को चुनते हैं। मानव ने कुत्ते को चुना, जबकि कुत्ते ने भी मानव को चुना। इस कहानी ने मुझे बहुत प्रभावित किया। लगता है कि इस प्रकार का संबंध दूसरे स्थल पर नहीं मिल सकता।"
तिब्बत की यात्रा के दौरान चिन हाओथ्येन ने तिब्बत की सुन्दरता और सीधे सादे लोगों को महसूस किया। उन्होंने कहा:"मैंने पश्चिमी मीडिया की कई रिपोर्ट पढ़ी है। उनमें अधिक तौर पर तिब्बत की चर्चा करते सयम राजनीतिक मुद्दे से जुड़ी हुई हैं। लेकिन यहां आकर मुझे लगता है कि ये मुद्दे यहां पर बिलकुल मौजूद नहीं हैं। लोग सामंजस्यपूर्ण तरीके से सहअस्तित्व को बनाए हुए रहते हैं। प्राकृतिक वातावरण बहुत अधिक सुन्दर है। तिब्बती लोग आरामदेह जीवन बिता रहे हैं। यह पश्चिमी मीडिया की रिपोर्टों में छपने वाली खबरों के बिल्कुल उलट है।"
मिस्र के विद्वान अहमेद ज़ारिफ़ यानी चिन हाओथ्येन ने कहा कि तिब्बत आने के बाद उन्होंने अपने सोशल मीडिया वी-चेट पर मित्रों से एक सूचना साझा की। जिसमें उन्होंने लिखा है कि"ऊंची आवाज़ देने का साहस नहीं है, चिंतित हूं कि स्वर्ग में रहने वाले लोगों को परेशानी पहुंचाना"। इस वाक्य से चिन हाओथ्येन के मन की बात जाहिर हुई है और साथ ही पठार के प्रति उसके समादर को भी दिखाया गया है।
(श्याओ थांग)